Book Title: Hindi Patrakarita Kal aur Aaj
Author(s): Vasundhara Mishr
Publisher: Z_Ashtdashi_012049.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डॉ. वसुधरा मिश्र जिसमें लिखा गया कि अंग्रेज भारत त्यागकर अवश्य जा रहे हैं किन्तु हमें दुर्बल और अशक्त बनाकर जा रहे हैं। हमारे सामने कई सामाजिक, शैक्षिक, सांप्रदायिक समस्याएं मुँह बाये खड़ी हैं, उन्हें दूर करना हमारी तत्काल आवश्यकता है। हमारे समाचारपत्रों, पत्रकारों ने इस क्षेत्र में संकल्प बद्ध होकर देश हित के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। संविधान का निर्माण, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रचिह्न, राष्ट्रभाषा का निर्धारण, गांधी दर्शन, पंचशील योजना, लोकतांत्रिक चुनाव, राज्यों का पुनर्गठन, सुरक्षा व्यवस्था, जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, पिछड़े क्षेत्रों का विकास, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, शिक्षा का प्रसार, स्वास्थ्य सम्बन्धी नए निर्णय आदि विषयों को क्रियान्वित किया गया। १९४८ से १९७४ तक के समाचार पत्रों ने साम्राज्यवादी, व्यक्तिवादी और शोषण-परक मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ाई भी लड़ी। आज जैसी समृद्ध भारतीय पत्रकारिता का प्रारंभ 'उदन्त मार्तण्ड' के प्रकाशन (३० मई १८२६) ई० में हुआ। इसके बाद बंगदूत (१८२९), सुधाकर (१८५०) बुद्धि प्रकाश हिन्दी पत्रकारिता : (१८५२), मजहरूल सरूर (१८५२) कवि वचन सुधा कल और आज (१८६७), हरिश्चन्द्र मैगजीन (१८७३), बाल बोधिनी पत्रिका (१८७८), हिन्दी प्रदीप (१८७७) भारत मित्र (१८७८) सार महात्मा गांधी ने कहा था कि समाचार पत्र का पहला सुधानिधि (१८७९), उचितवक्ता (१८८०), भारत जीवन उद्देश्य जनता की इच्छाओं, विचारों को समझना और उन्हें (१८८४) आदि समाचार पत्र निकाले गए। १९वीं सदी के अंत व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को में तथा २०वीं सदी के चौथे पांचवे दशक में हिन्दुस्तान, आर्यावर्त, जाग्रत करना है। तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भयता नवभारत टाइम्स, राजस्थान पत्रिका आदि समाचार पत्र निकाले पूर्वक प्रकट करना है। (महात्मा गांधी १८०८ ई.)। गए। १९७२ में भारत में ११ हजार ९२६ समाचार पत्र थे, समाचार पत्र समाज की नब्ज को पकड़ते हैं, उसकी जाँच जिनमें से हिन्दी में ३०९३ समाचार पत्र प्रकाशित होते थे। अब करते हैं, दैनिक जीवन से लेकर विश्व तक की गतिविधियों, राष्ट्र संख्या दुगुनी हो गई है। वैसे १८८५ से १९१९ तक की अवधि की उन्नति-अवनति, विभिन्न ज्वलंत समस्याओं की खबर रखते भारतीय पत्रकारिता का जागरण काल माना जाता है। "स्वराज्य हैं। 'दी प्रेस एण्ड अमेरीका' में समाचार पत्रों की सात विशेषताएँ हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' इस नारे को प्रेस ने ही जन-जन वर्णित हैं-समाचार पत्र सप्ताह में कम से कम एक बार प्रकाशित तक पहुंचाया। हिन्दी पत्रिकारिता के प्रति अंग्रेजों का व्यवहार हों, हस्तलिखित पत्रों से भिन्न रूप में प्रेस मशीन द्वारा मुद्रण हो, क्रूरता पूर्ण रहा। दरअसल भारतीय पत्रकारिता का इतिहास मूल्य ऐसा रखा जाय जो सभी के लिए सुलभ हो, साक्षर व्यक्तियों आजादी के आन्दोलन का ही इतिहास है। समाचार पत्र निकालने की रूचि के अनुकूल हो, नियत समय पर प्रकाशित हो, प्रकाशन का अर्थ उस वक्त आजादी की लड़ाई लड़ना ही था। यह भारतीय में स्थायित्व हो। इस प्रकार समाचार पत्र सभी वर्ग के व्यक्तियों पत्रकारिता का क्रांतिकाल माना जाता है। आजादी के बाद के लिए उनका शिक्षक, आदर्श उदाहरण और परामर्शदाता है। भारतीय पत्रकारिता ने प्रगति के नए आयाम स्थापित किये तथा जनहित के लिए लिखने के कारण समाचार पत्र अपने पत्रकारों ने अपनी समर्पित सेवा-भावना से जन-चेतना जगाने का कार्य किया है। साहस, दूरदर्शिता तथा लोकहित के कारण लोकप्रिय हो जाते हैं। स्वतंत्र होने के बाद भारतवासियों पर दुगुने दायित्व का बोझ पत्रकारिता का आजादी से पूर्व तथा बाद में राष्ट्रीय आ पड़ा। 'आज' में इस विषय में एक खबर प्रकाशित की थी इतिहास पर व्यापक असर दिखाई पड़ता है। इसकी बानगी ० अष्टदशी /1740 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'उचितवक्ता' में छपे मन्तव्य से जानी जा सकती है। ७ अगस्त १८८० ई० को 'हितं मनोहारि च दुर्लभ वचः' के साथ 'उचितवक्ता' का प्रकाशन हुआ । १२ मई १८८३ के अंक में संपादकों से कहा गया कि "देशीय संपादको । सावधान!! कहीं जेल का नाम सुनकर 'किं कर्तव्यविमूढ़ मत हो जाना, यदि धर्म की रक्षा करते हुए गवर्नमेण्ट को सत्परामर्श देते हुए जेल जाना पड़े तो क्या चिन्ता है इसमें मानहानि नहीं होती। हाकिमों के जिन अन्यायपूर्ण आचरणों से गवर्नमेण्ट पर सर्वसाधारण की अश्रद्धा हो सकती है, उनका यथार्थ प्रतिवाद करने में जेल तो क्या दीपांतरित भी होना पड़े तो क्या बड़ी बात है ? क्या इस सामान्य विभीषिका से हम लोग अपना कर्तव्य छोड़ बैठे ?" यह भारतीय पत्रकारिता के प्रारंभिक दौर की निष्ठा को इंगित करती है कि उस जमाने की पत्रकारिता आदर्शों और जीवन मूल्यों पर आधारिता रही है। हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास विश्व पत्रकारिता में भी स्वाभिमानपरक, आदर्शों और मूल्यों पर आधारित रहा है, आम लोगों को शिक्षित एवं जागृत करने, राष्ट्रीय स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीय निर्माण के हर मोड में पत्रकारिता राष्ट्रीय जीवन की पथ प्रदर्शक रही है। उनकी प्रजा की परिस्थितियों का सही परिचय देना चाहता हूँ ताकि शासक जनता को अधिक से अधिक सुविधा देने का अवसर पा सकें और जनता उन उपायों से अवगत हो सकें जिनके द्वारा शासकों से सुरक्षा पाई जा सके और अपनी उचित मांगे पूरी कराई जा सकें। कमोवेश पत्रकारिता के इसी आदर्श की आज भी जरुरत है। हालांकि वैश्वीकरण और आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा के युग में पत्रकारिता पर भी बाजारवाद हावी होने लगा है। | पत्रकार और कई समाचार पत्र सत्ता के पीट्ठू बनकर काम कर रहे हैं। स्वच्छ पत्रकारिता के साथ-साथ पीत पत्रकारिता भी घुस गई है। हिन्दी पत्रकारिता की जन्मस्थली कोलकाता में भी पत्रकारिता प्रलोभन का शिकार है। पत्रकार अर्थसत्ता के सामने हाथ फैलाए हुए हैं। कई समाचार पत्रों की स्थिति भी कमोवेश ऐसी है जो पत्रकार भूखे रहकर, जेल जाकर तथा दण्डित होकर भी अपने पत्रकारिता धर्म की पालना करना गर्व समझते थे, अब वही पत्रकार बिना मूल्यों की पत्रकारिता करते हैं और कोड़ियों में उनको खरीदा जा सकता है। हिन्दी पत्रकारिता के उद्गम से विकास की अब तक की यात्रा में यह विसंगति राष्ट्रीय पत्रकारिता में कलंक के रूप में जहां-तहां दिखाई देती है। पूरे देश पर इसका असर व्याप्त है। प्रारंभिक काल की हिन्दी पत्रकारिता ने राष्ट्रीय जीवन में चेतना के बीज बोने, राष्ट्रीय निष्ठा जगाने, राष्ट्रीय क्रांति का स्वरूप निर्धारित करने, स्वतंत्रता का स्वर मुखरित करने, जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए। स्वातन्त्रोत्तर काल (१९४८-१९७४) के बाद हिन्दी पत्रकारिता नवयुग में प्रवेश कर गई। इसके बाद २१वीं सदी की पत्रकारिता व्यापक और समृद्ध रूप में सामने आई है। आजादी के बाद देश कृषि, औद्योगिक और तकनीकी विकास, सुरक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हुआ । कृषि क्रान्ति ने अन्न-वस्त्र की समस्या से निजात दिलाई। पत्रकारिता हर क्षेत्र में राष्ट्रीय विकास के कर्णधारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर साथ-साथ रही। अब हिन्दी पत्रकारिता राष्ट्रीय समस्याओं और जीवन मूल्यों में आई गिरावट से लोहा ले रही है। देश में भ्रष्टाचार, आतंकवाद, मूल्यवृद्धि, मुनाफाखोरी, विदेशी घुसपैठ और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के षडयंत्र के खिलाफ हिन्दी पत्रकारिता सजगता से काम कर रही है। भारत को विश्व शक्ति के रूप में उभारने तथा राष्ट्रीय समग्रता को विकसित करने में हिन्दी पत्रकारिता की भूमिका बढ़ी है। आज देश में अखबारों की आवाज उतनी ही बुलन्द है जितनी संसद में किए गए निर्णयों का असर होता है। हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में (१८८५-१९१९) तक पत्रकारिता चेतना का स्वर्णिम काल रहा । इस काल में हिन्दी पत्रों ने ऐसा सिंहनाद किया कि राष्ट्रीय भक्तों का ज्वार आ गया। हिन्दोस्थान सर्वहितैषी, हिन्दी बंगवासी, साहित्य सुधानिधि, स्वराज्य, नृसिंह प्रभा, प्रभृति समाचार पत्रों ने ऐसा जागरण मंत्र फूंका कि अंग्रेजी शासकों की चूलें हिल गई । १८८५ में हिन्दोस्थान का प्रकाशक कालाकाँकर के राजा रामपाल सिंह ने किया। पंडित मदन मोहन मालवीय, अमृतलाल चक्रवर्ती, प्रताप नारायण मिश्र, शशिभूषण चटर्जी, गोपाल राम गहमरी, बालमुकुन्द गुप्त जैसे दिग्गज हिन्दी समाचार पत्रों के संपादक थे। इन समाचार पत्रों ने देशवासियों को अपने सांस्कृतिक मूल्यों और स्वदेश के प्रति जागरूक बनाया। पूना से प्रकाशित 'हिन्द केसरी' इलाहाबाद से 'स्वराज्य' ने स्वतंत्रता आन्दोलन को गति दी। इन समाचार पत्र के सम्पादकों को अंग्रेजी शासकों का कोपभाजन बनना पड़ा। वहीं हिन्दी पत्र स्वतंत्रता आन्दोलन के अगुवा सिद्ध हुए । राष्ट्रीय चेतना के अभ्युदय से आजादी का मार्ग प्रशस्त हुआ। वहीं हिन्दी पत्रकारिता स्वतंत्रता आन्दोलन की स्वर्ण गाथा बन गई। हिन्दी के समर्पित पत्रकारों का जीवनइतिहास बताता है कि उनकी लेखनी से अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। इसके बाद की पत्रकारिता व्यक्ति, समाज, राष्ट्र के नवनिर्माण के प्रति संकल्पित हो गई। १९४८ से १९७५ तक की स्वातंत्रोत्तर पत्रकारिता ने राष्ट्रीय निर्माण का कार्य किया। आज ● अष्टदशी / 175 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिन्दी पत्रकारिता त्वरित संचार साधनों और आधुनिकतम मुद्रण पत्रकारीय मूल्यों को चोट पहुंचाना है। पत्रकार का दायित्व बोध संयंत्रों के कारण ही नहीं बल्कि पत्रकारिता का कलेवर समग्रता भोथरा हो गया है। पत्रकारिता उद्देश्यपरक होती जा रही है, इसमें का है, जिसमें राष्ट्रीय जीवन के सभी पहलुओं को समेटा गया पीत पत्रकारिता, राजनीतिक चाटुकारिता जैसी-बुराइयाँ आ रही है। साहित्यिक, सांस्कृतिक अभिरूचि का विकास, हिन्दी भाषा हैं। सेक्स, हत्या, डकैती, भ्रष्टाचार, बलात्कार, नग्नता और के परिष्कार, लेखकीय शिल्प उत्कर्ष के साथ विषयों के प्रति छीछले विचारों ने भी नए युग की पत्रकारिता में स्थान बनाया है। अभिरुचि पैदा कर पत्रकारों ने राष्ट्रीय चेतना में एकाग्रता पैदा प्रसार संख्या बढ़ाने के इन तरीकों से पत्रकारिता की छवि धूमिल की है। आज हिन्दी पत्रकारिता की पताका लिए देशभर में भी हुई है, पत्रकार जनता में मानसिक उद्वेलन कर अखबार बेचते राजस्थान पत्रिका के संस्करण निकाले जा रहे हैं। हिन्दुस्तान, हैं। यह इस समय की बुराई है। पक्षपात और राजनीतिक नवभारत टाइम्स, जागरण, आज, पंजाब केसरी, नई दुनिया, चाटुकारिता पत्रकारों में बढ़ती जा रही है। २१वीं सदी में अंग्रेजी विश्वामित्र, भास्कर, महका भारत, नवभारत, दैनिक ज्योति, पत्रकारिता हिन्दी पर हावी हो रही है। इसका कारण हिन्दी अमर उजाला, सन्मार्ग, देशबन्धु, प्रभात खबर, जैसे अनेक पत्रकारिता में बढ़ती बुराई तथा पत्रकारों में जीजिविषा का अभाव समाचार पत्र राष्ट्र-सेवा में पत्रकारीय कर्म में जुटे हुए हैं। २१वीं है। पत्रकारों में पाठकों के प्रति दायित्व बोध घटता जा रहा है। सदी हिन्दी पत्रकारिता का स्वर्णिम काल माना जाता है। आजादी ____ पत्रकारों के संकीर्ण सरोकारों से हिन्दी पत्रकारिता कुंठित हो रही के आन्दोलन में जुटी पत्रकारों की पूर्व पीढ़ी ने हिन्दी पत्रकारिता है। हिन्दी पत्रकारिता की जन्मस्थली कोलकाता में तो हिन्दी को राष्ट्रीय-निष्ठा का आदर्श दिया है। इस आदर्श को देश की पत्रकारों की जो स्थिति है उसमें किसी भी स्वाभिमानी पत्रकार को युवा पत्रकार पीढ़ी ने आत्मसात कर रखा है। चोट पहुंचनी स्वाभाविक है। हम अपने हिन्दी पत्रकारिता के हिन्दी पत्रकारिता ने साहित्यिक, शैक्षणिक, धार्मिक, इतिहास को यहां लज्जित कर रहे हैं, हिन्दी पत्रकारों में अपने कृषि, स्वास्थ्य, विज्ञान, उद्योग, फिल्म पत्रकारिता, महिला, खेल वैभवशाली इतिहास को स्वर्णिम ही बनाए रखने तथा हिन्दी एवं बाल पत्रकारिता जैसे नए विषय निकाल कर इन विषयों पर पत्रकारिता के माध्यम से देश एवं मानवता की सेवा करने की अगर ललक है तो स्वस्थ चिन्तन से पत्रकार की गरिमा खुद में अलावा इन विषयों पर देशभर में हजारों पत्र-पत्रिकाएं निकाली फिर से जगानी होगी तभी पूर्वजों की विरासत और भावी हिन्दी जा रही हैं। हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास भविष्य में देश देने पत्रकारिता को आगे ले जाया जा सकेगा। वाला तथा पत्रकारिता के आदर्शों और मूल्यों से ओत-प्रोत है। निदेशक, आई० एम०ए० बीकानेर इस ऐतिहासिक वैभव ने २१वीं सदी की पत्रकारिता को भी दिशा दी है। पत्रकारिता जीवन मूल्यों के विकास के लिए बने हुए हैं। सैकड़ों ख्यातनामा पूर्वज पत्रकार है, जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को विश्व-पटल पर साख दिलाने के लिए तपस्या की है। पत्रकारों को संस्कारिता किया है। पत्रकारों की नैतिकता के लिए खुद ने आदर्श पत्रकार का जीवन जीया है। की हिन्दी पत्रकारिता सुहावने भवन के रूप में खड़ी है। इस राष्ट्रीय निर्माण की अखिल धारा को सतत रूप से आगे बढ़ाकर आदर्श पत्रकारिता धर्म से २१वीं सदी में पत्रकारिता के स्वर्णिम युग की उम्मीदें पूरे राष्ट्र को है। क्या २१वीं सदी की पत्रकारिता व्यवसायोन्मुखी होने से पत्रकारिता के मूल्य पीछे छूटते जा रहे हैं? यह सवाल वर्तमान पत्रकारिता का अह्म सवाल बन गया है। हिन्दी पत्रकारिता के स्वर्णिम इतिहास को चांदी के टुकड़ों में आज खरीदा जा सकता है? पत्रकार का व्यवसायी होना सच में 0 अष्टदशी / 1760