Book Title: Heervijaysuri no Lekh
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरविजयसूरिनो लेख ____-मुनि महाबोधिविजयजी ज्ञानादि पांच आचारोने स्वयं पाळे तथा आश्रित पासे पळावे एनुं नाम आचार्य. पंचाचारना पालनमां उद्युक्त आचार्य भगवंतो स्वशिष्यवर्ग पंचाचारना पालनमां अप्रमत्त रहे ते माटे अवसरे अवसरे नियमावली घडता होय छे, अने श्रमणो पासे तेनुं पालन करावता होय छे. जूनी-नवी अनेक नियमावलीओ आजे पण प्राप्त थाय छे जे पट्टक तरीके पण ओळखाय छे. प्रस्तुत छे बे हजार जेटला विशाळ श्रमण समुदायना नेता, जगद्गुरु-श्री होरविजयसूरिमहाराजे पोताना आश्रितवर्गना पंचाचारना निर्मळ पालन अर्थे बनावेली नानकडी नियमावली. अलबत्त, आ लेखमां तेओश्रीए नियमावलीने बदले विबुधजन विज्ञप्ति एवी संज्ञानो प्रयोग को छे. श्री विजयदानसूरिगुरुभ्यो नमः / संवत् 1640 वर्षे पौषासित 10 गुरौ श्रीहीरविजयसूरिभिलिख्यते। अद्यप्रभृति विबुधपद विज्ञप्तिरेतद् विषये कर्तव्या, यो श्री दशवैकालिक -श्री आवश्यकनियुक्तिभाष्य-पिंडविशुद्धि-कर्मग्रंथ-योगशास्त्र-क्षेत्रविचार-संग्रहणी -उपदेशमाला-षड्दर्शनसमुच्चय-प्रवचनसारोद्धारादि 5000 ग्रन्थकण्ठपाठी जघन्यतोऽपि तथा हैमद्वादशपादप्राकृतवृत्ति सहिताथवा प्राकृतवृत्तिसहितप्रक्रिया-सारस्वतं वा तथा साहित्ये वाग्भट्टालङ्कार-काव्यकल्पलता-छन्दोऽनुशासन-वीतरागस्तव-शोभनस्तुति- जिनशतकषड्दर्शनसमुच्चयटीका-नाममाला-लिङ्गानुशासन-धातुपाठ-तीर्थकृच्चरित्रादि तथा सिद्धान्ते आवश्यक-दशवैकालिक-उत्तराध्ययन-ओघनियुक्ति-नंदी-अनुयोगद्वारादि तथा विचारग्रन्थे सङ्ग्रहणी-क्षेत्रविचार-कर्मग्रन्थ-भाष्य-पिण्डविशुद्धि-सामाचारी प्रभृति तथा ज्योतिःशास्त्रं नारचन्द्रादि अर्थतः पाठयति, तथा तपः मासमध्ये षडुपवासकारी-चतुर्मासक सांवत्सरिकषष्ठाष्टमकारी, तथा मार्गातीत-कालातीतत्यागी, तथा रोगादिकारणं, विना दिवा त्रियामाद्ययामे स्वापत्यागी, त्रिविधाहारैकभक्तकारी, तथा आच्छादितास्य-जल्पनप्रमार्जनोपेतचलन-विहाराहारावश्यकप्रतिलेखनादिषु जल्पनप्रतिषेध-समिति- गुप्ति'प्रभृतिसंविज्ञसामाचारी प्रवर्तकश्चेति, स्वसंघाटकमध्ये विशेषतः / तथा प्राक्तनविबुधैरेतद्विषये यतितव्यमन्यथा। तपस्यादेशविषये विचारः। श्रीकल्याणमस्तु श्रमणसङ्घाय॥ श्रीमल्लिपीकता: पं. कनकविजयसविधौ पट्रोऽस्ति। 1. मद्धृदि मेधां निधेहि. इत्यपि।