Book Title: Haribhadrasuri Virachit Sam Sanskrit Prakrit Jin Sadharan Stavan
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीहरिभद्रसूरिविरचित समसंस्कृत-प्राकृत जिन साधारण-स्तवन सं. विजयशीलचन्द्रसूरि याकिनीसूनु-भवविरहाङ्क श्रीहरिभद्राचार्यनी अप्रगट रचना आपणने जडी आवे, ते आपणुं सौभाग्य ज गणाय, भंडारोए केवी केवी मूल्यवान कृतिओ पोताना उदरमां संग्रही राखी छे, ते तो आवां फुटकर पत्रोने फेंदीए अने तेमांथी आवां रत्नो जडे त्यारे ज समजी शकाय. आ फुटकर पत्र पण मने मुनि धुरंधर विजयजी तरफथी ज सांपड्युं छे, तेना आधारे संपादन करी अहीं रजू करुं छु. मने लागे छे के आ रोते ज फेंदतां फेंदतां क्यारेक कोई अज्ञात पण अतिमूल्यवान रचना पण चडी आवे खरी. जिन खोजा तिन पाईयां - ए उक्तिने लक्ष्यमा राखीए अने शोधकार्य करतां ज रहीए - ए ज आनो सार छे. जे पत्रमाथी आ कृति सांपडी छे, ते पत्र छाणीना श्रीवीरविजयजी शास्त्रसंग्रहनुं छे, अने १६मा शतकनुं लखायेलुं छे; ए पत्रगत अन्य रचनाना छेडे संवत् १५११ जोवा मळे ज छे. अङ्गलिदलाभिरामं सुरनरनिवहालिकुलसमा'लीढम् । देव ! तव चरणकमलं नमामि संसारभयहरणम् ॥ १ कामकरिकुम्भदारण ! भवदवजलवाह ! विमलगुणनिलय ! । किकिल्लिपल्लवारुणकरचरण ! निरुद्धचलकरण ! || २ मा यारेणुसमीरण ! भवभूरूहसिन्धुर ! निरीह ! । मरणजरामयवारण ! मोहमहामल्लबलहरण ! ।। ३ भावारिहरिणहरिवर ! संसारमहाजलालयतरण्ड ! । कलिलभरतिमिरत्रासुरविमण्डल ! गुणमणिकरण्ड ! ॥ ४ अमरपुरन्दरकिनर-नरवरसन्दोहभसलवरकमल ! | करुणारसकुलमन्दिर ! सिद्धिमहापुरवरनिवास ! ॥ ५ सुसमयकमलसरोवरसुरगिरिवर ! सारसुन्दरावयव ! । चिन्तामणिफलसङ्गम ! रागोरू गगरुड ! वरचरण ! ॥ ६ हरहासहारहिमकरहिमकुन्दकरेणुधवल ! समचित्त ! । अकलङ्क ! सुकुलसंभव ! भवविरहं देहि मम देव ! ॥ ७ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [1011 एवं संस्कृतवचनैः प्राकृतवचनैश्च सर्वथा साम्यम् / / विदधाविनुतो मे जिनेश्वरो भवतु सुखहेतु // 8 इति सर्वश्री जिन साधारणस्तवनं समसंस्कृतं श्रीहरिभद्रसूरिकृतम् // नोंध : - हरिभद्राचार्यनी प्रसिद्ध "संसारदावानल०"ए समसंस्कृत-प्राकृत स्तुतिथी परिचित होय तेमने उपर निर्देशेला 1, 2, 3, ए अंकोवाळो पाठ जोतां ज तेना जेवी ज संसारदावानल० गत शब्दावली अवश्य याद आवशे; 1. बहुलपरिमलालीढलोलालिमाला० 2. संसारदावानलदाहनीरम्० 3. धूली हरणे समीरम् // मायारसादारण० ---x----