Book Title: Gyanbhandar Prashasti
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानभंडार प्रशस्ति आ. विजयप्रद्युम्नसूरि प्राचीन प्रतिमाना शिलालेखो, ग्रन्थोनी प्रशस्तिओ, ग्रन्थ लेखकनी पुष्पिकाओ, दानपत्रो, ग्रन्थ ज्ञानभंडारमां समर्पित कर्यानी नोंधो ऐतिहासिक दृष्टिए जेम महत्त्वनी छे, तेम इतिहासनी कडीने सळंग जोडवामां तथा तेने समजवामां उपयोगी छे. तेना द्वारा ते ते काळना सामाजिक संदर्भों मळे छे, ते समयनुं एक व्यापक दर्शन सांपडे छे अने तेमांथी तेना पछीनी पेढीने प्रेरक बोध पण मळे छे. ए ज रीते ए प्रशस्तिओना जेवोज एक महत्त्वनो प्रकार छे - चित्कोशप्रशस्ति. एटले के आखा ज्ञानभंडारनी प्रशस्ति. आपण एक अगत्यनो प्रकार छे. • आवी प्रशस्तिओ पण मळे छे. आवी एक प्रशस्तिनो उल्लेख मुनि जिनविजयजीए विज्ञप्तित्रिवेणीनी पहेली आवृत्तिनी प्रस्तावनामां कर्यो छे. एवीबीजी एक प्रशस्तिनी वात अहीं प्रस्तुत छे. पाटण भाभानां पाडाना विमलगच्छना जैन उपाश्रयना ज्ञानभंडारमां केटलीक प्रतो सचवाई छे तेमां थोडीक प्रतो ए रीते एकज श्रेष्ठिए एक ज गुरुमहाराजना उपदेशथी एक ज लहीया द्वारा लखावी होय तेवी प्रतो छे. वि.सं. १५५७मां तपागच्छनी लहुडी पोसाळना प्रसिद्ध आचार्य श्री हेमविमलसूरीश्वरजी महाराजना शिष्य श्री जिनहंस अने तेमना शिष्य अनंतहंस ना उपदेशथी सुश्रावक पासवीरे एक दिव्य भंडार लखाव्यो छे, तेमां छ लाख अने छत्रीस हजार श्लोक प्रमाण ग्रन्थो लखाव्या छे. पिताजी पासवीरे आ कार्यनो प्रारंभ करेलो अने तेओना स्वर्गवास पछी तेओना सुपुत्र रामे आ कार्य पूर्ण कर्यं. लखेला ग्रंथो शुद्ध करवा पंडित पण राखेलो. ए प्रशस्तिनो सारांश आ प्रमाणे छे. बनासकांठा भीलडी गाम. त्यां पोरवाड पाल्हणसिंह तेमनां पत्नीनं नाम पण पाल्हणदेवी. तेमनो दीकरो डूंगर, तेमनी "सा' नामे पत्नी. तेमना बे पुत्र सीधर अने शोभाक. आ बन्ने भाइओ अणहिल्लपुर पाटणमां Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवीने वस्या. बन्ने "परीक्षक" तरीके खूब जाणीता थयेला. सीधरने कपूरी नामे अत्यन्त गुणियल पत्नी. अने तेमनो पुत्र ते पासवीर ते पण परीक्षकोमां श्रेष्ठ तरीके पंकायेलो. तेणे श्रेष्ठ कही शकाय तेवुं जिनेश्वर परमात्मानुं गृहचैत्य बनावरावेलुं ते आ चित्कोश लखावराव्यो त्यारे पण अनेक मनुष्योना चित्तने आश्चर्य चकित करे छे. 7 आ पासवीरने पूतलीबाई नामे पत्नी. २. देवाक ३. वर्धमान. , + अने तेना त्रण पुत्र - १. राम, रामनां पत्नी बे, कीकी अने मानी. देवाकनां पत्नी नुं नाम रमाइ अने वर्धमाननां पत्नी हांसी देवाकना पुत्रनुं नाम जगपाल अने वर्धमाननां पुत्रनुं नाम सूरचंद. राजस्थानमां धरणासाहे जे आचार्य श्रीना वरद हस्ते राणकपुरना विश्वविख्यात चतुर्मुख प्रासादनी प्रतिष्ठा करावी ते आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजी महाराज. तेमना पट्टशिष्य मुनिसुन्दरसूरि (जेओ सहस्रावधानी कहेवाया). तेमना शिष्य जयचन्द्रसूरिजी अने तेमना शिष्य रत्नशेखरसूरिजी तेमना पट्टशिष्य लक्ष्मीसागरसूरि, तेमना शिष्य सुमति साधुसूरिजी अने तेमना पट्टशिष्य आचार्यश्री विमलसूरिजी तेमना शिष्य श्री जिनमाणिक्य अने तेमना शिष्य श्री अनंतहंस ना उपदेशथी परीक्षक (परीख) पासवीरे आ चित्कोश (ज्ञानभंडार) लखाववानो प्रारंभ कराव्यो अने पछीथी तेमना पुत्रे रामे (वि.सं. १५५७) आ महान कार्य पूर्ण कराव्युं. छ लाख अने छत्रीस हजार श्लोक प्रमाणे ग्रन्थो लखाव्या. शुभभूषण नामना पंडिते ए लखेला ग्रन्थनुं संशोधन कर्यु, वळी आ ग्रन्थोने राखवा माटे ग्रन्थनी आगळ पाछळनी पाटली, पण रसपूर्वक बहुमूल्यवाळी बनावरावी अने आ आखा ज्ञानभंडारनुं सुंदर मरोडदार अक्षरोमां भगीरथ लेखन कार्य करनार लहीया माढ - त्रवाडी ज्ञातीय वासा तेना पुत्र श्रीनाथे तथा तेमना भाइ गोविंदे आ लेखन कार्य पूर्ण कर्तुं छे. आम आ २४ श्लोकनी संस्कृत प्रशस्ति पण मनोरम छे. एकवीसमा श्लोकमां 'फरंगी' अने 'कतीफक' आ बे शब्दो फारसी भाषाना जणाय छे. कोई ए भाषाना विद्वान तेना अर्थ जणावशे तो आनंद थशे. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसंहार विक्रमना सोळमा सैकामां ग्रन्थलेखनक्षेत्रे नोंधपात्र काम थयुं छे. आजे प्राचीन ज्ञानभंडारोमा जे हजारो हस्तप्रतो मळे छे तेमां घणो भाग सोळमा सैकानो छे अने जेटली सुवर्णाक्षरी 'श्रीकल्पसूत्र' वगेरे मळे छे ते तो प्रायः बधीज. आजे लगभग ४५ थी ५०नी संख्यामां सुवर्णाक्षरी ग्रन्थो मळे छे ते बधा ज सोळमा सैकामां लखायेला मळे छे. ज्ञान प्रत्येनी अपार भक्ति अने उपदेशकोना उपदेशनुं केन्द्र आ ज्ञानभक्ति हशे (आजे चैत्य भक्ति छे तेम-) तेनुं ज आ सुपरिणाम आपणे मळ्युछे. ॥चित्कोश प्रशस्तिः ॥ श्रीमन्महे महेभ्यश्रेणिसमृद्धेऽत्र भेलडी नगरे। पूर्वं पाल्हणसिंहः प्राग्वंशावतंसकः समऽभूत् ।। १ ।। तत्रैव सुजनरंजन-जिनभवन विधापनैकविधिना यः । सुकृतार्थी सुकृतार्थीचकार निजमर्जितं वित्तम् ॥ २ ॥ पाल्हणदेवी नाम्नी गृहिणी स्पृहणीयसद्गुणा तस्य । निजनिर्मलतरपक्ष-द्वितययुता राजहंसीव ॥ ३ ॥ डूंगरनामा तनयस्तयोरभूद् भूरिगुणगणोपेतः । सारूः सा रूपवती सती च सीतेव यद् युवती ॥ ४ ॥ तत्तनयौ प्रत्तनयौ विशिष्टविनयादुभौ शुभौ जातौ । प्रथमः सीधरनामा सोभाक: शोभते ह्यपरः ॥ ५ ।। निर्मलदृष्टिनिरीक्षणविशुध्धनाणकपरीक्षणपराभ्याम् । याभ्यामणहिल्लपुरे परीक्षकत्वाभिधा दधे ॥ ६ ॥ सीधरवधूः कपूरी गुणैकपूरैः प्रपूरितदिगंता । विनय विवेक विचार सागर सदाचारश्रृंगारा ॥ ७ ॥ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सीधरः प्रतिष्टां कथं न लभते परीक्षकप्रवरः । श्री जिनपति प्रतिष्ठां विधापयामास विधिना यः ।। ८ ।। तत्तनय पासवीरो गुणगंभीर: परीक्षिकोटीरः । यत् कारित गृहचैत्यं कस्य न चित्तं चमत्कुरुते ॥ ९ ॥ नवनवदंतभ्रमरी गजाऽश्व नररथसुतोरणादियुतम् । संप्रत्यपि चैत्यमिदं नृणां प्रीणाति चित्तानि ॥ १० ॥ पूतलि नाम्नी तस्य च भार्या शुभकार्यकरणनिष्णाता । देव गुरु निबिड भक्तिव्यक्तिप्रतिवासितस्वांता ।। ११ ।। जिनशासन प्रभावक पितृपक्ष स्वसुर पक्ष संपूर्णा । शोभा सौभाग्यवती पतिव्रता पूतलि र्जयति ॥ १२ ॥ पुत्रास्तयोस्त्रयोमी रामा देवाख्य वर्धमानाख्याः । विश्वोपकारकरणप्रगुणाः सगुणा विराजन्ते ॥ १३ ॥ कीकी-मानी नाम्ना भार्या युगलं विभाति रामस्य । देवाकस्य रमाई हांसीरिह वर्धमानस्य ॥ १४ ॥ देवस्य वर्धमानस्य पुत्रौ जातौ क्रमादिमौ । पुण्यपाल: सूरचंदो सूरचंद्रसमप्रभौ ॥ १५ ।। ततश्च ॥ श्री सूरीश्वर सोमसुंदर गुरु प्रष्टाः प्रतिष्टास्पंद । तत्पट्टे मुनिसुंदराख्य गुरवः सौभाग्यभाग्यालयाः । श्रीमंतो जयचंद्रसूरि गुरवः प्रज्ञाप्रकर्षाद्भुताः । सूरींद्रा गुरु रत्नशेखर इतिख्यातावदातास्ततः ।। १६ ।। लक्ष्मीसागरगुरवस्तत्पट्टे सुमतिसाधुसूरिवराः । तत्पट्टे विजयंते संप्रति गुरुहेमविमलसूरीन्द्राः ॥ १७ ।। तेषां च विजयराज्ये श्रीजिनमाणिक्यगुरुविनेयानां । श्रीगुरुअनंतहंसप्रवरगुरूणां सदुपदेशात् ।। १८ ।। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 नग शर तिथि मित वर्षे हर्षेण परीक्षिपासवीरेण / चित्कोशे लेखनस्य प्रारंभः कारयामास // 19 // साधर्मिकवात्सल्यश्रीकल्पमहाद्यगण्यपुण्यानि / कुर्वन् बंधुसमेतस्तदंऽगजो राम नामायं // 20 // बहुमूल्यपट्टिकाढ्यं स्फारफरंगी-कतीफकसुपृष्टं / सज्जातरूपरूपं वराक्षरं चतुरचित्तहरम् / / 21 // षट्लक्षा षट्त्रिंशत्सहस्रमानसमग्रसिध्धांतं / / निजजनकप्रारब्धं संपूर्णमलीलिखद्भक्त्या / / 22 / / कुलकं // संशोधितः स्वशक्त्या शुभभूषणनामपंडितप्रवरैः / विबुधजनवाच्यमानः चित्कोशोऽयं चिरं जीयात् // 23 / / चातुर्विद्य मोढ ज्ञातीय त्रवाडी वासा सुत श्रीनाथ लिखितं श्री: म चातुर्विद्य मोढ ज्ञातीय त्रवाडी वासा सुत गोव्यंद लख्यतं / / श्रीः॥