Book Title: Gurustuti Rup Tran Laghu Krutio
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गरुस्तुतिरूप त्रण लघुकृतिओ __ संपा. भंवरलाल नाहटा कलकत्ता नोंध : (जेसलमेरस्थित भंडारनी १४मा शतकनी ताडपत्र-पोथीमां संगृहीत केटलोक लघुकृतिओनी नकल, जैन मनीषी पं. श्रीभंवरलाल नाहटा (कलकत्ता) पासे छे. आ कृतिओ अप्रकट छ, अने मुख्यत्वे खरतरगच्छना आचार्यो साथे संबंध धरावे छे. श्रीनाहटाए लखी मोकलेली त्रण विशिष्ट लघुकृतिओ अत्रे प्रस्तुत छे.) श्रीमोदमन्दिरगणि विरचित श्रीजिनप्रबोधसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि चन्द्रायणा ॥ वंदहु निम्मलनाणनिहि, जिणपबोहसुमुणीसु । लद्धिहिं गोयम अवयरिउ, सूरिजिणेसरसीसु ॥१॥ तरेचच्चचच्चा ॥ सीसि जिणिसरसूरिस्स गुणसायरो, लद्धि किरि अवयरिउ गोयमगणहरो । सयलपुहविंदविदेण वंदियपओ, नाणनिहि नाणनिहि नाणनिहि वंदहो ॥१॥ सोहइ सायरु चंदु समु, नाणपबोहमुणिराउ । भवियकुमुयपडिबोहकरु, तिहुयणि जो विक्खाउ ॥२॥ तरेचच्चचच्चा ।। जोय विक्खाउ गुरु सच्चजणवल्लहो, मंदपुन्नाण जंतूण वे दुल्लहो । कित्तिजुन्हाइ जो सयलजगु बोहण, चंदसमु चंदसमु चंदसमु सोहण ॥२॥ मेरुसेहरु पुहवि जयड, जाम मेरुगिरि भारु । भवियह भवसंतावहरु, चरणलच्छिउरिहारु ॥३॥ तरेचच्चा तरेचच्चा || हारुउरिचरणलच्छीहि जो छज्जए, पंचबाणस्स बाणेहि तो भिज्जए । सूरिजिणचंद भव्वाण भवतमहरो, जयउ गुरु जयउ गुरु जयउ गुरु सेहरो ॥३॥ कामलदेवि सधनधर, देवराज अनुमंति । जाण पुत्तु जिणचंदगुरु, जाउरुषसमकंतु ॥४॥ तरेचच्चचच्चा तरेचच्चा ॥ कंति पसारउ विहसियकंचणपहो, सुद्धसिद्धांतवक्खाणहयकुप्पहो । उयरि उप्पन्नु जसु सुगुरु साइक्कला, धन्नं सा धन सा धन सा कोमला ॥४॥ सायरु खारउ रवि तवइ, चंद कलंकिउ देह । केणि उपमिज्जइ इह सुगुरु, निरुवमगुणगणगेहु ॥५।। तरेचच्चा तरेचच्चा ।। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 93 गेहु निरुवम सह गुणगणह इह सुहगुरु, केण उवमिज्जए भचिय कप्पतरु । चंद सकलंकुधर तवइ दिवसेसरो, खारुजलु खारुजलु खारुजलु सायरो ||५|| ॥ इति श्री जिनप्रबोधसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि-चन्द्रायणाकाव्यं समाप्तम् ।। कृतिरियं मोदमन्दिरगणीनाम् ॥ श्री सज्जनश्रावक कृत श्रीजिनेश्वरसूरि कुण्डलिया चउविह धम्मु चलणु जसु धीरह, पंचसमिति तिहुगुपित सरीरह । पंचाणणुवय पंच धरतउ, जिणिसरसूरि तवतेयं फुरंतउ ॥१॥ तवतेय फुरंतउ गयणि जंपिउ, कामकरिहि जु डारणो, कुंभयल संगम बलतलप्पवि, कोहमयविडारणो । सुइ सीहु देसण रविण गज्जइ, भवियबोहसुप्पहे, जयवंतु जिणिसरसूरि गणहरु, धम्ममग्गि चउविहे ॥१॥ भंजिउ मोहखंभ जिणि लीलिण, सकल निविड साय तोडिय मण । निज्जिउ कोहु दोसु अड चंडउ, जिणेसरसूरि करि धरि विहि दंडउ ॥२॥ करि धरिवि दंड पयंडु चंडिम, मोह वणु जिणि भग्गओ हरिगच्छविंझगइंद-मुर्णिदगणमाहि माणिकदंडओ । विहि धम्म सम्म सहाव सीलिण गुडगहि विरउ गंजए . झपुर्णर्ण झेंझेंकार जिणेसरसूरि कुग्रह भंजए ॥२॥ सील सरोवर पुडइणि मंडिउ, रायहंसि खणु इक्कु न च्छंडिउ । जिणेसरसूरि कमलु वर अच्छइ, बहुगुणभरिउ भविउ जणु पिच्छइ ॥३॥ पिच्छि गुणच्छइ छक्कदलवरकम-सुहगुरु भवियणा x x x x x x x x | वरनाण जलपुड इणि सुसंजमि चरणसरकरुसिरे गणुर्गुणुणु भमर मुणिंद रसु सिद्धंतु तहिं सीलस्सरे ॥३॥ छज्जइ कमणुप्पमइ है सुहगर गरुयबुद्धि मज्जाय...यर हर । जिणसासणह करइ पब्भावण जिम सुरिंदु सुरगिरिनिच्छलमणु ॥४॥ मणु करिवि निच्चलु भविय सुहगुरु-वयणि भुवण करवियः Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 उज्जित सत्तुंजओ सुतारणु थंभणउ रच्चाविया / धर जाव सुरगिरि भुवण ससाय वहइ गंगतरंग ए अर्णर्णर्ण मंगलु सूरि जिणेसरसूरि सुहमउप्पम छज्जए // 4 // / / इति श्री जिनेश्वरसूरिकुंडलिया-काव्य, समाप्ता कृतिरियं महं. सज्जन श्रावकस्य / / महं. सज्जनश्रावक कृत श्रीजिनप्रबोधसूरि-नाराचबंधछंद जु वीरनाह पाय पट्टभत्तिचंगजुगवरो जु नवहभेय बंभचेरगुत्तिगुत्तु गणहरो / सुहमसामि जंबुसामि चरणकमल महुयरो सु सुयणवन्नि जिणपबोहसूरिराउ जुगवरो // 1 // जु सतरभेय संजमस्स पालणो पवत्तए जु दसहभेयज इह धम्म नय विचित्तु पालए / पंचसमिति तिन्निगुपति सुद्धसीलसुंदरो सु सुयणवत्रे(नि) जिणपबोहसूरिराउ जगवरो // 2 // जु गच्छ पवर मुणिहि माहि लीह पामए जु गुरुय पंचवयह भारु लीलमत्त धारए / सहसअट्ठदसह-सील-अंग जोय धुरंधरो सु सुयणवन्नि जिणपबोहसूरिराउ जुगवरो / / 3 / / जु पउमसेय लेस सेह अंगसोहए जु चउकसाय दलिवि दप्पु सुविहि मग्गु जोयए / जु जमिय वाणि भविय नाणि बोहए मुणीसरो सु सुयणवन्नि जिणपबोहसूरिराउ जुगवरो // 4 // // इति श्रीजिनप्रबोधसूरिनाराचछंद, समाप्ता कृतरियं महं० सज्जनश्रावकस्य / /