Book Title: Gujaratima Mahapran Vyanjanno Alpapran Thavo
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरातीमां महाप्राण व्यंजननो अल्पप्राण थवो अंत्यस्थाने १. खनो का सं. आशिषा खरं अर्धतत्समोमां ) आशिखा > आशका सं. कालुष्य > कालुक्ख> काळख, काळक सं. धनुष्य > धनुख > धनक सं. संतोष > संतोख - संतोक २. घ नो ग : प्रा. डुंघअ> डूंघो, डूंगो सं. स्ताध, ताध > ताग, (अ) थाग सं. शिखा > सिघा > शघ > शग सं. सिंह ३. छ नो च : सं. भृगुकच्छ > भरुअच्छ भरूच सं. कपिकच्छु > कौवच ४. झ > ज : सिंघ > संग ('अभेसंग' वगेरेमां) प्रा. तुज्झ > तुज मुज्झ > मुज सं. संबुध्यते > प्रा. संबुज्झइ > समजे सं. संध्या > प्रा. संज्ञा > सांज सं. बाह्य > प्रा. बज्झ >> बाज (खेडावाळ) सं. स्निग्ध > प्रा. सिणिज्झ > सणीजुं ठ नोट : ५. सं. काष्ठ > कटु > काठ, काट (माळ) सं. धृष्ट > घट्ट > धीठ, धीट सं यष्टि, प्रा. लट्ठि > लाठ, लाट हरिवल्लभ भायाणी Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 125 (प्राकृतमां आ प्रक्रिया प्रा. उट्ट < सं उष्ट्र, प्रा. इट्टा< सं. इष्टा, इष्टका एमां जोवा मळे छे. लोकबोलीमां मोंपाट्य मिोंपाठ) ६. ढ नो ड: सं. आषाढ : अशाड सं. अर्ध > प्रा. अड्ड (जेम के सं. सार्ध परथी साडा (पांच वगेरे). साड (त्रीस),अष्ट > अड्ड> आढ > आड : आडत्रीस < प्रा. अड्डतीस < सं. अष्टत्रिंशत् वगैरे), अड (सठ),< प्रा. अड्डसट्टि, < सं. अष्टषष्टि वगैरे.) सं. स्तब्ध > प्रा. ठड्ढ > ठंडु सं. श्रेदि > प्रा. सेदि, शेड सं. श्रिष्टि, प्रा. श्रीढि > सीडी (उष्माक्षर पछीनो महाप्राण लोकबोलीमां अल्पप्राण उच्चारातो होय छे: काष्ट, कनिष्ट, श्रेष्ट, स्वादिष्ट, अवस्ता, आस्ता वगैरे) ७. थ नो त : सं. शल्यहस्त > प्रा. सेल्लहत्थ > शेलत सं. वितस्ति > प्रा. विहत्थि > वहेंत प्रा. नेसत्थी > नेस्ती ८. ध नो द : सं अर्ध > प्रा. अध्द > अद : अदकचा , अच्छेर वगैरेमां सं. एकार्ध > एकाध > एकाद सं. सिद्धि > सद (बोरसद वगेरे गामनामोमां) लोकबोलीमां बाद (बाध), शीद, सराद (श्राद्ध) वगेरे अनुस्वार पछी : सं. आसंध > आसंद सं. दशबंध > दसोंदी सं. वालबंध > वाळंद सं. वर्षबंध > वरसोंद (लोकबोलीमां बंद(बंध) मध्यवर्ती Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 छ नो च : सं कच्छभ, कच्छप>काचबो ध नो द: सं. अधिक > अदकुं भ नो ब : सं. अभिलाषा>अबळ खा सं. अद्भुत > अदबद सं. अभक्ष्य > प्रा. अभक्ख> अवखो, अबखे अनुस्वार पछी : सं. अत्यद्भुत > प्रा. अच्चब्भुअ> अचंबो सं. करंभ > करंबो सं. कुसुंभ > कसुंबो सं. डिंभ > डेबु (संस्कृतमां लंभ परथी लंब अने डिंभ तेमज डिंब मळे छे. सं. मल्लस्कंभ > प्रा. मल्लखंभ > मलखंब > मलखम प्रा. डंभ > डांभ > डाम शब्द चर्चा अकड अकडनुं भारवाचक रूप अकड, जेम जुट्ठो, साच्चे, चोक्कस, नक्खोद, जब्बर वगेरे अकडाईं नामधातु. 'शरीर अकडाई जq'. भाववाचक नाम अकडाई वगेरे. लाक्षणिक अर्थ 'गर्वीलु' संस्कृत 'स्तब्ध' प्रा.'थड्डे' 'अक्कड, दर्प वाळु'. सरखावो अंग्रेजी stiff. (टर्नर क्रमांक १०१३ आक्कड.) गुजराती वगेरेमां अकड छे ते जोतां मूळ तरीके आक्कड उपरांत अक्कड पण होय. मूळ संस्कृत आकृत होवानी संभावना टर्नर रजू करी छे, पण अर्थो वच्चे घणो फरक छे. गूळ अज्ञात मानवं वधु योग्य छे. ★★★ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 127 अकबंध बंध साथे समस्त बीजा शब्दो : अंकोडाबंध, कटीबंध, (मकान) छोबंध, बेलाबंध, मेडीबंध, घडीबंध, शिखरबंध. उपरांत पाघडीबंध, चमरबंधी, कमरबंध नाम उपर्युक्त बंध वाळा विशेषणात्मक समासोमां मूळे तो बंधने बदले बद्ध छे . पछीथी बद्ध अने बंध वच्चे गोटाळो थयो छे. श्रेणीबद्ध अने कटीबद्ध, सिलसिलाबद्ध (पुरावा)मां बद्ध छे ज. अकबंध, जेनो बांधो, बंध तूटेल नथी, जे अखंड छे ते, साबूत, एमांना अक ना मूळमां सं. अक्षत, प्रा. अक्खअ होवानी अटकळ टके तेम नथी. वधु संभव मूळ तरीके एकबद्ध, इकबद्ध होय एम लागे छे. सरखावो अकसर 'मोटेभागे', मूळे अपभ्रंश इक्कसरि. अकबंध एटले 'जेनो एक ज बंध छे'. जे अतूट छे, जे एकमां बद्ध छे, जेना भागला नथी पड्या. ते सरखावो हिंदी अकटक 'एक टके'. ★★★ अघरूं १. अर्थद्रष्टिए सं. अग्राह्य 'ग्रहण करवं मुश्केल'- एनो आ पर्याय छे. पण ध्वनिदृष्टिए अग्राह्यमांथी अर्धतत्सम लेखे पण अघळं निष्पन्न थइ शके तेम नथी. २. अग्राह्य परथी अग्राज > अगराज 'जे खावा योग्य नथी, जे खावू निषिद्ध छे' ए शब्द ऊतरी आव्यो छे. ३. सं अग्रहकं , अप. अग्रहउं > अघ्रउं> अघळं एवे क्रमे अघरु बन्यो लागे छे. पूर्ववर्ती हकार साथे जोडाईने महाप्राण बन्यानी प्रक्रिया अर्धतत्सममां जाणीती छे. ग्रहण > घरण, ग्रहणक > घरेणुं, ग्राहक > घराक, विग्रह > वघरो, संग्रह > संघरो, उदग्राहण > उघराणुं, ब्राह्मण > भ्रामण, बृहस्पतिवार > भ्रस्पतवार, ग्रहिल्ल> घेखें, गहन > घेन, मोहडु > मोर्चा, गद्दहड > गधेडो वगैरे (जुओ 'व्युत्पत्तिविचार', पृ.१५२,१६०, 'भाषानिमर्श' पृ. १५९) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अघरणी १. अघरणी 'सीमंत' 'पहेलवेलो गर्भ रहे त्यारे सातमे मासे करातो उत्सव' अघरणियात 'अघरणीवाळी स्त्री', बोलीनां रूप अधयणी, अघअणी छे. २. पंदरमी सदी पहेलांना भीमकृत 'सदयवत्स - वीर-प्रबंधमां' (संपा, मंजुलाल मजमुदार, १९६०) आघरणी एवा रूपे आ शब्दनो प्रयोग थयो छे. त्यां प्रसंग एवो छे के एक ब्राह्मणनी वहुना सीमंतना उत्सवमां ज्यारे ते वाजतेगाजते पीयरथी नीकळी होय छे, त्यारे गांडो थयेलो राजहस्ती रस्तामां धसी आवे छे. सौ नासी जाय छे, पण अघरणियातने हाथी कमरथी सूंढ वडे पकडे छे. (पृ.७-९) आघरणि अवसरि जयकार (पद्यांक ४४ ) आघरणि-अवसरि घरणि आवंती आवासि ( पद्यांक ५६ ) बीजो प्रयोग ११४३ना लक्ष्मणगणिकृत प्राकृत कृति 'सुपासनाहचरिय' (संपा. हरगोविंददास शेठ, १९१८ - १९१९) मां मळे छे. सं. अग्रहणिका > प्रा. अग्गहणिया, बोलीमां प्रचलित रूप अग्रहणिया > अघ्रणी > आघरणी एवो विकासक्रम होय. ग्रहघ्र माटे जुओ अधरुं नीचे केलां उदाहरणो । आघरणी उपरथी अघरणी, पछी अघरणियात. 128 - Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 129 छाल, छीलटुं, छोलवू १. छाल प्रयोगो: केळानी छाल. झाडनी छाल. लींबुनी छाल.. (१) संछद् ('ढांक')+ लि.> प्रा. छल्लि 'त्वचा', (जेम आर्द्र > प्रा. अल्ल. पद्र >पल्ल, भद्र > भल्ल) (टर्नर, क्रमांक ५००५) टर्नरआना मूळ तरीके कोई आर्येतर शब्द होवानुं संभवित मान्युं छे ते उपर्युक्त भद्र > भल्ल वगेरे जोतां बराबर नथी. शब्द मूळे भारतीय-आर्य होवा अंगे शंका राखवानुं सहेज पर्ण कारण नथी. छालुं 'नाळियेर वगेरेनुं छोतलं'. 'लाकडानो वेर'. छालां पडवां (हाथमा) छाला पड्यां' - एमानां छालु-नुं मूळ जुदुं ज होय. छाल 'पीछो, केडो' (छाल छोडवो, छाल मूकवो) एर्नु मूळ पण जुईं होवानुं लागे छे. खाल. 'चामडी' (खाल उखेडी नाखवी), प्रा. खल्ला - एनी साथे छाल-एने क शो संबंध नथी. (टर्नर, क्रमांक ३८४८.) छालक (प्रयोगो:) प्रवाही- छलकावू ; 'छलकातुं आवे बेडखें, मलकाती आवे नारः' (ढळवू : ढळकतुं, फरवु : फरकवू, सखुः सरकवू एम छलq : छलकवू छिलकावू), छलाछल,छलोछल, छलबलवं एने छाल साथे कशो संबंध नथी. छालकुं 'छीछरुं, आछकतुं', 'गधेडापर नाखवानी बे पासियां वाळी गूण अने छालियुं (हिं. छालिया) 'पहोळा मोनो वाडको', छल्लो (छल्लो भीड्यो) एमर्नु मूळ पण जुईं होवार्नु जणाय छे. छीलकुं, छीलटुं (छीलेटुं) 'छोडु. छोतरूं' सं. छिद् + ल = छिल्ल > छील एना परथी आख्यातिक धातु छीलq (हिं. छीलना) 'छोडां काढवां, छोलवू'. छील + लधुता वाचक अंगविस्तारक क के ट. छीलकुं, छीलटुं, अर्थना फेरफार माटे सरखावो छेदन > छेअण > छेण, नामधातु छीणq अने छेदनिका > छेअणिआ > छीणी. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130 * * * ३. छोलवू. द्रश्य छोल्ल = तक्ष्. छोला = छालां. आनो संबंध सं. क्षुद्, क्षुण्ण जेना परथी छंदवू थयोछे. एनी साथे छे के केम ते कही न शकाय. छोलाटर्बु 'छोल छोल करवू' सरखावो गोदो > गोदार; धोको > धोकारवू रंग रंगाटी घोल > घोलाटq वगेरे. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 131 डांग 'लाठी' प्रा. डंगा. (टर्नर, क्रमांक ५५२०) ढोसो 'चूरयु' बनाववा माटे घउंनो लोटनो बनावातो जाडो खीखरो' नेपाळी ढोसे 'जाडो रोटलो', 'दुस्स' 'पवनथी फूलेलु'. बंगाळी दुसा जाडियोने आळसु'. मूळ तमिल दोषै 'आपणे त्यां ढोसा नामे प्रचलित खावानी वानगी' (टर्नर, क्रमांक ५५९४ ढुस्स, 'सोजेलं, फूलेलु'). ढकोसला (१) आभास, मिथ्या देखाव, (२) कपट व्यवहार. ढग (ढगलो). 'पुंज' लहंदा ढिंग पं. ढिग्ग, हि. ढीग, बोलीमां घj, पुष्कर सरखावो लहंदा : ढेर 'घj' (टर्नर, क्रमांक ५५८५, दिग्गनी नीचे बंगाळी ५५९९ ढेर नीचे) ढगरो 'फूलो' ढेका. ढगरा सरखावो ढग, ढगलो ढेकोनी जेम मूळ अर्थ 'उपसेलो भाग' होय. ढगो 'आखलो' लाक्षणिक 'जाडोपाडो' पं. ढग्गा; ढग्गी 'गाय' ढबु (ढबूडी, ढबूलो, ढबूली): 'चीथरानी ढींगली' (बाळ भाषामां) ए नानी जोडी अने ढीगणी होय. ढबु (ढब्बु, ढबू) 'अक्कल वगरनु, मूर्ख' आ अर्थ लाक्षणिक लागे छे. जे जाडो, ढीगणो, ते मूर्ख जड. खूडी 'बेठा घाटनी नानी लोटी, टोचली' टबु, खुडी 'नानी, ढीगणी स्त्री' लाक्षणिक खूडी ठबूडी बने मूळे एक होय एम लागे छे. ढब्बु (ढबु) १. पाई, अघेलो, पैसो, आनो - एनुं ज्यारे चलण हतुं त्यारनो, बे पैसानी किंमतनो ताबांनो जाडो, मोटो सिक्को. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132 ढबुनु भारदर्शक रूप ढब्बु. रूपांतर : ढबुवो. सरखावो लट्ट लाडु लाडूवो. हिंवी ढबु आ, ढबुवा, हिंदी ढब्बु जाडियो सरखवो लक्स खडधूस _ 'क्थाणव'मां ठेव्बुका. मराढी ढबू, ढब्बू कानडी डब्बु, तेलुगु ढब ३. सरखावो ढबुडो, ढबुलो 'नानो ढींगलो' स्त्री ढबुडी, ढबुली, आ जाडो, ढींगलो, ढींगलो' मूळ अर्थ होय. सिक्कावाचक अर्थ तेना साम्मे. २. कुमाउनी ढपुवा, ढेपुवा, पंजाबी ढऊआ, ढबुआ हिंदी लढब्बु, ढबुआ ढिबुआ ढेबुआ नेपाळी ढेउआ, ढेबुवा ढकवू (१) 'नीचु नमीजवू, (२) प्रवाहीतुं नीचे पडीजवू 'नीचु वहीजवू' 'माधुं ढळीगडे' 'पाणीनो ढाळ' जमणीबाजुनो ढाळ रस्तानो ढाळ उतरवो 'पहेली ढाळ, वगैरे. रागनो ढाल (पु. स्त्री.) ढोलाव, ढालस ढाळो, धातुना रसनो ढालबंध, (एक) पुस्तकनुं नाम ढालसागर, ढलकवू 'सहेज नमीजवू' 'ढळकती ढेल' ढाळीने करवामां आवेलो गढ्ढो के आकार, लगडी ढढली जर्बु (ढिकढक जवू)' 'नमी वडवू'. भीत ढढळी गई. ढळतुं- ढळकती ढेल - ढाळ पु. - ढोमव ढोळ चढाववो - गीतनी ढाळ स्त्री ढाळो ढढळी गयेखें 'बीबां', ढाकगर एक ढाकियुं ढोळवू 'बेसनी विनानु, ढळी जाय तेवू वासण (२) 'पाणी ठळीजवू' fघोकाई जर्बु, ढोलावं. प्रेरक ढोकवू. पंखो ढोलवो ढोल चडाववो 'ओप चढाववो' ढोल - ढाल ढोल- फोड. प्राकृत ठलइ, ढालइ बंने अर्थ वाळा नव्य वासीय - आर्य शब्दोमाथी जुओ टर्नर, क्रमांक ५५८१. ढलती, ५५९३ दुलति, डढाक, ढाक वगेरेनो मूळ तरीके ढल् अने ढोलवू वगेरेना मूळमां ढुल् छै. ढाढी. ए नामनी धंधादारी ज्ञाति कृष्णजन्म उजववा भेरी वगाडनार ढाढी नंदयशोदाने त्यां जईने उत्सवमां भाग लेता ढाढी लीला 'वैष्णव मंदिरोमां तेमज राते मळेला वैष्णवोना समूहमां ढाढी अने ढाढण टप्वो खेलता ङ्गश्री कृष्णनी लीलाना पद गाय छे ते प्रा. ढड्ड 'भेरी' ढड्ड. ढड्डिस ढंढ ढंपोलुं. पोलुं ढंढ ढम ढोलने मांहे पोल टर्नर, क्रमांक ५५७६ ढड्ड 'जाडु, उपसेलु, सोजेतुं' ए उपर्युक्त ढड्डुनो लाक्षणिक अर्थविस्तार होय. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 133 ढाकवू प्रा. ढक्कइ, ढंकइ 'ढांके छे' गुड ढांकQ (नाम ढांकण, ढांकणुं, ढांकणी, ढांको-ढूंबो वगेरेः (टर्नर, क्रमांक ५५७४) ढीको, ढीको 'मूढीवाळीने मरातो धब्बो, धुस्तो' समात्य ढीका बूंबी ढींक (ढीका) मारवी ढेको 'कूलो'. मूळ अर्थ 'ढोरो' उपसेलो भाग' ढेका ढया 'खाडाटेकरा' आमां ढैया ए मुळ ढहिया छे हिंदी ढहना (दिवाल वगेरेनुं ढळी पडवं) ढेका ढकियामां ठकिया "ढाळ' एटले नीचो भाग खाडो समानार्थे ढगरो, ढींढुनो मूळ अर्थ पण आवो जो ढीम, ढीमचुं, ढीमणुं ढीम न (ढीमचुं) 'पथ्थरतुं मोटुं चोसो' लाक्षणिक 'जाडु मोटुं गहुँ' दीमडु लाकडानो गड्ढो ___ढीम, ढीमुं, ढीमणुं (डु) 'मार लागवाथी अथढावा कुटावाथी, कांईक करडवाथी शरीरनो उपसी आवतो कोई भाग, सोजो' क्रमांक ५५९१ ढीम्म ढेम्म पंजाबीमां अर्थ ढेबाळो, हिंदीमां 'लोंदो, ढेखावो,' मराढी ढेया ढेमुस 'शरीर उपर उपसी आवतो सोजो.ढींढु कूलावाळो भाग' ढोढुं 'फुल वाळो भाग' टनर क्रमांक ५५९९ नीचे टीड्ड, विड्ड, ढींढ, ढेड्ड, डेढ ए अटकळेल मूळ शब्दरूपो नीचे नव्य भारतीय भाषाओमांथी जे शब्दरू पो मुख्यत्वे 'पेट, फांदो' एवो अर्थ धरावे छे. सरखावो साथे सिंधी ढींढो 'पतंगनो वच्चे वासनी शीप' गुज ढड्डो समानार्थ ढेको अने ढगरोनो मूळ अर्थ जोतां ढीढुंनो मूळ अर्थ पण 'उपसेलो भाग, ढोरो' होय एम लागे छे. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134 ढेबरूं सरखावो सिंधी ढेबिरो टनर क्रमांक 5580 नीचे 'लोंदा' एवा सामान्य अर्थना जे विविध मूळ शब्द आप्या छे तेमां एख आ छे टबुनी नीचे नोंध्युं छे तेम 'जाडु', 'ढीगणुं' एवी पण अर्थछाया छे. ढीबवू उपरथी जे ढीलीने बनावाय छे. ते ढिब्बिर. ढेब्बिर, तेना परथी ढेबरूं ए थैपलु पण कहेवाय छे. जे शेमीने बनावाय छे ते थेपलुं. ढेसक्षे (केशमां ढेसरो, ढेस्यलो, ढेसको पण आप्या छे.) 'विष्ठानो ढगलो. पादळो'. कोशमां ढेसं नो 'भाखरो जाडो रोटलो' एवो अर्थ आपीने 'पोदळो, विष्ठा' ए अर्थ लाक्षणिक होवानुं कर्तुं छे. पण ढोसो शब्द जोडां ढेसं शब्दरू प शंकास्पद जणाय छे. मने मात्र ढेसडो (बोलनो उच्चार वेहडो) टर्नर, क्रमांक 5602 ढेस, ढेंस 'लोंदो, ढगलो' एनी नीचे पंजाबी ढेई 'ढगलो' नेपाळी ढिस्को 'टेकरो' वगैरे आपेल छे. ढोल (ढोलकुं ढोलक) (ढोली, ढोलीडो वगाडनार) प्रा. ढोल्ल (टर्नर, क्रमांक 5608 ठोल, ठोल्ल) दोनीडा धडूकया लाडी चालो अपणे घेर रे मही सागरने आर ढोल वागे छे. ढोल ढूम ढम्या ढोल ढमके छे. ढोलनगारा ढमढाल, माहे पोल