Book Title: Gangeyabhanga Prakaran Sastabak Name Krutina Karta Vishe Uhapoh
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “गांगेयभंग प्रकरण-सस्तबक" नामे कृतिना कर्ता विषे ऊहापोह - शीलचन्द्रविजय गणि जैन आमगमग्रंथ श्री विवाहप्रज्ञप्ति(भगवतो) सूत्रना नवमा शतकना ३२मा उद्देशमा श्री पार्श्वनाथ-परम्पराना गांगेय ऋषिए भगवान महावीरने पूछेला भङगप्रश्नो तथा तेना उत्तरोन विराद स्वरूप वर्णवेलं छे. आ विषय भशगजालमय होवाथी अभ्यासीओने तेनो बोध सला बने ते हेतथी विविध नानां प्रकरणो रचायां छे, जेमान एक श्री विजयगणिए रचेलं "अवचूरियता गाङ्गेय भङ्ग प्रकरण" ई.स.१९१६ मा भावनगरथी प्रकाशित छे. ताजेतरमा विख्यात जैन मनीषी उपाध्याय श्रीयशोविजयजीए रचलं "गांगेयभंग प्रकरण" मळयं छे. आ प्रकरणमा ३६ गाथा छे. आ प्रकरणनी प्रथम गाथामा ‘पन्चप्पगरणसेसं -पदथी समजाय छे के पूर्वे पण कर्ताए आ विषय कोई प्रकरण रच्यं हशे, जेमां नहि कहेलो शेष विचार प्रस्तुत प्रकरणमा गूंथ्यो छ. ३५मी - अन्तिम गाथा जोता “श्रीनविजयगुरुना शिष्य सुयश(यशो)-विजये" आ प्रकरण रच्यं छे ते स्पष्ट छे. आ प्रकरणनो 'टयों पण मळेल छे. टवानी विविध प्रतिओ, जे लगभग १९/२० शतकमां ज लखाई होवान तेनी लखावट उपस्थी कल्पी शकाय तेम छे, तेमा टवाना रचनार के लखनार विशे कोई निर्देश प्राप्त थतो नथी. टवानो प्रारंभ आम थाय छ : श्रीमत् शान्तिजिनाधीश नत्वा वीरस्य वार्तिकम् । पृष्टं बालोपकाराय गंगेयाख्येन बद्धि ना।। १ ॥ किञिचन्मद्धी प्रमाणेन श्रुतधर्मानुसारतः । कुर्वे स्वापज्ञगाथाया यन्त्रयुक्त पुनस्तथा ।। २ ॥ आ उपरथी मूल गाथाकार पोते ज टबाकार होय ते मानवान उचित लागे छे. टवासहित आ प्रकरणनी मारी समक्ष पडेली ५ प्रतिओमा जनामां जूनी प्रनि मंवत १८५० नी छे तेमा ३५मी गाथानी टवार्थ आ प्रमाणे छे : शोभावंत महत् बद्धनधान पं. श्री नयविजयगुरुन | शिष्य महोपाध्याय श्री श्री जसविजयजी नैयायिकशिरोमणीइं तेणे आ प्रकरण शास्त्रप्रमाणे रच्यु तीक्ष्ण मतिवंत प्रांणीनें मन रूप मर्कट चपल छे ते वश्य आणवाने मात्रै ३५ इदि गंगेयकृतपृच्छाप्रकरणार्थ : ।। सं. १८५० । पं. श्री १०८ पं. गुरुजी साहबजी पं. शुभ विजयजी शिष्य में. वो विजयेन लि. मागशिर सदी १० दीने निर्जीर्थ खंभातविंदरे।" आ विवरण टबाना प्रणेता कोण छे ते नक्की करवामां कोई रीते पण स्पष्ट मार्गदर्श करतुं नथी. मात्र “पं. वीरविजयजी ('शुभवीर तरीके जाणीता कवि-साधु)ए आ टवार्थ-यु प्रकरण लख्यं छे ” एटलं ज आथी समजी शकाय छे. अने अन्य ४ प्रति ओ पैकी ३ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिओ मळी छे तेमां लेखक तथा संवतने बाद करता उपर प्रमाणे ज अन्तिम लखाण जोत्रा मळं छे. हवं महत्त्वनी पण विचित्र लागे तेवी बात ए छे के आज प्रकरणनी टवारहित मूलगाथा मात्रनी प्रतिओ पण पांचेक मळी आवी छं. ए तमाम प्रतिओमा ४१ गाथाओ छे, ए तो ठीक, परंतु तेनी छल्ली ४१ मी गाथामां आ प्रकरणना प्रणेता श्रीउत्तमविजयना शिष्य श्रीपद्मविजयजी छे तेत्रो स्पष्ट उल्लेख छे. ते गाथा आ प्रमाणे छं : — सिरिउत्तमविजयाणं सीसो नामेण पउमविजओ त्ति । तेण पगरण रइयं मणमक्कड वस्समाणेउं ।। ४१ ।। मूलमात्र पाठनी प्रतिओमां, टवावाळी प्रतिओ करतां जे ६ गाथा अधिक छे, ते आ ३५ गाथावाळी वाचनागत गाथा २७ पछी प्रमाणे छे 11 २८ जइसंखा जीवाणं भंगा काउं मर्णमि इच्छिज्जा । तत्तो इक्के क्कहिया-रासीछक्कं ठवे यव्वं तस्साहो दुगमाई छगपज्जेता धुवा य पण अंका | उवरि अहो समअंका फुसियव्वा नियमओ ते उ || २९ पच्छा ध्रुव अंकेहिं दिज्जइ भागो य जस्स अंकस्स । तट्ठाणे जं लद्धं तं अंकं ठवसु नियमेणं || ३० पच्छा गुणसु परुप्पर-सेस धुवं केण भाइयं संतं जं लब्भइ तस्संखा भंगपमाणं मुणे यव्वं अह जड़ सेसधुवंको नत्थि तओ जं परुप्परं गुणणे । लद्धं तं चिय माणं इच्छियजीवाण विन्नेयं I || ३१ 11 ३२ आटली (५) गाथा अधिक छे; तथा ३५ मांनी ३८मी गाथा पछी सिरिपुज्जोदय सायरसूरिणा गुणवया य बुद्धिमया } काऊण सुहियं तेण विसोहियं गणियनाणेण ।। ४० आम समग्र रीले जोतां आ कृतिना कर्ता कोण ? ते प्रश्न आपणी सामे उपस्थित थाय छे. मजानी बात ए छे के जुदा जुदा भंडारोनी ५ मूळ पाठ धरावती अने ५ टवायुक्त पाठ धरावती कुल १० प्रतिओ भेगी करी छे; तेमां मूळ पाठवाळी बधी प्रतिओ ४१ गाथानो पाठ आपे छे, जे पद्मविजयजी-रचित छे. ज्यारे टवावाळी बधी प्रतिओ ३५ गाथानो पाठ आप छे, जे यशोविजयजी- - कृत छे. - [५३] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीजी वात, उपर जणावेली, ४१ गाथावाळी प्रतिआमांनी ५ + १ = ६ गाथाओने बाद करतां शेष ३५ गाथाओनो पाठ तथा क्रम टवावाळी अने टवा विनानी – एम दसे प्रतिओमा समान छे. आथी सहज ज प्रश्न थाय के आ प्रकरणनो खरो कर्ता कोण ? आ विषे ऊहापोह करता केटलाक विचारणीय मुद्दा उद्भवे छ : १. यशोविजयजीनी रचना होय, ने बीजा कर्ताए ते पोताना नामे चडावी होय. २. अथवा एवं य बने के पद्मविजयजीनी रचना. होय अने तेने तेमना प्रत्ये अरुचि धरावता कोईए यशोविजयजीना नामे चडावी दीधी होय. ३. अथवा तो खद पद्मविजयजीए ज कोई कारणसर पोतानी रचनाने यशोविजयजीन नाम आपी दी, होय. आ त्रणमा वीजी अटकळ तथ्यथी वधु नजीक होय तेवं अनुमान आ संपादकना मनमां छे. जो के वीरविजयजीनो टबी छे, अने तेओ पण आ कृति यशोविजयजीनी होवानं जणावे छे; तो पण, संवत १८५० मां तो वीरविजयजीनो दीक्षाकाल हजी मांड वे वर्षनो ज होवार्नु (दीक्षा सं. १८४८ मां थई)अर्थात् ते समये तेमनो अध्ययनकाल के आरंभकाल होवानं तेमना विशे प्राप्त ऐतिहासिक साधनोथी ज्ञात छे, एटले तेमणे पोते पोतानी सामनी पूर्व-प्रतिन ज मात्र अनुसरण कर्यु होय तेम विचारवं वधु योग्य जणाय छे. पू. यशोविजयजीनी प्राप्त अने ज्ञात ग्रन्थ रचनाओनी अद्यतन सूचिओमा आ प्रकरणनो क्यांय निर्देश नथी. आ प्रकरणनी प्रथम गाथामा निर्देश्या प्रमाणेनी आज विषयनी पूर्वरचना पण मळी - मलती नथी. वळी, आजे जे प्रतिओ आ प्रकरणनी मळी छे ते तमाम १९-- २०मा शतकनी ज छेअने १७-१८मानी एक पण प्रति हजी प्राप्त थई नथी. वळी, आ रचनामा उपाध्याय यशोविजयजीनी उद्भर विद्वत्तानो एकाद पण उन्मेष जोवा नथी मळतो. 'एमनी आ आरंभिक रचना होई शके - एवं मनना संतोष खातर विचारीए, तो पण, तेमां वह वजूद नहि आवे. केम के प्रकरणना टवाना मंगलाचरण परथी मुळकार अने टवाकार एक ज होवान सिद्ध थाय छे, अने ए मंगलाचरणना बे श्लोकोन संविधान अने शब्दो जोता ज ‘आ यशोविजयजीनं न ज होय एम कोई पण अभ्यासी तत्क्षण कह्या विना नहि ज रहे. बधी वातोनो सार एटलो ज के यशोविजयजीना नामे मळी आवती प्रस्तुत कृति,वस्तुतः पद्मविजयजीकृत होत्री जोईए, के जे पोतानी कृति पद्मविजयजीए श्रीपूज्य उदयसागरसूरि पासे संशोधित पण करावी छे. आम छता आ कृतिनी प्रतिओ 'यशोविजयजीनी रचना' तरीके मळे छे, ते परविजयजी प्रत्ये कोईनी अभक्ति के पछी यशोविजयजी प्रत्येनी कोईनी अतिभक्तिनं ज परिणाम जणाय छे. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपाध्याय श्रीयशोविजय कृत ( ? ) गांगेय-भङ्ग-प्रकरणम् ॥ नमिऊण पुष्पगरणसे सं महावीरं गंगे वसु पु ठभं गपरिमाणं वुच्छं सुगुर व एसे णं I वाणियगामे नयरे भयवं वीरो समोसढो नाणी । पासावच्चिज्जो अह गंगे ओ आगओ तत्थ ।।२ तस्सासंका जाया एसो किमु अस्थि इंदजालुत्ति । पसिनाई महत्थाई पडिपुच्छइ हेउणा तेण [ ३ पुच्छा - उत्तर सयलं नायव्वं पंचमंग - नवमसया I इह उण संखेवत्थो भणामि निच्चं ससरणट्ठा ॥४ एगम्मि उ नरगम्मि भंगा सग हुति जड़ असंखेज्जो । इगवीसा दुग निरए पणतीसा तिन्नि नरमम्मि ||५ 11१ चउसु वि पणतीसाओ पंचसु इगवीस भंगसंखाओ । छग नरगे सग भंगा सत्तसु पुढवीसु एगो अ ।। ६ जे एगम्मि उ नरए सग भंगा छग्गुणा बियालीसं । दुर्गा निरयाओ दुभागे हवंति हरिया हु इगवीसा ||७ एगूणा उण किज्जइ निरयपमाणेण दिज्जई भागो । इगवीसा पणगुणिया जायइ पंचुत्तरसयं च ।। ८ ते य तिभागे हरिया हुंति पणतीस तिन्नि नरगम्मि । चरासयं चउ भागे हरिया पणतीसभंगा ओ ।।९ T तिगुणा पंचुत्तरसय-भंगा इगवीस पंचभागम्मि बायालीसं दुगुणा छग भागे सत्त भंगा य ।।१० अह उण विगध्पमाणं एगविगप्पो अ दुन्नि जीवाणं । तिम जीवाणं दुजोगा दुन्नि तिगजोग एगेव ।। ११ [44] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउजीवाण दुजोगा तिन्नि अ तिग जोग तह य तिन्नेव । चउ जोगो एगेव य अह पणजीवाण सुणसु कमा ।।१२ दु ति चउं पंच य जोगा चउ छ च्चड एग अह छ जीवाणं । दु ति चउ पंच छ जोगा पण दस दस पणेग नेयं च ११३ छ पण दस वीस पण दस छगदु गाइ संगत सत्तण्हं । अण्हं जीवाणं दुगाइ अट्ठं तसं जो गा ।।१४ सग इगविस पणतीसा पणतीसिगवीस सत्त एगो अ । नव जीवाण दु गाई- नवंत संयोग कायव्वा ।।१५ अठट्ठवीस छप्पन्न सयरी छप्पन्न अटठ वीस ठी । एगविगप्पो एसिं अह दह जीयाण संजोगा ।।१६ नव छत्तीसय चुलसी छव्वीसुतारसयं च पण जोगा । पुण छव्वीसुत्तर सय चुलसी छत्तीस नव एगो ।।१७ इच्चाई य विगप्पा जीवपमाणे न अक्ख चालणया । कायव्वा पुण एसिं सुणसु उवायं समग्गाण ।।१८ ज इसं खा हंति जी या दुगसं जो गा हवं ति एगणा । संजो गतिगाईणं तिगाईरासी उ वे यव्वा ।। १९ पुव्वविगप्पा पढमक गुणा य काऊण सेस अंकाणं । भाइज्जइ जं लबभइ मुणस् पमाणं तिगाईणं ।।२० जह पणजीवाणं इह दुगसंजोगा हवं ति चत्तारि । तिगसं जो गाणं पुण ठविज्ज रासी वि तिन्नेव ।।२१ तिन्नि य एगो एगो दुग जोगा पढम अंक गुणियल्वा । बारस से स दुभत्ता तिग जो गा हु ति छच्चे व ।।२२ भंगा य पइविगप्पे पुवुत्ता नरगभंग गुणि यव्वा । अह पुण सव्वविगप्पा जीवाणं हंति ते भणिमो १२३ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ति गजीयाण विगप्पा दु गुणे गहिया च उपहजीवाणं / ते पुण दुगुणे गहिया पंचजियाणं मुणे यव्वा / / 24 एवं कमेण सव्वत्थ अह भंगा सव्व जीयरासीणं / एगे गहिया किज्जइ संखामाणं विभत्ताओ // 25 सग पढमपुढविभंगा अठ्ठ गुणा ते वि जीवपविभत्ता / अट्ठावीसं भंगा दुगजीवाणं विआणाहि // 26 ते वि अ नवगुणिआओ एवं इक्किक्किरूववुड्ढीए / जीवपमाणविभत्ता संखा (वि) बुहे हिं नायव्वा / / 27 पुत्व सूरी हिं नट्ठु -द्दि ठपत्थारभासिओ ने ओ / वित्थरओ पुण सुत्ता नायव्वो सुहमदिट्ठीहिं / / 28 गंगे ओ अह सुच्चा भयवं वीराओ भंगजालमिणं / भयवं - उवरिं जाओ सम्वन्नू पच्चओ तस्स / / 29 वं दइ नमसइ अह आयर --बहु माण- भत्तिपुव्वं च / गंगे ओ संजाओ सामिओ गुत्तो विसे से णं / / 30 चउजामाओ धम्मा पडिवज्जइ पंचजामधम्म च / नाण-किरियाहिं जुत्तो विहरइ निच्चं गुरुसगासे // 31 जस्साए कीरइ सुनग्गभावो य मुंडभावो अ / आराहिओ तभट्ठो सिद्धो परिनिव्वुडो बुद्धो // 32 धन्नो सो गंगे ओ जेणेवं वीर-जगगुरू पुट्ठो / धन्ना ते च्चिय पुरिसा दिह्रो पहु वागरं तस्स / / 33 धन्ना चिय मह जीहा तिलोकनाहो हु वीरपहु थुणिओ / धन्ना गुरूण बुद्धि अत्थो जेणेस परिकहिओ // 38 सिरिनयविजयगुरूणं सीसो नामेण सुजसविजओत्ति / ते ण पगरण रइयं मणमक्कड वस्समाणे उं // 35 [57]