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दिगम्बर जैन परवार समाज, जबलपुर : संस्कारधानी के लिये अवदान
सिंघई नेमिचन्द्र जैन
जबलपुर
राष्ट्रसंत विनोवा भावे ने जबलपुर को 'संस्कारधानी' कहा था । इसके धार्मिक, लौकिक- सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिवेश की प्रगति में स्थानीय दिगम्बर जैन परवार समाज का अपना विशिष्ट एवं ऐतिहासिक योगदान है । यह समाज प्रारम्भ से ही जबलपुर के सुख-दुःख का साथी रहा है । इसकी प्रत्येक यात्रा में इस समाज के व्यक्ति सदैव सक्रिय रहे हैं । भारतीय स्वातन्त्र्य युग में इस समाज ने सदैव कन्धे से कन्धा मिलाकर अग्रणी कार्य किया । इस समाज द्वारा जबलपुर नगर के उत्थान में अपने विशिष्ट श्रम, धन और लगन से धार्मिक मन्दिरों के अतिरिक्त अस्पताल, धर्मशाला, विद्यालय एवं पाठशालायें, कूप- बावड़ी और अनेक सार्वजनिक कोटि की सुविधायें उपलब्ध कराई हैं और अपनी धार्मिक सामाजिकता को प्रतिष्ठित रूप से अक्षुण्ण रखा है। इन गौरवपूर्ण सेवाओं का कुछ विवरण यहाँ दिया जा रहा है :
(अ) विविध जैन मन्दिर : वैसे तो जबलपुर में जैन मन्दिर अनेक हैं, पर हनुमानताल, जवाहरगंज, राइट टाउन एवं मढ़िया जी के मन्दिर विशेष उल्लेखनीय हैं । १८८६ में निर्मित हनुमानताल के दुमंजिले किलेनुना मन्दिर में २२ वेदियाँ हैं जिसमें एक वेदी में काँच की आकर्षक पच्चीकारी है । यह काँच मन्दिर सिंघई भोलानाथ जी ने बनवाया था। इस मन्दिर के अधीन एक धर्मशाला, कुंआ, व्यायामशाला भी है । इसी मन्दिर का एक पर है जिससे नगर - प्रसिद्ध महावीर पुस्तकालय, जैन क्लब और कुछ दूकानें भी हैं । ये मन्दिर को है । इस मन्दिर में प्रातः सायं शास्त्रसभा एवं रात्रिकालीन पाठशाला की भी व्यवस्था है ।
विशाल भवन फुहारे स्वावलम्बी बनाती
बड़े फोहारे एवं त्रिपुरोगेट के मध्य स्थित दो मंजिला जवाहरगंज जैन मन्दिर अपनी सुषमा के लिये विख्यात है । इसमें १० वेदियाँ हैं । यहाँ भी शास्त्र सभा एवं रात्रि पाठशाला चलती है । एक सौ पचास वर्ष पुराने इस मन्दिर में प्रतिदिन पांच सौ पुरुष-महिलायें पूजन करते हैं तथा प्रातः ५ बजे से रात्रि ११ बजे तक कोई ३००० भक्त दर्शन करने आते हैं । इस मन्दिर के साथ अब एक चार मंजिली आधुनिक धर्मशाला भी बन गई है । मन्दिर की ओर से एक व्यायामशाला की व्यवस्था भी को जा चुकी है ।
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राइटटाउन, गोल बाजार का आदिनाथ जैन मन्दिर अपनी केन्द्रीय स्थिति के लिए प्रसिद्ध है । स० सिं० बालचन्द नारायणदास जी ने इस मन्दिर के साथ एक हाईस्कूल, जैन महाविद्यालय एवं जैन छात्रावास बनाया है । कुछ समय पूर्व यहाँ एक सभाकक्ष -सत्यार्थ भवन भी बनाया गया है । इन्हीं सिंघई जी ने जवाहरगंज जैन मन्दिर में एक संगमरमरी सुन्दर वेदी का निर्माण कराया है। इनके ही द्वारा निर्मार्पित धर्मशाला के एक खण्ड में पिछले साठ वर्षों से श्रीमती काशीबाई जैन औषधालय का सञ्चालन भी हो रहा है । इसमें प्रतिदिन प्रायः दो सौ रोगी आते हैं ।
परवार समाज की एक निर्धन वृद्धा के द्वारा ही आज से लगभग १०८५ वर्ष पूर्व गढ़ा के पास की पहाड़ी पर
वर्तमान में यह समस्त जैन समाज का संगम - प्रवेशद्वार के बायें तरफ स० [सं० बेनी वहीं फिर छिकौड़ी लालजी, भागचन्द्रजी
मन्दिर का निर्माण कराया गया था। इसे पिसनहारी की मढ़िया कहते हैं । स्थल, तीर्थस्थल, मुनिस्थल एवं विद्या -स्थल बन गयी है । इस मढ़िया के पीछे प्रसाद जी धर्मचन्द्र जी ने १९५८ में महावीर स्वामी का मन्दिर बनवाया था।
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दिगम्बर जैन परवार समाज, जबलपुर संस्कारधानी के लिये अवदान
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व खादीवाले खूबचन्द्रजी के सहयोग से चौबीस तीर्थंकरों की लघु मन्दरियाँ बनवाई गईं। पहाड़ के नीचे चौ० गनपत लाल सुरखीचन्द द्वारा एक विशाल कक्ष वाला मन्दिर बनवाया गया और फिर उसी के सामने श्रीमती लक्ष्मीबाई जैन ने संगमरमरी मान-स्तम्भ की रचना कराई । श्री धनपतलाल मूलचन्द्र प्रतिष्ठान ने मढ़िया जी के दक्षिण - प्रवेश द्वार के पहाड़ पर आदिनाथ मन्दिर बनवाया । इसकी पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा १९५८ में हुई थी । इन्होंने एक धर्मशाला भी बनवाई और आज नन्दीश्वर द्वीप के निर्माण में भी एक लाख रुपये दान देकर अपनी धार्मिक परम्परा जागृत रखी है ।
उपरोक्त चार मन्दिरों के अतिरिक्त (i) मिलौनीगंज का स्व० वंशीधरजी ड्योढ़िया द्वारा निर्मित जैन मन्दिर, (ii) हनुमानताल का नन्हें मन्दिर, (iii) हजारीलाल रूपचन्द्र ज्योदिया द्वारा निर्मित मन्दिर, (iv) भैयालाल नेमचन्द्र चौधरी द्वारा निर्मित मन्दिर, (v) क्षमाघर परमानन्द एवं गरीबदास गुलझारीलाल द्वारा निर्मित पुरानी बजाजी का मन्दिर तथा (vi) दि० जैन मन्दिर भेड़ाघाट के मन्दिर भी इस समाज ने निर्मित एवं जीर्णोद्धारित किए हैं । मन्दिरों के विवरण से स्पष्ट है कि जैन मन्दिर केवल पूजा या धार्मिक स्थलमात्र नहीं होते, वे शिक्षा, संस्कृति एवं सामाजिकता के जीवन्त संचारक होते हैं ।
(ब) शिक्षा संस्थान : जैन मन्दिरों में मुख्यतः धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था रहती है, पर हमारे समाज ने आधुनिक युग के अनुरूप शिक्षण की व्यवस्था की उपेक्षा नहीं को । स० सि० भोलानाथ रामचन्द्र जी ने संस्कारधानी को तीन ऐसे भवन उपलब्ध कराये जिनसे जबलपुर का शिक्षा जगत् उपकृत हुआ है। इनमें एक (i) कस्तूरचन्द्र जैन हितकारिणी सभा हाईस्कूल, (ii) दूसरा भोलानाथ रतनचन्द लॉ कालेज और तीसरा (iii) सि० सोनाबाई छात्रावास के रूप में उपयोग में आ रहा है । आज हितकारिणी सभा १५ विद्यालय चला रही है जिसमें लगभग दस हजार छात्र शिक्षा ले रहे हैं । इस हेतु सिंघई धनपतलाल मूलचन्द्र ने पुत्रीशाला को दे दिया था। इसे एक
हमारा समाज बालिकाओं की शिक्षा के प्रति भी सचेष्ट रहा है । जवाहरगंज में एक तीन मंजिला विशाल भवन बनवाकर प्रायः चालीस वर्ष पूर्व ट्रस्ट आज भी चला रहा है । इसमें प्राय० ५०० छात्रायें अध्ययनरत हैं ।
गोलबाजार के जैन मन्दिर से सम्बन्धित हाईस्कूल एवं डी० एन० जैन महाविद्यालय की चर्चा ऊपर की जा चुकी है । बालकों को संस्कृत एवं सुशिक्षित बनाने के लिये हमारा समाज मढ़ियाजी के ही एक बहुत बड़े मैदान में गणेश प्रसाद वर्णी गुरुकुल का सञ्चालन करता है । आजकल वहाँ २७ छात्र अध्ययन करते हैं। इसी क्षेत्र में वर्णी ब्रती आश्रम भी है । यहीं आ० विद्यासागरजी की अनुकम्पा से ब्राह्मोविद्या आश्रम की स्थापना की गयी है जहाँ प्रायः छयालीस ब्रह्मचारिणियाँ एवं अनेक ब्रह्मचारी अध्ययन कर रहे हैं । इसी क्षेत्र में आ० विद्यासागर शोध संस्थान भी स्थापित है जिसके निदेशक जैन गणित के प्रसिद्ध विद्वान् एल० सी० जैन हैं ।
(स) चिकित्सीय सुविधायें : स० [सं० गरीबदास गुलजारीलाल के सुपुत्र रायबहादुर मुन्नालाल रामचन्द्र ने अबलपुर स्टेशन के पास एक बहुत बड़ा बंगला और प्लाट, महिलाओं के अस्पताल के लिये, सरकार को खरीदकर दिया था । यहीं पर आज एम० आर० एल्गिन अस्पताल बना हुआ है । यह नगर का प्रमुख महिला चिकित्सालय है ।
ब० चौ० गुलाबचन्द्र कपूरचन्द्र ने नगर कोतवाली के समक्ष एक अस्पताल तयार कराकर शासन को दान दिया था। उन्होंने नगर के विक्टोरिया अस्पताल के दो वार्डों के बीच एक लोह -सेतु भी बनवाया । इन्होंने ही हितकारिणी सभा के मैदान में विज्ञान भवन बनाकर सभा को समर्पित किया ।
श्री धनपतलाल मूलचन्द्र ने पिसनहारी की मढ़िया के नीचे सड़क के किनारे एक धर्मशाला बनवाई | अन्य दानवीरों ने भी अस्पताल धर्मशालायें बनवाई हैं । इनमें मेडिकल कालेज के अस्पताल में चिकित्सा कराने वाले लोग एवं उनके परिवारजन सुरक्षापूर्वक रहकर रोगियों की चिकित्सा कराते हैं ।
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________________ 382 पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [ खण्ड (द) साहित्यिक एवं राजनीतिक योगदान : इस समाज के अनेक साहित्यकारों तथा राजनीतिज्ञों ने नगर को गौरवान्वित किया है। स्व० रूपवती किरण, स्व० सुन्दरदेवी इसी समाज की साहित्यिक विभूतियाँ रही हैं। वर्तमान में सुरेश सरल, निर्मल आजाद, श्रीमती विमला चौधरी, हुकुमचन्द्र अनिल आदि इस नगर को स्थान-स्थान पर प्रतिष्ठित कर रहे हैं। कवियों के साथ, विद्वानों को भी यहाँ कमी नहीं है। बाबू फूलचन्द्रजी, पं० रामचन्द्रजी, पं० ज्ञानचन्द्र शास्त्री, पं० राजेन्द्रकुमार जी, पं० विरधीचन्द्रजी आदि की ज्ञानगगा से श्रावक प्रतिदिन आप्लावित होते हैं / शैक्षिक क्षेत्र में श्री सुशीलकुमार दिवाकर, एल० सी० जैन, गुलाबचन्द्र दर्शनाचार्य, के० सी० जैन आदि के नाम विश्रुत हैं / पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़कुर एवं नारद-बन्धुओं के नाम उल्लेख्य हैं / राजनीतिक क्षेत्र में श्री निर्मलचन्द्रजी एडोवकेट भू० पू० सांसद, मुलायमचन्द्रजी, हंसमुखजी व अशोक बड़कुर के नाम तो सुख्यात ही हैं / इन सभी व्यक्तियों ने अपने अपने क्षेत्रों में महनीय योगदान देकर हमारे समाज एवं नगर का गौरव बढ़ाया है। हमें अपने समाज पर विश्वास है कि भत एवं वर्तमान के समान वह भविष्य में भी संस्कारधानी को उच्चतः संस्कृत करने में अपना योगदान करता रहेगा। हमारा शरीर साधनसम्पन्न प्रयोगशाला है। प्रयोग के साधन और उपकरण भी हमारे पास है / चैतन्य के सारे प्रयोग हमारी खोज के सूक्ष्मतम उदाहरण हैं। आज प्रयोगशालाओं में जितने भी सूक्ष्म तरंग, सूक्ष्म ऊर्जा या उच्च आकृतिवाले उपकरण है, उससे भी सक्ष्मतम उपकरण हमारे शरीर में प्राप्त हैं। वे स्वतः सञ्चालित हैं। उनको काम में न लेने के कारण वे निष्क्रिय हो गये हैं। हम उनकी जंग हटाने का, विभिन्न ध्यान विधाओं के अभ्यास से, प्रयास कर रहें हैं। -किसने कहा, मन चंचल है /