Book Title: Dahej Samaj ka Abhishap Author(s): Rupesh Sinh Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf Catalog link: https://jainqq.org/explore/211158/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रूपेश सिंह दहेज समाज का अभिशाप आज समाज में हर वर्ग का व्यक्ति दहेज के बोझ से दबा हुआ है। समाज शिक्षित एवं सभ्य होते हुए सारी समस्याओं से अवगत होते हुए भी दहेज जैसे रोग को बढ़ावा दे रहा है जो बड़े शर्म की बात है। इससे भी ज्यादा शर्म की बात तो यह है कि बाप अपने बेटे की कीमत लेकर उसे बेच देते हैं। बेटा एक चेक है, बेटा बाप के हाथ की कठपुतली है। जब चाहा, जिधर चाहा बेच दिया गया फिर चेक जमा करवा लिया। जिस दिन बेटा इस बात को समझ जायेगा उस दिन बाप की झूठी शान और इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी। एक बाप को इस तथ्य से डरना चाहिए कि उसके भी बेटी है। हमें भी अपनी बेटी के लिए एक योग्य वर का चुनाव करना है। और उसके लिए जिन्दगी भर की कमाई पल भर में गंवा देना है। जो बाप जिन्दगी भर की कमाई अपने बच्चों की परवरिश, पढ़ाई-लिखाई पर खर्च कर देता है, जिसने अपनी जिन्दगी में कभी सुख और आराम का मुंह तक नहीं देखा वह व्यक्ति सोचता है कि हमने अपने बच्चों की जिन्दगी बना दी तकलीफ करके और अब मैं आराम की मौत मरूंगा, मेरे बच्चे सभी सुखी हैं। लेकिन यह सोचना सरासर मूर्खता है क्योंकि आपके बच्चे सुखी नहीं रह सकते। क्योंकि आपके बच्चे का भी बच्चा होगा और वह भी उसी तरह से जिन्दगी भर की कमाई को दहेज में गंवा देगा। अगर समाज अपने बच्चों को सुखी देखना चाहता है तो दहेज जैसे सामाजिक रोग का इलाज करके खत्म करना होगा। अगर वे इसे खत्म न करके बढ़ावा देते हैं तो वे समाज के सबसे बड़े दुश्मन हैं। दहेज को खत्म करने के लिए युवकों और युवतियों दोनों का एक साथ मंच पर आना जरूरी है। एक बाप अपने बेटे की कीमत लगाकर उसे बेच देता है। लड़के फिर भी शान से सिर उठाकर चलते हैं। जबकि वह एक बिका हुआ माल है। __ बाप बेटे को पढ़ाता-लिखाता है। बड़ा करता है जब उसकी शादी का समय आता है उसे पैसे के सामने छोटा करके एक पति बनने के लिए बेच देता है। जिस तरह गाय का बछड़ा जब छोटा होता है तो किसान उसे खिला-पिलाकर बड़ा करता है, बछड़ा जब खेत जोतने लायक होता है तो उसे अच्छी कीमत पर बेच देता है। समाज बेटे और बछड़े को एक ही निगाह से देखता है। जब बछड़ा बिक जाता है तो पुराने मालिक का कोई अधिकार नहीं होता है। ठीक उसी तरह जब लड़का बिक जाता है, तो बाप का कोई अधिकार नहीं रह जाता है। शराफत तो उन लड़कियों की मानिये जो अपने लिए खरीदे गये खिलौने को अपने घर में न रखकर खुद उस गुलाम के घर जाकर उसकी इज्जत की रक्षा करती हैं। ___ लड़का जानता है कि हमारे पिताजी गुनहगार हैं लेकिन भारतीय संस्कृति में पला हुआ लड़का बोल नहीं पाता है। अब यह जरूरी है कि वह अपने पिता के विचारों का विरोध करे।घर में जब लड़का पैदा होता है तो बाप बहुत खुश नजर आता है और दैवयोग से कहीं लड़की पैदा हो गई तो सारे खर्च में कटौती कर उसके दहेज के लिए रकम जमा करने में जुट जाता है। समाज लड़कियों को नीची दृष्टि से देखने लगता है। भारतीय नारी आवारा नालायक पति को भी सत्यवान मानकर उसे पूजती है। वह दहेज लोभी समाज को बढ़ावा दे रही है। अगर वह खुश रहना चाहती है तो खुलकर कहे कि मुझे पति की जरूरत है जिन्दगी के लिए किसी गुलामी के लिए नहीं। जिस दिन लड़कियां जागरूक होकर दहेज के विरोध में सड़कों पर उतरेंगी उस समय पुरुष वर्ग का सिर शर्म से झुक जाएगा। वे अपने वर का चुनाव अपने तरीके से करेंगी तथा दहेज लोभी को ठुकरायेंगी। दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए हर छात्र-छात्रा को एक जुट होकर लड़ना होगा। जब तक छात्र-छात्राएं दहेज का विरोध नहीं करेंगे तब वह खत्म नहीं होगा। हीरक जयन्ती स्मारिका विद्यार्थी खण्ड / 14