Book Title: Chintamani Parshwanath Mandir ke Tin Jain Pratima Lekh
Author(s): Arvindkumar Singh
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/210490/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर का तीन जैन प्रतिमा-लेख डॉ० अरविन्द कुमार सिंह राजस्थान में स्थित सादडी नामक स्थान के चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर में बिठायी हुई तीन जैन मूर्तियों की पाद पीठिका पर महत्त्वपूर्ण अभिलेख टंकित हैं। अमेरिकन इन्सटीट्यूट ऑफ इण्डियन स्टडीज, रामनगर (वाराणसी) द्वारा हाल ही में इन अभिलेखों का छायाचित्र लिया गया है। इन लेखों की वाचना संक्षिप्त परिचय के साथ यहाँ दी जा रही है। लेख संख्या १ः यह लेख मन्दिर के गूढमण्डप के खत्तक में स्थापित की हुई गुरुमूर्ति के तीन प्रविभाग वाली पीठिका के बायें तथा मध्यभाग के हिस्से में खुदा हुआ है। मध्यभाग का लेख तीन पंक्तियों में खुदा है जबकि बायें भाग में केवल एक ही पंक्ति का लेख स्पष्ट है। शेष हिस्से का लेख चूना चढ़ जाने से अपठनीय हो गया है । अभिलेख का वर्ष १२७३ जैसा पढ़ा जाता है जो ईस्वी १२१६ के बराबर है। चैत्रगच्छ के धर्मसिंह सूरि का नाम अभिलेख में दिया है। इसके साथ ही सागरचन्द्र द्वारा किसी मुनि के स्मरण में मरणोपरान्त बनायी गई यह मूर्ति हो ऐसा कुछ अन्दाजा इस अभिलेख से निकल सकता है। अभिलेख की तीसरी पंक्ति पर चूना चढ़ जाने से पूरी वाचना और विषयवस्तु का ठीक खुलासा नहीं हो पाता। मूल पाठ १. ॥सं० १२७३ वर्षे फागुण वदि २ रवि दिने श्री चैत्रगच्छे श्री धर्मसिंघ सूरी २. सूरीणां शुभग्गत्तिः + सिघ पु० सागरचन्द्रेण कारिता ३ ......... .... .... ... ... ... .... ॥ श्री॥ लेख संख्या २: मन्दिर में स्थापित की हुई अम्बिका देवी की संगमरमर में बनी हुई मूर्ति के पबासण पर के लेख-अनुसार प्रतिमा का समय "सं १२" है। लिपिशास्त्रीय लक्षणों और प्रतिमा की शैली को देखने से मूर्ति तथा लेख १३वीं शती ईस्वी का लगता है। अतः अभिलेख का समय संवत् [१३]१२ मानना ठीक होगा जो १२५५ ईस्वी के बराबर है। दो पंक्तियों वाला यह लेख अपूर्ण है। इसमें पल्लिका (राजस्थान का पालि गाँव) और उसका सां(शां)तिनाथ चैत्य उल्लिखित है। संभव है प्रतिमा असल में वहीं स्थापित रही हो। मूल पाठ १. सिद्धम् सं [१३*]१२ मार्ग सु[दि*] १३ श्री ऊ० श्री पल्लिकास्थाने । श्री सां(शां)२. तिनाथ चैत्ये Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर का तीन जैन प्रतिमा-लेख - 173 लेख संख्या 3: संवत् 1501 वर्ष का यह लेख पंचतीर्थ प्रतिमा की पीठिका के तीन हिस्सों पर खुदा है। बायें भाग में केवल तीन पंक्तियां खुदी हैं जबकि मध्यभाग में पाँच और दाहिने भाग में छः पंक्तियां हैं। मध्य दाहिने भाग की पंक्तियों के शुरू के कुछ अक्षर मिट जाने से अभिलेख का पूरा खुलासा संभव नहीं हो पाया है। इस अभिलेख में हेमतिलक सूरि, वीरचन्द्र सूरि, जयाणंद सूरि और प्रतिष्ठाकर्ता मुनितिलक सूरि के नाम अंकित हैं। एक ब्रह्माणगच्छीय हेमतिलक सूरि का नाम संवत् 1437 (ईस्वी 1380)' और संवत् 1446 (ईस्वी 1389)2 के अभिलेखों से ज्ञात है। संभव है कि 1444 ईस्वी की इस पंचतीर्थ प्रतिमा-लेख के हेमतिलक सूरि और ब्रह्मणागच्छीय हेमतिलक सूरि एक रहे हों। ऐसा स्वीकार करने पर ब्रह्माणगच्छ के तीन पश्चात् कालीन मुनियों के नाम इस अभिलेख से प्रकाश में आते हैं। यह प्रतिमा मूलतः ने(न)डूलाइ(नाडलाई, राजस्थान) के किसी पार्श्वनाथ जिनालय में रही होगी। मूल पाठ 1. संवत् 1501 वर्षे श्रीपार्श्वनाथः [प्रतिमा स्थापितः 2. ने(?)ने(न)डूलाइ प्रासाद] + + न परिन + + + श्रावके 3. छे श्री हेमतिलक सूरितः / तत् पट्टे श्री वीरचन्द्र सू[रि] + +देम त० 4. श्री जयाणंद सूरि प्रतिष्ठित गछनायक [श्री] मुनित्तिलक सूरि श्रा० ... ... ... 6 .... ........ प्रवक्ता प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर-मध्यप्रदेश 1. पूरनचन्द नाहर, जैन इन्सक्रिप्शन्स, भाग 2, लेखांक 1123 / 2. वही, भाग 1, लेखांक 968 /