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'चाणाक्य - एक दक्षिणी कथानक
ईसुनी दशमी शताब्दीमां थई गयेला मनाता दिगम्बर जैन साधु श्री शिवकोटि-आचार्ये कन्नड भाषामां रचेल कथाग्रन्थ 'वड्डाराधना' (वृद्धाराधना)नी १९ कथाओ पैकी १८मी कथा 'चाणाक्य'नी छे. जैन ग्रन्थगत चाणक्यकथामां अने 'मुद्राराक्षस'-वर्णित कथामां तफावत तो छ ज. परन्तु प्रचलित जैन चाणक्यकथा करतां पण वड्डाराधनानी कथा घणी जुदी पडी आवे छे, एटले ते कथा एक नोंधरूपे अत्रे आपवामां आवे छे.
वड्डाराधना ग्रन्थना मूळ सम्पादक डि.एल. नरसिंहाचार्य छे, अने तेमणे ई. १९४९मां तेनुं सम्पादन करेल छे. चाणक्यनी कथा मूळ कन्नडमांथी संस्कृतमां, शोधदृष्टिए, विद्वान् एस. जगन्नाथे अवतारी छे, जे केरल राज्यना वेलीयानाड (veliyanad) स्थित चिन्मय इन्टरनेशनल फाउन्डेशननी शोधपत्रिका Indic Studies (Vol. 1, 2002)मां प्रगट थयेल छे. ते परथी अत्रे संक्षेप आपवामां आव्यो छे.
एस. जगन्नाथे केटलाक मुद्दा आ प्रमाणे नोंध्या छे : १. वड्डा० गत चाणाक्यकथा अने मुद्राराक्षसगत चाणक्यकथा-बन्नेमां आभ-जमीन- अन्तर छे. २. अन्य दिगम्बराचार्य हरिषेणकृत बृहत्कथाकोषमांनी चाणक्यकथा करतां पण आ कथा घणी जुदी छे. ३. शिवकोट्याचार्ये कोई ग्राम्य कथानोलोककथानो आधार लीधो होवो जोईए. ४. अहीं चाणक्यने 'चाणाक्य' तरीके ओळखाव्यो छे. कन्नड भाषामा प्रयोजातो 'चाणाक्ष' शब्द ते आ 'चाणाक्य'नो अवशेष होय, तेमज कन्नड आदि भाषाओमां प्रयोजाता 'चालाक' शब्द अनुसन्धान पण आ 'चाणक्य' साथे होई शके. ५. 'मुद्राराक्षस' चाणक्यना जीवनना उत्तरार्धनुं ज वर्णन आपे छे, पण कोईए तेना जीवननी पूर्व-घटनाओनुं वर्णन निरूपता रूपकनी पण रचना करी होवी जोईए, अने तेना अनुसन्धानमा विशाखदत्ते, पूर्ववृत्तान्तने उवेखीने तथा पछीना वृत्तान्तने 'वस्तु बनावीने 'मुद्राराक्षस' रच्यु होय, तेवी सम्भावना छे. ६. चाणाक्यनी (इतर साहित्यमां) प्रचलित कथानी तुलना के तुलनात्मक अभ्यास मुद्राराक्षसपरम्परानी कथा साथे हजी सुधी प्राय: थयो नथी, तेम मानीने तेवा अभ्यासनी
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अनुसंधान - २७
भूमिकारूपे आ कथा संस्कृतमां आपी रह्यो छं. हवे कथा जोईए :
जम्बूद्वीपना भरतक्षेत्रमां मगध नामे पुर (देश) छे. तेमां पाटलीपुत्र नामे पत्तन छे. तेनो राजा नन्दवंशनो पद्म नामे छे. राणी सुन्दरी अने पुत्र महापद्य तेनो मंत्री कापि अथवा विश्वसेन छे. संयोगवश राणी अने मंत्रीने स्नेह थयो, एटले मंत्रीए विचार्य के राजाने हणीने राणी साधे आनन्द करूं. ते राजाने, धन दाटवानी गुप्त जग्या देखाडवाना बहाने उपवनमां कूवाकांठे लई गयो, अने विश्वस्त राजाने हणीने कूवामां फेंकी दीधो. ते वखते वनमां फूल चूंटी रहेला माली वसन्तक आ जोईने डरी गयो अने भागी गयो. मंत्री विहवल तो थयो, छतां नचिन्त थई स्थाने गयो बीजी सवारे राजाने मळवा गयो, ते न मळतां तेने शोधवानो देखाव रच्यो ने शोक पण कर्यो. छेवटे महापद्मने राजा स्थापी पोते गुप्त रीते सुन्दरी साथे निरांते भोग भोगववा लाग्यो. पण महापद्मे थोडा ज वखतमां बधुं पकडी पाड्युं अने मंत्रीने तेना परिवार साथै सुरंग - केदमां पूरी दीधो. एक नाना वाटका जेटलुं बारुं रखावेलुं ते वाटे रोज एक वाटकी ओदन अने एक लोटो पाणी तेमने अपातुं तेटलामां ज बधांए निर्वाह करवानो. एटले मंत्रीए सूचव्युं के आपणामांनो जे पुरुष शत्रुनुं अने नन्दवंशनुं निकन्दन काढी शके ते ज आ वापरी जाय ने स्वस्थपणे जीवे; बाकीनां बधां भूख- तरस वेठीने जीवन समाप्त करे. मंत्रीना सुबन्धु नामे पुत्रे आ माटे तत्परता दर्शावतां तेना सिवायनां तमामे अन्न जल तजीने मृत्यु स्वीकारी लीधुं.
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त्रणेक वर्ष बाद, शत्रुओए आक्रमण करतां राजाने मंत्री सांभर्यो. तेणे सुबन्धुने बहार कढाव्यो अने मानपानपूर्वक मंत्री बनाव्यो. तेणे शत्रुओने चतुराईपूर्वक पाछा वाळ्या. राजा विशेष खुश थयो. राजानो बीजो मंत्री हतो शकटाल. तेनी पुत्री नन्दवतीनो विवाह सुबन्धु साथे थयो.
मगधमां ज शाल्मलि नामे अग्रहार ( ग्रामविशेष) हतो, त्यां सोमशर्मा अने कपिला नामे द्विज-दम्पती रहेतां हतां तेमने चार दांतवाळो चाणाक्य नामे पुत्र थयो. तेने जोईने नैमित्तिक वसन्तके भाख्युं के आ नन्दवंशनो क्षय करीने कां राजा थशे, कां राजमंत्री तेना पिताए पथ्थर लईने ते चारे दांत तोडीने फेंकी दीधा अने घसीने तेनुं मों सम करी नाख्यं मोटा थई
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विद्यापारगामी थयेल सम्यग्दृष्टि श्रावक एवा चाणाक्यनां लग्न शकटाल मंत्रीनी नानी पुत्री यशोमती साथे थयां.
एकवार शोण नदीना किनारे तेना पगमां दर्भनी अणी भोंकातां लोही नीकळ्युं, तो तेणे गुस्साथी ते विभागनुं दर्भ उखेडीने सळगावी भूक्यु. आ दृश्य मंत्री सुबन्धुए जोयुं ने आम करवानुं कारण पूछ्युं, तो कह्यु के मारा शत्रुनुं हुं निकन्दन काहुँ छु. मंत्रीए तेनी साथे मित्रता बांधी. तेनी अन्य परीक्षा करीने तेनी बुद्धिनो क्यास काढ्यो अने पछी राजा पासे तेने ६० गामोनी ब्राह्मणवृत्ति बंधावी आपी.
आ पछी सुबन्धुए ए ६० गामोना हकदार ब्राह्मणोने उश्केर्या, अने तेमनी परम्परागत आजीविका पाछी मेळववानी विनंति तेमनी पासे राजा समक्ष करावी. पोते ते वातमां टेको पण आप्यो. राजाए सूचव्यु के चाणाक्यने तुं खसेड तो आ बधान काम थाय. सुबन्धु गयो चाणाक्य पासे अने का के "राजाए मने आज्ञा करी छे के चाणाक्य वेश्यागामी अने हलकी सोबतवाळो छे, तेथी तेने काढी मूक." अने. ते साथे ज द्वारपाल द्वारा तेना वाळ वडे तेने घसडावीने बहार कढावी मूक्यो. क्रुद्ध चाणाक्ये नगरत्याग करतीवेळा प्रतिज्ञा लीधी के १२ वर्षमा महापद्मनो विनाश करीश; त्यां सुधी 'अर्धारुक' (लंगोट के अर्ध-अधोवस्त्र) नहि छोडूं'. पछी संन्यासीनो भगवो वेष पहेरी ते महोदकपुरे जई वस्यो.
___ हवे ते पुरनो स्वामी कुमुद हतो- मयूरवंशनो; तेनी मन्दा नामे राणी गर्भवती थई अने तेने चन्द्रनुं पान करवानो दोहलो थयो. केम पूरवो ? ते सूकावा लागी. चाणाक्यने जाण थतां तेणे का, दोहद पूरो करी आपुं, पण आवनारुं बालक मने सोंपवा. राजाए. हा कहेतां तेणे युक्तिथी चन्द्रपान राणीने कराव्यु. कालक्रमे पुत्र थयो तो तेनुं नाम 'चन्द्रभुक्त' पाड्युं. चाणाक्यने ते सोंप्यो. चाणाक्ये त्यारथी ज माखणमां अल्प विषमात्रा भेळवीने तेने उछेरवा मांड्यो. १६ वर्षनो ते थयो त्यारे चाणाक्ये तेना स्वजनादिने भेगां करी कह्यु के 'चन्द्रभुक्तमा सम्राट थवानां बधां लक्षणो छे. हुं तेने राजा बनावीश अने तमारी वृत्ति १६ गणी वधारी दईश.' आ पछी तेणे ते राजानी सेना तैयार करी श्रीपर्वतना शिखर पर ते सर्वने राख्या अने पोते सुवर्णसिद्धिनी
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अनुसंधान-२७
शोधमां नीकळी पड्यो. जंगलमां क्यांक तेने सिद्ध रसनो कूवो जडतां कोईनी मददथी ते रस तेणे प्राप्त कर्यो अने पाछो आव्यो. पछी तेणे कपट वडे लोको पासे माटीना ढग अणावीने श्रीपर्वत पर कोट रचाव्यो, नवं नगर वसाव्यु, अने पछी मोटी सेना लईने महापद्म उपर चड़ी गयो. हार्यो. ए पछी वर्षे वर्षे ते चडाई करतो, अने हारीने पाछो आवतो. एकवार ए रीते हार्या पछी चन्द्रभुक्त वगेरेने तो तेणे रवाना कर्या, पण स्वयं भागी न शकतां बचवा माटे तळावमा पेसी गयो. शत्रुसैन्य गया पछी ते गुप्त रीते पाटलीपुत्रमा पेठो. त्यां एक वणकरना घरे जई त्यां रहेती वृद्धा पासे भोजन माग्यु. वृद्धाए गरम 'यवागू' पीरसी, अने उतावळा चाणाक्ये तेमां एकदम हाथ नाख्यो. ते दाझ्यो. ते जोईने वृद्धा बोली : 'आ दुनियामां में त्रण मूर्ख जोया.' चाणाक्ये पूछ्यु : 'मा, ते त्रण कया मूर्ख ? मने कहो.' त्यारे वृद्धा कहे: 'पहेलो मूर्ख तुंः वासणनी किनारी परथी जरा जरा यवागू हाथमां लईए तो दझाय नहि, आटलीय गतागम तने नथी एटले. बीजो नन्दराजा; पोते समर्थ हतो, अने पोताने मारवानी प्रतिज्ञा करनार शत्रु हाथवेतमा हतो छतां तेने जीवतो जवा दीधो एटले. अने बीजो मूर्ख चाणाक्य; तेनी पासे क्रोध सिवाय शुं छे ? पोते सेनापति नथी, क्षत्रिय पण नथी, अने छतां राजा सामे युद्धे चडे छे. जो एनामां बुद्धि होय राजाना राज्यने वणसाडे, तेना दुश्मनोने पोताना पडखे ले, तेना अधिकारीओने फोडी नाखे, भेदनीति आचरे, तो राजा एकलो पडे ने तेने जीती शके, पण आवडत जोईए ने !'
चाणाक्य तरत त्यांथी नीकळ्यो, श्रीपर्वते जई सेनाने लई पाटलीपुत्र पर घेरो घाल्यो, अने साथे ज वृद्धाए कहेलां तमाम प्रयोजनो पार पाड्यां. परिणामे राजा जीव लईने नासी गयो अने सुबन्धु केद पकडायो. पछी तेणे चन्द्रभुक्तने राजा बनावी, महापद्मनी राणी चन्द्रमतीने तेनी पटराणी तरीके स्थापी. राजनी तिजोरी खाली जाणतां प्रजाजनोने नोतरी भोजनपूर्वक मद्यपान करावी नशामां ज तेमनां धन संताडवानां स्थाननी जाणकारी मेळवी लोधी, अने ते धन पडावी लईने तिजोरी भरी दीधी. आम १२ वर्ष जूनी, नन्दवंशनिकन्दननी पोतानी प्रतिज्ञा पूरी कर्यानी खुशालीमा प्रजा साथे ते खूब नाच्यो, अने संन्यासीनो वेष कायम राखीने यशोमतीने बोलावी लीधी. सामन्तादि
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जनोने पण खुश कर्या, अने मगधदेशनुं पालन ते करवा लाग्यो.
एकवार, चन्द्रमती रथ पर आरूढ थई, ते साथेज रथना दशेदश आरा धरती पर पड़ी गया. आ जोईने चाणक्ये भाड्युं के मयूर(मौर्य) वंशनी दश पेढी राज्य भोगवशे.
बीजा एक प्रसंग राजा तेना क्रम मुजब विषमिश्रित भोजन जमतो हतो, त्यारे राणीने होंश थई आवतां तेणे पण ते भाणामांथी कोळियो लई लीधो. ते गर्भवती हती. अने ते समये चाणाक्य त्यां हाजर हतो. तेणे तत्काल तलवारथी राणी मस्तक कापी नाख्यु, अने अंदरना गर्भने पेट चीरीने बहार काढी लीधो. तो पण बिन्दु जेटलो विषनो अंश तेना शरीर पर झरेलो जोई तेनुं नाम बिन्दुसागर पाड्युं. परंतु राणीना आवा मृत्युने राजा सहन न करी शक्यो, अने तेणे तत्काल प्राणत्याग कर्यो. पछी चाणाक्ये बिन्दुसागरनो राज्याभिषेक कर्यो.
ते युवान थयो एटले चाणाक्ये वैराग्यप्रेरित साधुजीवन स्वीकारवार्नु विचार्यु. सुबन्धुने केदमांथी बहार काढी, मानसहित मंत्रीपदे स्थाप्यो अने खमाव्यो. पछी पोते मतिवर नामे जैनाचार्य पासे दीक्षा लीधी. आगमो भणी अने तपस्या आचरीने तेओ आचार्य बन्या, अने सपरिवार सर्वत्र विचरता एकवार पाटलीपुत्रनी नजीक वहेती शोण नदीना कांठे गोष्ठमां रोकाया. सुबन्धु तेमने मळवा तो आव्यो, पण पूर्वनो वेरभाव ताजो थवाथी तेणे पोताना माणसो द्वारा ठंडीथी रक्षणना नामे, मुनिगण हता, ते गोष्ठनी फरतां छाणांना ढगला गोठवाव्या, अने पछी तेमां आग चंपावी. ते आगे गोष्ठ अने तेमांना चाणाक्य आदि मुनिओने भरखी लीधा. मुनिओ पण शुभध्यानआराधनापूर्वक समाधि-मृत्यु पामी शुभ गतिए गया. चाणाक्य मुनि सनत्कुमार देवलोके गया.
कथानक बहु रसप्रद छे. घणी वातो कांईक जुदी होय तेवू लागे. तेमां पण १. चन्द्रगुप्तनुं नाम चन्द्रभुक्त; २. चाणाक्य १२ वर्षनी प्रतिज्ञा ले छे, पण ते पूरी करवामां लागतां घणां वधु वर्ष, अने छतां १२ वर्षे ज पूर्ण
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________________ 78 अनुसंधान-२७ थवानुं विधान; 3. दिगम्बर मान्यता प्रमाणे तो चन्द्रगुप्ते पाछली वये दीक्षा लीधी हती अने ते पछी तेणे दक्षिणना कर्णाटकदेशना गोम्मटेश्वरना पहाड पर साधना करी हती, परंतु ते वात-मान्यतानो गंध सरखो पण, एक दक्षिणना जैनाचार्यनी कन्नड रचनामां पण नथी मळतो; आमां तो चन्द्रभुक्तने अकाल मृत्यु पामी जतो दर्शावेल छे !; आ बधी बाबतो क्यांक विसंगत तो क्यांक नवीन होवानुं मानी शकाय. अभ्यासुओने आमां रस जरूर पडशे एम मार्नु छु.