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जून - २०१२
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भूषण नाम गर्भित एक अप्रगट गहूली
- मुनिसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयौ मध्यकालीन भाषाना साहित्यप्रकारोमांना रास, विवाहलो, गरबो इत्यादि प्रकारो लोकमुखे अविरत वहेता रह्या छे. तो ढूंकी रचनाओमां स्तवन, गहुंली, छन्दादि रचनाओ लोकमुखे वधु प्रचार पामी एम कहेवामां अतिशयोक्ति नहि
गणाय.
गुरुभगवंतोनी पधरामणी वखते जेम मंगल प्रतीकरूपे स्वस्तिकादि गहुंलीनुं आलेखन कराय छे, तेम व्याख्यानादिमां मङ्गलगीतो द्वारा थती गुरुगुणवर्णना गहुंलीसंज्ञक रचना तरीके ओळखी शकाय. सधवा स्त्रीओ गुरुभगवंतने वांदवा उपाश्रये जाय छे त्यारे तेमणे शा शा शणगार सज्या छे तेनुं कविए प्रस्तुत कृतिमां सुन्दर वर्णन कर्यु छे. शणगारमांनां केटलाक झाल, डोडी जेवां आभरणनां नामो हालमां प्रसिद्ध नथी. बीजा केटलाक शब्दो अपरिचित होइ तेना अर्थो अमे नोंधी शक्या नथी. विद्वानो ते अंगे योग्य मार्गदर्शन आपशे. कृतिकार मेरू कोण छे ते अंगे विशेष कशो उल्लेख मळ्यो नथी.
प्रस्तुत कृतिनी प्रत आपवा बदल नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरिजी जैन ज्ञानमन्दिरना व्यवस्थापकश्रीनो खूब खूब आभार.
शब्दकोष
नलवटि = कपाळमां टींगर = ? पीअरि = कंपाळमां लगाडवामां आवती
अर्चा. झाल = कानमां पहेरवानुं एक आभूषण वेसणकांटो = ? (वेसर-नथ ) हांसडी = गळमां पहेरवानुं एक घरेणु
डोडी = हाथे पहेरवानुं मादळियु (?) वेढ = आंगळीए पहेरवानी एक प्रकारनी
मोटी वीटी. चादरचीर = ? अलवइ = हळवेथी, लीलापूर्वक मादल = एक वाद्य, मृदङ्ग
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अनुसन्धान-५९
भूषण नाम गर्भित एक अप्रगट गहुंली कुंकुम केसर घोली रोली कचोली भरी रे, रूडी कचोली भरी, गोरी गेलइ गूंहली ग्रहइ उलट धरी रे, रूडी उलट धरी, थाल सुविशाल सोना-रूपानां वारू रें, [रूडा] सोना-रूपानां वारू, माणिक मोती चोखा भरीइं संपति सारू रे, रूडी संपति सारू १ 'नलवटि टीली टबकां टीलांटींगर करी रे, रूडां टींगर करी, सुविशाल गाल लाल पीअलि भरी रे, रूडी पीअलि भरी, सीसइ सहसफूल सींथो फूलीस्युं सोहइ रे, रूडी फूलीस्युं सोहइ, वेणीबंध बांध्यो देखी मनडां मोहइ रे, रूडां मनडा मोहइ २ आंखडी अणिआली काली अंजन अंजइ रे, रूडां अंजन अंजइ, कानिं मानिं झाल अबुकइ कामीडा रंजइ रे, जेणइ कामीडा रंजइ, नाके नथ नकफूली 'वेसणकांटो रे, रूडो वेसणकांटो, पइहरी चतुरा चितिं चालइ मुंकती आंटो रे, रूडो मुंकती आटो. ३ हार हईई हरखइ हेजइ हांसडी पहिरइ रे, रूडी हांसडी पहिरइ, चीलमाला डोडी वडी मादलीआं धरइ रे, रूडां मादलीआं धरइ, बांहइ बाजुबंध बांध्या बहिरखा खलकइ रे, रूडां बहिरखा खलकइ, सोवनचूडी रूडी मांहइ माणिक झलकइ रे, रूडां माणिक झलकइ ४ रतन रंगीले जड़यो चूडलो चमकइ रे, रूडो चूडलो चमकइ, वारू “वेढ वींटी मांहइ आरीसा झमकइ रे, रूडा आरीसा झमकइ, पायपदनी(मी) झेर झांझर घूघरा घमकइ रे, रूडा घूघरा घमकइ, गजगति गेलइ गोरी चालती ठमकइ रे, रूडी चालती ठमकइ. ५ 'चादरचीर चरणाचोली चूनडी पहिरइ रे, रूडी चूनडी पहिरइ, घाटडीस्युं धुंघट ताण्यो मनडा हरइ रे, रूडा मनडा हरइ, च्यार-पांच सरिखा-सरिखी टोलइस्युं मिली रे, रूडी टोलइस्युं मिली, भगवंतभवनि आवी भास दइ भली रे, रूडी भास दइ भली ६
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________________ जून - 2012 उपासरइ अलवइस्युं० आवइ उलट अंगइ रे, रूडा उलट अंगइ, खीमाजीनो नंदन वंदन करती रंगइ रे, रूडा करती रंगइ, गोरी गेलइ गुरुजी आगलि गूंहली करइ रे, रूडी गूंहली करइ, माणिक-मोती चोक पूरी सुकृत भरइ रे, रूडां सुकृत भरइ. वारू वेढ वीटां रूपां श्रीफल वली रे, रूडां श्रीफल वली, लटकइस्युं लूछणां करती ललीअ लली रे, रूडां ललीअ लली, धवल-मंगल गाई गोरडी मिली रे, रूडी गोरडी मिली, ताल तंती मादल वाजइ भेरस्युं भली रे, रूडी भेरस्युं भरी. सुहवि सोभागिणि गाती आसीस दीजइ रे, रूडी आसीस दीजइ, माहरा रे गुरुजी केरा दूखडा लीजइ रे, रूडा दूखडा लीजइ, सुजय विजयवंतो गुरुजी माहरो रे, रूडो गुरुजी माहरो, मेरू कहइ गुरुजी नमी आतमा तारो रे, रूडो आतमा तारो. // इति श्रीभूषणगर्भित गृहली भास // 8 C/o. अश्विन संघवी, कायस्थ महोल्लो, गोपीपुरा, सूरत-१