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● साध्वी रत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
भगवान महावीर एवं बुद्ध :
एक तुलनात्मक अध्य य न
डा. विजय कुमार जैन
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में जब तथागत बुद्ध एवं भगवान महावीर का आविर्भाव हुआ, उस समय भारतवर्ष में ब्राह्मण संस्कृति का प्रभाव था । ब्राह्मण अपने त्यागमय आदर्शों से च्युत हो रहे थे । विद्वान् बुद्धिवाद के आधार पर नवीन मार्ग की व्यवस्था में लगे थे । विद्वद्जगत् में नियमन के बिना अराजकता का विस्तार था । आध्यात्मिक विषयों को सन्देह की दृष्टि से देखा जाने लगा था । एक ओर संशयवाद की प्रभुता थी दूसरी ओर अन्धविश्वास की । दर्शन के मूल तथ्यों की अत्यधिक मीमांसा इस युग की विशेषता थी । विचार के साथ ही सदाचार का ह्रास हो रहा था । धर्म के बाह्य अनुष्ठानों ने धर्म के भीतरी रहस्य को भुला दिया था । आडम्बरों, देवतावाद, एकेश्वरवाद और कर्मकाण्ड के अनुष्ठान की ओर आवश्यकता से अधिक महत्व दिया जाता था ।
तथागत बुद्ध एवं भगवान महावीर ने अनाचार से सदाचार की ओर तथा अन्धविश्वास से तर्क की ओर मोड़ा । मानवता के प्रति लोगों के हृदय में आदर का भाव बढ़ाया। निर्वाण की प्राप्ति व्यक्ति के प्रयत्नों के आधार पर साध्य बतलाई तथा वैराग्य की पवित्रता को प्रदर्शित किया ।
बुद्ध एवं महावीर दोनों ही श्रमण संस्कृति के पोषक थे । दोनों ने अपने-अपने अलग धर्मतीर्थ की स्थापना की जो आज बौद्ध एवं जैन धर्म के नाम से जाने जाते हैं । दोनों महानुभावों में बहुत सी सदृशता है जिसका हम प्रस्तुत पत्र में विवेचन कर रहे हैं।
तथागत गौतम बुद्ध बौद्धधर्म के संस्थापक हैं। साथ ही बुद्ध परम्परा के अन्तर्गत २५ वें बुद्ध भगवान् महावीर भी जैनधर्म के अन्तिम २४वें तीर्थंकर हैं एवं जैनधर्मं के पुनरुद्धारक । तीर्थ या धर्म की स्थापना करने वालों को तीर्थंकर कहा जाता है । बुद्ध भी तीर्थंकरों के समान ही धर्म की स्थापना करने वाले हैं । भगवान् महावीर एवं अन्य तीर्थंकरों को राग, द्वेष आदि कर्मों को जीतने के कारण "जिन " कहा जाता है और उनके अनुयायियों को आज "जैन" कहा जाता है । उसी प्रकार बुद्ध के अनुयायियों को "बौद्ध" कहा जाता है ।
जैन एवं बौद्धधर्म परम्परा में तीर्थंकर एवं बुद्ध के चरित्र एवं वर्णन प्रसंगों में काफी समानता प्रतीत होती है। जैन परम्परा में तीर्थंकरों के वर्णन प्रसंग में उनके नाम व स्थान जहाँ से वे उत्तीर्ण हुए, माता-पिता का नाम, वंश, आयु, ऊंचाई, चिह्न, वर्ण, तपस्या, आसन, निर्वाण स्थल एवं महत्व की पाँच १४६ | चतुर्थ खण्ड : जैन दर्शन, इतिहास और साहित्य
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साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
तिथियों का वर्णन मिलता है - गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान और निर्वाण । बौद्ध परम्परा में भी प्रायः समान रूप से बुद्धों के वर्णन मिलते हैं; यथा - बुद्धों का नाम, कितने पूर्व का समय, कल्प, नगर, माता-पिता, स्त्री-पुत्र, गृही- जीवन, गृहत्याग का वाहन, तपश्चर्याकाल, बोधिवृक्ष, अग्रश्रावक, अग्रश्राविका, परिचारिका का नाम, श्रावक सम्मेलन, आयु । भगवान् महावीर के पंचकल्याणकों की तरह तथागत बुद्ध की भी पाँच तिथियों का महत्व है - प्रतिसन्धिग्रहण एवं जन्म, गृहत्याग, बोधिलाभ, धर्मचक्रप्रवर्तन एवं परिनिर्वाण ।
तीर्थंकर बनने के संस्कार षोडश कारण अत्यन्त विशुद्ध भावनाओं द्वारा उत्पन्न होते हैं । तीर्थंकरों के सम्बन्ध में विशिष्ट मान्यताएँ हैं जैसे - तीर्थंकर माता का दूध नहीं पीते, उनको गृहस्थावस्था ही अवधिज्ञान होता है पर उसका प्रयोग नहीं करते, उनके शरीर की अपनी विशेषताएँ होती हैं जैसे - मूंछ दाढ़ी नहीं होती लेकिन शिर पर बाल होते हैं। मनुष्य गति में ही इनकी प्रतिष्ठापना होती है ।
इसी प्रकार बुद्धत्व प्राप्ति के लिए कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ बतलाई गई हैं जिनसे अभिनीहार की सिद्धि होती है । यथा - मनुष्यभव, लिंगसम्प्राप्ति हेतु, शास्ता का दर्शन, प्रव्रज्या, गुण सम्प्राप्ति, अधिकार तथा छन्दता । दस पारमिताओं की पूर्ति । स्वयं गौतम बुद्ध ने बोधिसत्व के रूप में ५५० बार विविध योनियों में जन्म लेकर पारमिताओं की पूर्ति की थी ।
पारमिताओं की पूर्ति कर बोधिसत्व, तुसितलोक में देवपुत्र के रूप में जन्म लेते हैं । तत्पश्चात् देवताओं द्वारा याचना किये जाने पर पंचमहाविलोकन करते हैं, अर्थात् काल, द्वीप, देश, कुल, माता तथा उनकी आयु पर विचार करते हैं ।
(१) श्री ऋषभनाथ, (४) अभिनन्दननाथ,
(७) सुपार्श्वनाथ,
(१०) शीतलनाथ,
(१३) विमलनाथ,
(१६) शान्तिनाथ,
(१६) मल्लिनाथ,
(२२) नेमिनाथ,
जैन तीर्थंकर
(२) अजितनाथ,
(५) सुमतिनाथ,
(८) चन्द्रप्रभ
(११) श्रेयांसनाथ,
(१४) अनन्तनाथ,
(१७) कुन्थुनाथ,
(२०) मुनिसुव्रत,
(२३) पार्श्वनाथ,
(१) दीपंकर,
(४) सुमन, (७) अनोमदर्शी,
(१०) पद्मोत्तर,
(३) सम्भवनाथ,
(६) पद्मप्रभ,
(e) सुविधिनाथ
(१२) वासुपूज्य,
(१५) धर्मनाथ,
(१८) अरनाथ,
(२१) नमिनाथ,
(२४) महावीर ।
बुद्ध
(२) कोण्डिन्य,
(३) मंगल,
(५) रेवत,
(६) शोभित,
(८) पद्म,
(६) नारद,
(११) सुमेध,
(१२) सुजात,
भगवान् महावीर एवं बुद्ध एक तुलनात्मक अध्ययन : डॉ० विजयकुमार जैन | १४७
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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
(१३) प्रियदर्शी, (१४) अर्थदर्शी,
(१५) धर्मदर्शी, (१६) सिद्धार्थ, (१७) तिष्य,
(१८) पुष्प, (१९) वियश्यी, (२०) शिखी,
(२१) बेस्सभू, (२२) ककुसन्ध, (२३) कोणागमन,
(२४) काश्यप, (२५) गौतमबुद्ध । अब हम भगवान् महावीर एवं तथागत बुद्ध के जीवन परिचय का विवेचन करेंगे
भगवान् महावीर एवं बुद्ध दोनों क्षत्रिय थे। भगवान् महावीर की पूज्य माता वैशाली गणतन्त्र के राजा चेटक की पत्री त्रिशला थी। पिता सिद्धार्थ वैशाली के एक उपनगर कण्डग्राम इसीलिए महावीर को वैशालीय भी कहा जाता है।
तथागत बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था जबकि सिद्धार्थ नाम महावीर के पिता का था। बुद्ध के पिता शुद्धोदन भी शाक्यवंशीय राजा थे तथा माता महामाया थीं । तथागत बुद्ध एवं महावीर दोनों ने ही क्षत्रिय कुल में जन्म लेना उपयुक्त समझा था। जैन मान्यता तो यहाँ तक है कि भगवान् महावीर का जन्म पहले ब्राह्मण माता की कुक्षि में हुआ लेकिन बाद में उसे क्षत्रिय माता के यहाँ बदला गया। गर्भ के समय बुद्ध एवं महावीर की माता को स्वप्नदर्शन हआ। जैन परम्परा में १४ एवं १६ स्वप्नों की मान्यता है। बुद्ध की माता को बोधिसत्व के कुक्षि में प्रवेश के स्वप्न पर विचार करने पर इनकी महानता का बोध हो जाता है।
दोनों के जन्म से चमत्कार एवं श्रीवृद्धि हुई। विशिष्ट ज्ञानधारी होते हुए भी शिक्षा के लिए आचार्य के पास गए। दोनों का विवाह हुआ (दिगम्बर परम्परा के अनुसार नहीं)। गौतम बुद्ध का विवाह यशोधरा से, महावीर का यशोदा से। गौतम बुद्ध के राहुल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ तथा भगवान् महावीर को पुत्री । भगवान् बुद्ध ने गृहत्याग २६ वर्ष की अवस्था में किया; महावीर ने ३० वर्ष की अवस्था में । भगवान् बुद्ध ने ६ वर्ष तक कठोर तपस्या की एवं ज्ञान प्रक्रिया में समय लगा; भगवान् महावीर को १२ वर्ष । भगवान् बुद्ध ४५ वर्ष उपदेश देते हुए विचरते रहे; भगवान महावीर ३० वर्ष तक। तथागत बुद्ध का परिनिर्वाण ८० वर्ष की अवस्था में हुआ, महावीर का ७२ वर्ष की अवस्था में हुआ। दोनों के विचरण स्थल समान प्रदेश थे। दोनों ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना बाद में की।
ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान् बुद्ध ने पहले अनिच्छा प्रकट की तत्पश्चात् ब्रह्मा की प्रार्थना स्वीकार कर पंच वर्गीय भिक्षुओं को उपदेश दिया । भगवान् महावीर के प्रथम उपदेश के लिए भी देवताओं ने पृष्ठभूमि तैयार की एवं समोशरण की स्थापना की। दोनों ने लोकभाषा को महत्व दिया। बुद्ध ने मागधी भाषा में एवं महावीर ने अर्धमागधी भाषा में उपदेश दिया।
भगवान् महावीर एवं बुद्ध दोनों के श्रद्धालु उपासक राजा एवं सम्मानित से लेकर दलित वर्ग तक थे। दोनों ने कर्मणा वर्णव्यवस्था का महत्व प्रतिपादन किया। भगवान् बुद्ध एवं महावीर को विविध बाधाओं एवं दुष्परिणामों आदि को भी सहन करना पड़ा । जैसे-भिक्षान्न में बाधा आदि। .
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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ अन्य मतावलम्बियों द्वारा गाली एवं पत्थर आदि से चोट, जिसे बुद्ध एवं महावीर अपने अलौकिक प्रभाव से ग्रहण करते थे। दोनों को एक मानव की तरह कष्ट की अनुभूति होती थी। बुद्ध एवं हावीर एक समय एवं एक स्थानों में रहते हुए भी साक्षात मिले हों ऐसा कोई सन्दर्भ नहीं मिलता। लेकिन उनके शिष्य एक दूसरे से मिलते थे एवं वाद-विवाद होता था। भगवान् बुद्ध के बहुत से शिष्य निगण्ठों के अनुयायी हो गए थे एवं कई निगंठों के शिष्य बुद्ध के अनुयायी हो गए थे। भगवान महावीर एवं बुद्ध दोनों ने अपने वचनों को पूर्व तीर्थंकरों एवं बुद्धों के द्वारा कथित बतलाया है लेकिन बुद्धों की पूर्व परम्परा का अभी तक कोई साक्ष्य नहीं मिला है जबकि पूर्व तीर्थंकर ऋषभदेव एवं पार्श्वनाथ की परम्परा के विभिन्न साक्ष्य मिलते हैं। स्वयं बौद्ध अनुयायी पूर्व बुद्धों की कोई पूजा या उत्सव नहीं मनाते हैं जबकि जैन परम्परा में पूर्व तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ एवं उनके उत्सव आदि भगवान् महावीर के अनुरूप ही मनाये जाते हैं। भगवान बुद्ध के आविर्भाव के पूर्व निगण्ठों की परम्परा विद्यमान थी। भगवान् बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति के पूर्व जो उपवास, ध्यान, मौन एवं कायोत्सर्ग किया था एवं केशलोंच आदि किए थे वे निगण्ठों (जैनों) के अनुरूप थी। लेकिन तथागत बुद्ध ने उनको निःसार जानकर त्याग दिया एवं मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया। ___ तथागत बुद्ध ने और भी कई शिक्षाओं में निगण्ठों का अनुकरण किया; जैसे-वर्षावास के नियम प्रतिपादन में, तृणघास आदि के बचाव में, भिक्षुणियों के संघ प्रवेश में / बुद्ध ने प्रव्रज्या के सम्बन्ध में यह नियम बाद में बनाया कि प्रव्रज्या के पूर्व माँ-बाप की आज्ञा अनिवार्य है / वह भी उनके पिता शुद्धोदन ने निवेदन किया कि प्रव्रज्या के पूर्व माँ-बाप की आज्ञा होनी चाहिए क्योंकि माँ-बाप को कष्ट होता है। भगवान महावीर ने यह बात उसी समय सोच ली थी जब वे गर्भ में थे; क्योंकि उनको माँ के दर्द की अनुभूति हो गई थी। ___ इस प्रकार हम देखते हैं कि तीर्थंकरों एवं बुद्धों की मान्यताओं में काफी समानता है। भगवान् महावीर एवं बुद्ध की परिस्थितियों एवं जीवन में भी समानता है जिसका हमने संक्षिप्त परिचय दिया है। इसमें अभी विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है जिसका अध्ययन हम अपनी योजना के अन्तर्गत कर H सन्दर्भ ग्रन्थ सूची 1. वर्धमान कोष, सम्पादक, मोहनलाल बाठिया एवं श्रीचन्द जैन; दर्शन समिति, कलकत्ता, 1980 / 2. तीर्थकर वर्धमान महावीर, पं० पद्मचन्द्र शास्त्री, श्री वीर निर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति, इन्दौर, 1974 / 3. जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी। . 4. निदानकथा, सम्पादक महेश तिवारी, चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वाराणसी, 1970 / . * आल इण्डिया ओरियण्टल कान्फे स, 33वां अधिवेशन, कलकत्ता में पढ़ा गया लेख / भगवान महावीर एवं बुद्ध : एक तुलनात्मक अध्ययन : डॉ० विजयकुमार जैन | 146 www.jal