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1 डॉ० डी० के० शर्मा
न करे मगर किसी प्रकार का नुकसान कभी नहीं करती सिर्फ आयुर्वेद की औषधियाँ ही हैं जो असाध्य से असाध्य रोगों को समूल (जड़) नष्ट करने की क्षमता रखती हैं। जबकि एलोपैथिक दवाईयाँ शीघ्र लाभ तो करती हैं किन्तु उनका प्रभाव स्थाई नहीं होता और वह रोग पुन: कुछ समय में उत्पन्न हो सकता है तथा ये नाना प्रकार के रोगों को भी उत्पन्न कर देती हैं।
हमारा आयुर्वेद परिपूर्ण होते हुए इसका चिकित्सा विज्ञान परिपूर्ण है। आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य ही रोगी को सुखी बनाना एवं सुखी को सदा सुखी एवं निरोग रखना है। इस संसार में यह सत्य है कि मनुष्य की आयु की रक्षा दीर्घायु प्राप्त रोग निवारण से सम्भव है। संसार की जितनी चिकित्सा पद्धतियाँ हैं उनमें उपरोक्त लाभ नहीं मिलने के कारण उन चिकित्सा पद्धतियों में किसी सिद्धान्त का आधार नहीं है। उनके सिद्धान्त समय-समय पर बदलते रहते हैं किन्तु आयुर्वेद के ध्रुव सिद्धान्तों में परिवर्तन आज तक नहीं आया। कारण त्रिकालज्ञ ऋषियों ने ध्यान में जिन सिद्धान्तों को अटल देखा, उन्हीं का उल्लेख किया है। जैसे-अग्नि में उष्णत्व,
जल में शीतलता, वायु में रूक्षता आदि ध्रुव सिद्धांत हैं। वैसे दीर्घ जीवन एवं आरोग्य प्राप्ति का मुख्य साधन आयुर्वेद
ही आयुर्वेद का त्रिदोष सिद्धांत अनन्तकाल से अटल रूप से
सफलतापूर्वक चल रहा है तथा भविष्य में भी ऐसे ही चलता ही है। आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति ही नहीं बल्कि स्वस्थ
रहेगा। एवं शतायु जीवन जीने की भी पद्धति है। इसलिए आयुर्वेद को जीवन विज्ञान कहा गया है। यही कारण है कि हमारे
आयुर्वेद के ग्रन्थों का जब हम स्वाध्याय करते हैं तो ऐसा पूर्वजों ने आयुर्वेद को वेदों का अंग माना है। आज सारा
लगता है कि यह शास्त्र केवल औषधि शास्त्र ही नहीं यह तो विश्व आयुर्वेद की चिकित्सा एवं औषधियों पर गर्व करता
मनुष्य का जीवन शास्त्र है। मनुष्य के इहलोक एवं परलोक है। अमेरिका एवं अन्य देशों ने भी आयुर्वेद के सामने घुटने
दोनों जगह इस शास्त्र की उपयोगिता प्रतीत होती है। इस टेक दिये हैं और भारत से नीम, आँवला, त्रिफला, गुड़मार,
आयुर्वेद शास्त्र में गरीब, अमीर एवं मध्यमवर्ग सभी मनुष्यों सूर्यमुखी एवं अन्य बहुत सी अनमोल जड़ी बुटियों को पेटेन्ट
की चिकित्सा होती है। आज ऐसा समय है कि विश्व के सभी
बुद्धिजीवी वर्ग अंग्रेजी चिकित्सा के भयंकर दुष्प्रभाव को कर व्यवसाय करने की सोच रहा है और हम भारतीय हैं। कि अंग्रेजी एलोपैथिक दवाओं की तरफ रूख किये जा रहे
देखकर आयुर्वेदिक चिकित्सा कराना ज्यादा पसन्द करता है। हैं। आयुर्वेद हमारे भारत की महान कृति है। इसकी औषधि
केवल भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग सेवन करने से रोगी को लाभान्वित होने में कुछ समय तो
आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए लालायित हो रहे हैं।
आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा चिकित्सा की जाय तो ऐसा कोई जरूर लगता है परन्तु कोई भी रोग समूल (जड़) नष्ट हो जाता है। आयुर्वेद की औषधियाँ विलक्षण कार्य करती हैं। इसलिए
भी रोग नहीं जो साध्य होते हुए इससे शान्त न हो। अत: आज सारे विश्व को आयुर्वेद की आवश्यकता है। आयुर्वेद
आयुर्वेद ही है जो रोग को जड़ से नष्ट करने की ताकत रखता औषधियों में यह विशेष गुण है कि वे धीरे-धीरे लाभ पहुँचाती
है। यहाँ कुछ आयुर्वेद से प्राप्त अनुभूत प्रयोग दिये जाते हैं हैं किन्तु यह प्रभाव स्थाई होता है। यह भगवान धन्वन्तरी की
जो जटिल रोगों को समूल नष्ट करने में सहायक हैंही कृपा है कि आयुर्वेदिक औषधियाँ रोगी को लाभ भले ही
विद्वत् खण्ड/१०६
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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________________ 1. पुरानी से पुरानी संग्रहणी (उदर रोग) में- सिद्ध प्राणेश्वर रोगानुसार अनुपात रस आधा रत्ती, रामबाण रस आधा रत्ती, स्वर्ण प्रपटी आधा . ज्वर, कफ रोग में-मंदाग्नि रत्ती, मकरध्वज आधा रत्ती, शंखभस्मं एक रत्ती इन शरीर पुष्टी के लिए - बड़ी पीपल का चूर्ण सबको मिलाकर पुड़िया बनाना एवं सुबह शाम शहद और . रक्त पित्त में - दूर्बा (दूब) का रस लेवें भुजा जीरा से लेवें। बलवृद्धि के लिए - अश्वगन्ध का चूर्ण 2. ब्लड सुगर या यूरिन सुगर में- बेल पत्र, मेथीदाना, बबूल पाण्डुरोग में - पुनर्नवा का रस छाल, गुड़मार पत्र, त्रिफला चूर्ण इन सबको बराबर मात्रा * प्रमेह में - हल्दी चूर्ण, मधु से में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लेवें और एक चम्मच . सन्निपात ज्वर में - कालीमिर्च का चूर्ण सुबह-शाम जल से सेवन करें। पित्त ज्वर - लोंग का चूर्ण, मधु से यह अनुभूत प्रयोग है और इससे ब्लड सुगर एवं यूरिन . सुगर में काफी लाभ होगा। सन्धि रोगों में - दाल चीनी, छोटी इलायची और तेजपत्र 3. बवासीर, कब्ज, आमबात में- रोजाना गुड़ के साथ सोंठ, चूर्ण मधु से। पीपल, हरड़, अनारदाना का सेवन करना चाहिए। शिवा फार्मेसी 4. रक्तपित्त में- गिलोय, नीमपत्ते, कड़वे परवल के पत्ते 2, कालीकृष्ण टैगोर स्ट्रीट, कोलकाता-७०० 007 इनको एकत्र कर पीसकर चूर्ण बना कर, एक चम्मच जल या आधा चम्मच शहद के साथ लेवें। 5. अगर नित्य भोजन के साथ आँवला के रस का सेवन किया जाय तो अम्लपित्त, वमन, अरुचि, खून के विकार एवं वीर्य के विकार नष्ट होकर मनुष्य का शरीर हृष्ट पुष्ट हो जाता है। 6. पीपल, दाख, मिश्री, हरड़, धनियां, जवासा इनका चूर्ण कर लेवें। सुबह-शाम एक चम्मच जल या शहद के साथ सेवन करने से जटिल से जटिल कफ, पित्त, गले की जलन, जी मचलाना दूर हो जाता है। 7. शारीरिक कमजोरी एवं वीर्य क्षीण होने पर- दालचीनी, छोटी एलायची, जायफल, नागकेशर, वायवडंग, चीतामूल, तेजपत्र, छोटी पीपल, बंशलोचन, तगर, कालीमिर्च, कालातिल, तालीस पत्र, सफेद चन्दन, हरण, आँवला, सोंठ, भीमसेनी कपूर, लोंग, कालाजीरा इन सबको बराबर मात्रा में ले कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर, मिश्री या चीनी पावडर मिलाकर, सुबह-शाम एक चम्मच, गर्म दूध या गाय का घृत और शहद मिलाकर लेवें। अतएव आयुर्वेद में ऐसे-ऐसे जटिल रोगों को जड़ से मिटा देने की क्षमता है। आयुर्वेद चिकित्सा ही है जो स्थाई लाभ प्रदान करती है। शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत् खण्ड/१०७