Book Title: Ashta Mahapratiharya Varnan Apbhramsa Bhashamay 8 Padya
Author(s): 
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमहाप्रातिहार्यवर्णनः अपभ्रंशभाषामय आठ पद्य तीर्थकर परमात्माना आठ महाप्रातिहार्यनां वर्णनो स्तोत्र स्तवन वगेरेमां पुष्का मळे छे. सामान्य रीते आवा वर्णनो संस्कृत अने प्राकृत ग्रन्थोमां अने ते ते भाषामां मळे । अहीं आपवामां आवेला आठ पद्योमा आठ महाप्रातिहार्यनुं वर्णन छे ते अपभ्रं भाषामां छे अने वत्थु(वस्तु) छंदमां छे. आ छंदमां अपभ्रंशभाषामां पुष्कळ साहित्य मळे । आ आठपद्य एक पानामां आगळ-पाछळ थईने छे. अमे राजस्थान तरफना विहारमा हता त्य एक गाममां आ प्रकीर्ण पानां जोवामां आव्या तेमां खुब झीणा अक्षरे आ आठ पद्य जोयां अं तुरत कागळमां उतारी लीधां. आजे ए अहीं प्रकाशित करवानो अवसर मळ्यो छे. अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टिर्दिव्यध्वनिश्चामरमासनं च । भामण्डलं दुंदुभिरातपत्रं सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वरस्य ।। अहीं पण आज क्रममा वर्णन थयुं छे. अशोक वृक्ष: पहेलुं अशोकवृक्ष छे तेना वर्णनमां थोडां शब्दमां सुंदर चित्र उपसाव्युं छे. अशोकवृक्ष ऊंचुं, गोळ, मृदुकोमळ वैडूर्यमणि जेवा पांदडावाळु. वळी ते पुष्पमा जे मकरन्द छे ते भ्रमरवृन्द वडे पीवाई रह्यो छे. पवनना आंदोलन वडे ज्यारे अशोकवृक्ष डोलतुं होय त्यारे जाणे ते हर्षवश न न करतुं होय तेम लागे छे. आQ अशोकवृक्ष सूर्यना किरणोने रोकतुं महावीर स्वा भगवाननी उपर शोभी रह्यं छे. पुष्पवृष्टि : जळमां उपजतां अने स्थळमां उपजतां विविध वर्णनां लाल लीला पीळां । अने गुलाबी आम पांच वर्णनां सुगंधी पुष्पोनी वृष्टि देवो करतां रहे छे. आजानु-ढीच सुधीनो ढगलो ए पुष्पोनो थतो होय छे. ए पुष्पोनी सुगंधथी खेंचाईने आवेला भ्रमरो च त्यां छे अने ए बधां पुष्पोनां वृन्त-डीटडां नीचे अने पांखडी उपर होय छे. जाणे जिनम दर्शन करवा माटे आम मुख उपर न राख्या होय तेम शोभे छे. दिव्यध्वनि : हर्षथी विकसित वदन नयनवाळां हरणियां-ए वाणी ए ध्वनि सांभळी रह्यां। ए दिव्यध्वनिनो गंभीर घोष पाणीथी भरेला मेघना गरिव जेवो लागतो हतो. अज्ञान तिमिरथी अंध बनेला भुवनना भाव प्रकट करवामां सज्ज एवी दिव्यध्वनि दशे दिशा Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 प्रसरी रही. जाणे मोहनी गाढ निद्रामां डूबेलाने जगाडवा माटे ज न होय तेम ते निरंतर दिव्यध्वनि चालु रहे छे. कमर युगल : . अत्यंत श्वेत एवा चामर प्रभुजीनी बन्ने बाजु ढळी रह्या छे. ए चामरनी सफेदाइ खेतां जाणे क्षीरसमुद्रना तरंग, शरद ऋतुना चन्द्रना किरण सरखा उज्ज्वळ ए वाळ हता. वेदो हाथो माणेकजडित सुवर्णमंडित हतो. सुरेन्द्र महाराजना करकमलमां ते शोभतां हतां. को प्रभुना गुणगणथी प्रमुदित थईने वारंवार नमतां न होय तेम ते शोभी रह्या छे. सिंहासन : जातिवंत सुवर्णथी घडायेलुं मणिथी सुशोभित, ऊंचुं, पहोळु, वच्चे कंईक मे सिंहासन शोभतुं हतुं. निरुपम कांतिवाळुजाणे रूपांतर पामेलो मेरु पर्वत न होय तेवू जिससन हतुं. अमंडल : आकाशमां एक पण वादळ न होय अने सहस्रकिरण वाळो सूर्य होय तेवू माडल शोभतुं हतुं. वीरभगवानना मस्तकनी पाछळना भागमां ए रहेलुं पृथ्वी उपरना राने दूर करनाहं हतुं. सूर्ये जाणे जिननी सेवामा पोताना किरणो न मोकल्या होय तेवू प्यमान झळहळतुं भामंडल शोभतुं हतुं. साहुंदुभि : देवदुंदुभिनो मधुर छतां मोटो अवाज अने तेना पडघाथी आकाश भराई गयु. ते अमळीने लोकोना कान चमकी जतां अने डोक ऊंची करीने जोतां. पशुगण पण कांपती आंखे ए सांभळतां अने दूर दूर जंगलमां चरतां होय तोय जिननी पासे बोलावती होय तेवी देवदुंदुभि शोभती हती. चत्रय : मोटा मोतीनी माळा जेमां शोभी रही छे ते छत्रत्रयीनो विस्तार एवो छे के जाणे परदना चन्द्र मंडळ न होय तेवा छत्र हता. वळी कांतिमान, अने सुरगंगाना तरंग जेवा उम्प्वळ हता. आवा त्रण छत्र आकाशमां शोभतां हतां. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 . (वस्तुछंद) तुंगु वट्टलु मसिणु थुड-नालु वेरुलिय - समु बहल-दलु घणु विसालु सम-साल-सालिउ । मयरंद-लालस-भसल-पिज्जमाणकुसुमोह मालिकउ पवणंदोल-पवाल-करु हरिसिं नच्चइ नाइ वीरह उवरि असोयतरु रविकरपहहरु भाइ ॥१॥ विट-संठिय-सुरहि-गंधड्ढ जलथल-यरु संभवह पंचवन्न-सुरगण-विमुक्किय आजाणु उस्सेह तर्हि, गंध-लुध्ध-भमरहं अचुक्किय सहइ समंता जिणवरह वियसिय कुसुमह वुट्ठि। जिण-दंसणि उप्फुल्ल-मुह नाइ पयासइ तुट्ठि ॥२॥ हरिस-वियासिय-वयण-णयणेहि हरिणेहिं सुय अइ रसिण विजिय-सजल-जलवाह-गज्जिय अन्नाण-तिमिरंतरिय-भुवण-भाव-पायडण सज्जिय जिण-झुणि पसरइ दस दिसिहि तिहुअण-जणिय पणाम नं गुरुतम-निद्दोवहय जण-पहिबोहण काम ॥३॥ खीरसायर-लहरि-डिंडीर पंडुरयरु सरय-ससि-किरण-सरिस-चिहुरोह-सुंदर । माणिक्क-मांडिय-पवर-कणय-डंडुरंजिय-पुरंदरु सुरवइ-कर-कमलट्ठिय चामर जुयलु ढलेइ नावइ गुणगणु मुइय-मणु पुणु पुणु जिणह न मेइ ।।४।। जच्च-कंचण घडिउ मणिचित्तु उत्तुंगु वित्थर पवरु नमिय मज्झु पेरंत उध्धरु बहुचित्त-विछुरिय-तणु पडिम-रुववर-सीह-सिंधुरु सीहासणु तिहुयण-गुरुहु सोहइ निरुवमति नं रूवंतरि मेरुगिरि, धारइ तणु गुरुभत्ति ।।५।। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब्भ-वज्जिय-गयणि रवि-किरण-नियरो व्य परिभासुरइ विप्फुरंत-तणु-किरण-रइयह नह-विवर-परिसकिरह तिमिर-नियर-महि-वलय-मइयह पसरंतह भामंडलह वीरह निरुवम साहेज्ज जिणसेवहिं पट्टविउ दिणयरि नियकिरणोहु // 6 / / पउर पडिरव भरिय नह विवर बहिरीकय-जण-सवण गुरु चमक्क-उक्कन्न-वयणेहि आयन्निय-पसुगणेहि कंपमाण-तणु तरल-नयणेहि सुरदुंदुहि वज्जंत तहिं गुरु निग्घोस महंत हक्कारइ जिण पासि किर सुर-नर दूरि चरंत / / 7 / / थूल-नितूल-विमल-विललुंत मुत्तावलि मालियह सरय-सोम-मंडल-खत्रह मणि-खंड-परिमंडियह हरतु सारगिरी-सरिस-वनह तिहुयण पहु छत्तत्तयहं सोहइ उज्जलकति नं सुरसिंधु-पवाहु नियफेणहं संठियपंति / / 8 //