Book Title: Aparajiteshwar Shatak
Author(s): Devraj Pathik
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/210085/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपराजितेश्वर शतक - मौलिक अनुवाद- परम्परा का अभिनव दस्तावेज समीक्षक डॉ० देवराज पविक दक्षिण भारत के कवि शिरोमणि रत्नाकर वर्णी लोकमंगल की कामना करने वाले कानड़ी भाषा के अद्वितीय रचनाकार हुए हैं। कवि रत्नाकर वर्णी के अमर काव्य-ग्रन्थ अपराजितेश्वर शतक में कुल १२७ पद्य हैं। इन १२७ पद्यों वाले महान् ग्रन्थ की हिन्दी में विषद विवेचना सहित टीका का दायित्व निर्वाह करने वाले श्री १०८ श्री दिगंबर जैनाचार्य श्री देशभूषण जी महाराज आधुनिक युग के महान तपस्वी संत हैं । वीतरागी परम्परा की श्री आचार्य जी महाराज अन्यतम विभूति हैं। श्री १०८ आचार्यवर्य श्री शांतिसागर जी महाराज के अपरिमित गुणों के श्रेष्ठतम उत्तराधिकारी प्रशिष्य श्री १०० श्री देशभूषण जी महाराज के प्रकाण्ड ज्ञान, स्वाध्यातील प्रकृति और विलक्षण आध्यात्मिक प्रतिभा ज्योति ने जाने कितनी भटकती आत्माओं को सही जीवन जीने की दिशा दी है। श्री आचार्य महाराज जी मूलत: कानड़ी और मराठी भाषा के महान् विद्वान् माने जाते हैं परन्तु आपकी प्रतिभा के दर्शन अन्य भारतीय भाषाओं में भी समान रूप से सुलभ हैं। आपकी सुप्रसिद्ध हिन्दी, गुजराती, मराठी में अनुवादित कृतियों में भरतेश वैभव, रत्नाकर शतक, परमात्म प्रकाश, धर्मामृत, निर्वाण लक्ष्मीपति स्तुति, निरंजन स्तुति आदि कानड़ी भाषा की महान निधियां हैं। श्री आचार्य जी महाराज के मौलिक चिन्तन और रचनाधर्मिता का दिव्य रूप इनकी स्वतंत्र रचनाओं गुरु शिष्य संवाद, चिन्मय चितामणि, अहिंसा का दिव्य संदेश, महावीर दिव्य संदेश आदि में स्पष्ट है। ज्ञान और चरित्र का मणिकांचन संयोग श्री आचार्य जी महाराज के व्यक्तित्व में सहज सुलभ है। उनके महान् व्यक्तित्व की गहरी छाप आचार्य जी महाराज की मौलिक और अनूदित कृतियों में परिलक्षित होती है । वस्तुतः दक्षिण भारत के समस्त साहित्य में विशेषकर कानड़ी और तमिल भाषा के साहित्य में बहुमुखी चिन्तनधाराओं का बारप्रवाह उपलब्ध है । परमपूज्य तपोनिधि आचार्य देशभूषण जी महाराज ने दक्षिण भारत के ऐसे समृद्ध साहित्य के हिन्दी में अनुवाद के द्वारा सम्पूर्ण देश के जन-जीवन के लिए राष्ट्रीय चेतना के दिव्य और विराट् रूप के दर्शन के संकल्प को साकार करने की दृष्टि से महान् कार्य का परिचय दिया है। अपराजितेश्वर शतक के दोनों खण्ड हिन्दी में अनुवादित काव्य ग्रन्थों की दृष्टि से बहुमूल्य बन पड़े हैं। भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक श्रेष्ठता एवं उच्चता का आदर्श आचार्य महाराज जी द्वारा विवेच्य अनुवाद में गरिमापूर्ण ढंग से प्रस्थापित हुआ है । इस अनुवाद को पढ़ने से स्वयं ही प्रमाणित हो जाता है कि आचार्य महाराज जी एक विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न, दिग्गज और धुरन्धर विद्वान् के साथ-साथ प्राचीन तपस्वियों और यतियों की समृद्ध परम्परा के अत्याधुनिक अवतार हैं । सांस्कृतिक, धार्मिक और साहित्यिक सेवाओं की दृष्टि से धर्म-प्राण पूज्यपाद श्री श्री १०८ आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज का महान् व्यक्तित्व बीसवीं शताब्दी के विस्तृत फलक को आलोकित करने में सर्वत्र संकल्पशील रहा है। दिशाहीन भारतीय समाज को नया जीवन देने की दृष्टि से चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज का योगदान अविस्मरणीय महत्त्व का है । तपोनिधि, बहुभाषा विशारद आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज भारतीय साहित्य और दर्शन के गम्भीर अध्येता एवं मर्मज्ञ विद्वान् हैं। राष्ट्र की भावनात्मक एकता के उपासक, भविष्यद्रष्टा, अनासक्त कर्मयोगी आचार्य प्रवर की राष्ट्र के रचनात्मक स्वरूप के निर्माण की कल्पना महान् राष्ट्रीय आकांक्षाओं के अनुरूप दिव्य और विशाल प्रमाणित होती है। वे उत्तर और दक्षिण के मानसिक स्वरूप के स्वस्थ निर्माण के लिए रागात्मक सम्बन्धों की पवित्रता के परिप्रेक्ष्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका हेतु युगों-युगों तक अविस्मरणीय रहेंगे। आचार्य जी ने आजीवन धर्म की रक्षा एवं साहित्य के अभ्युदय के लिए देश के कोने-कोने में प्रेम और सद्भाव की सुरसरि प्रवाहित की है। आचार्य जी महाराज की अमृतवाणी में आत्मा की अजर-अमर सत्ता का भाष्य है। इस निर्भीक सन्त की लेखनी में सनातन शक्ति की व्याख्या है। भारतीय जन-मानस को स्वतंत्रता एवं जागरूकता का दिव्य संदेश देने वाले इस तपस्वी संत ने मानव कल्याण के परिप्रेक्ष्य में सार्वभौम आध्यात्मिक चेतना की सत्ता को अपनी विवेचना का विषय बनाया है। सांस्कृतिक अनुचेतना के विख्यात उद्बोधक इस महापुरुष की अनुवादित महान् कृतियों को अपने अध्ययन का विषय बनाकर आज मुझ जैसा अकिंचन पथिक भी कृत-कृत्य है । सृजन-संकल्प ४१ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुतः किसी कृति का मौलिक अनुवाद अपने-आप में चुनौती भरा कार्य है। सामान्यतः अनुवाद की परम्परा तो सुदीर्घ काल से चली आ रही है परन्तु अधिकांश अनुवादित कृतियों में मूल ग्रन्थ का आस्वाद देखने को नहीं मिलता। मूल ग्रन्थ जैसा आनन्द अनुवादित करने वाले विवेचक की विद्वत्ता पर बहुत कुछ निर्भर करता है। विश्व की अनेक भाषाओं में उत्तम कोटि के अनुवादों का प्रायः अभाव ही देखा गया है / इस दृष्टि से कानड़ी काव्य अपराजितेश्वर शतक का श्री श्री 108 आचार्यप्रवर देशभूषण जी महाराज कृत हिन्दी अनुवाद निश्चय ही अद्भुत, अनूठा और गुरु गम्भीर कार्य है। हिन्दी भाषा और साहित्य के फलक को विस्तार देने की दृष्टि से ऐसे मौलिक अनुवाद आज तक विरल ही देखने में आये हैं। कानड़ी काव्य अपराजितेश्वर शतक का विवेच्य हिन्दी अनुवाद जहां एक ओर अनुवादकला की अपने आप में कसौटी है वहां मौलिक रसास्वादन की दृष्टि से एक आदर्श अनुवाद कृति है। इस अनुवाद में सरसता, स्वाभाविकता, मृदुलता, प्रभावोत्पादकता और मनोज्ञता आदि अनेकानेक गुणों का प्रादुर्भाव देखकर विद्वान् अनुवादक श्री 108 आचार्य देशभूषण जी महाराज की ऋषि-तुल्य साधना और तपस्या का स्मरण हो जाता है। निश्चय ही इस अनुवाद की अनूठी संरचना के मूल में आचार्य श्री की साहित्य, दर्शन और धर्म के प्रति गहरी आस्था और तपश्चर्या का बहुत बड़ा हाथ है / प्रस्तुत अनुवाद एक सिद्ध पुरुष की अमृतवाणी का प्रताप है जिसमें एक ओर परिव्राजक धर्म के अनन्य अनुष्ठान कर्ता की धामिक चेतना की दिव्य ज्योति का अक्षय स्रोत प्रवाहित है तो दूसरी ओर महान् आत्मचेता की निर्मल, निश्छल और दिव्य आत्मा की महान् छवि का रूपांकन भी अपनी समस्त संवेदनाओं के साथ उपलब्ध है। बहुभाषाभाषी, शास्त्रज्ञ, विद्वान् और जैन धर्म की अपराजेय प्रतिभा से समृद्ध श्री 108 आचार्य देशभूषण जी महाराज ने कानड़ी काव्य अपराजितेश्वर शतक का हिन्दी अनुवाद दो खण्डों में प्रस्तुत करके जहां असंख्य जैन धर्मानुयायियों का कल्याण किया है वहां बावन करोड़ हिन्दी भाषाभाषियों के प्रति भी उपकार किया है। अन्यथा हिन्दी का बहुत बड़ा पाठक वर्ग इस कानड़ी कृति के रसास्वादन से वंचित ही रह जाता। विवेच्य कृति के कुल 127 पद्यों वाले मूल काव्य ग्रन्थ के प्रस्तुत अनुवाद को विद्वान् अनुवादक ने अनेकानेक ग्रन्थों के पुष्ट प्रमाणों के उद्धरणों द्वारा समृद्ध बनाकर अनुवाद में मौलिकता का अद्भुत समावेश किया है। आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज के दिव्य प्रवचनों के अनुरूप ही उनके साधनाशील मौलिक ग्रन्थों और अनुवादों में भी आत्मशोधन की अद्भुत क्षमता और सामर्थ्य विद्यमान है। ऐसे महापुरुषों एवं विद्वान् संतों के प्रत्यक्ष दर्शन और कृति समागम से भटकती आत्माओं को निजात्म रस में अवगाहन करने का सौभाग्य निरन्तर सुलभ होता रहे, प्रत्येक मानवतावादी ऐसी कामना तो कर ही सकता है। PORAना 17IANDIA YENG EMOVONOVOVOMOVIMAMSKIMONOVOMONOVOMOVSMENIONOVO 83 आचार्यरल श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ