Book Title: Antkrut Dasha Sutra
Author(s): P M Choradiya
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृत् दशासूत्र श्री पी. एम. चोरड़िया अन्तकृद्दशासूत्र आठवाँ अंग-आगम है। इसके आठ वर्गों में ९० साधकों का वर्णन हैं, जो उसी भाव में साधना कर सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त हुए हैं। इस आगम से कर्मनिर्जरा हेतु पुरुषार्थ की गहती प्रेरणा मिलती है। मुक्ति प्राप्ति में जाति, वर्ग, वर्ग आदि की भिन्नता बाधक नहीं बनती है। वरिष्ट स्वाध्यायी श्री चोरड़िया जी ने अतीव संक्षेप में अन्तकृद्दश सूत्र का परिचय दिया है। - सम्पादक अन्तकृत्दशा सूत्र की परिगणना एकादश अंग सूत्रों में की जाती है । ग्यारह अंगों में यह आठवां अंग माना गया है। यह एक चरित्रप्रधान आगम है, जिसमें तीर्थकर अरिष्टनेमि एवं महावीर युग के ९० साधकों का वर्णन किया गया है। प्राकृत में इसका नाम 'अन्तगडदसा सुत' और संस्कृत में इसका नाम 'अन्तकृत्दशा सूत्र' है । पर्युषण पर्व में अन्तगड सूत्र का वाचन यह एक संयोग ही है कि पर्वाधिराज पर्युषण के आठ दिन होते हैं। एवं अन्तकृत्दशा सूत्र भी ग्यारह अंगों में आठवां अंग है। इस सूत्र के आठ ही वर्ग हैं। आठ कर्मों का सम्पूर्ण रूप से क्षय करने वाले महान् साधकों के उदान जीवन का इसमें वर्णन है । पर्वाधिराज पर्युषण के ८ दिनों में एक ऐसे सूत्र का वाचन होना चाहिये जो आठ ही दिनों में पूरा हो सके और आत्मसाधना की प्रेरणा देने के लिए भी पर्याप्त हो । यह सूत्र लघु भी है तथा इसमें. ऐसे साधकों की जीवन गाथाएँ हैं, जो तप-संयम से कर्म क्षय कर मोक्षगामी बन चुके हैं। पर्युषण पर्व अष्टगुणों की प्राप्ति एवं अष्ट कर्मों की क्षीणता के लिए है । अत: इन पावन दिवसों में इसी सूत्र का वाचन पूर्णत: उपयुक्त है। इस सूत्र में छोटे बड़े सभी साधकों की जीवन गाथाओं का वर्णन है। इनमें राजा, रानियाँ, राजकुमार श्रेष्ठी पुत्रों, गाथापतियों, मालाकार, बाल, युवक, प्रौढ़ एवं अल्पवय वालों के संयम, तप, श्रुत- अध्ययन, ध्यान, आत्म- दमन, क्षमा भाव आदि आदर्श गुणों से युक्त वैराग्यमय जीवन का वर्णन इस सूत्र में आया है। इसके अलावा सुदर्शन श्रावक, कृष्ण वासुदेव एवं देवकी महारानी के जीवन की एक झांकी भी दर्शाई गई है। कथाओं एवं जीवन चरित्रों के माध्यम से इस सूत्र में अनेक शिक्षाप्रद जीवन - प्रेरक तत्त्वों का मार्मिक रूप से कथन किया गया है। सबसे मुख्य बात यह है कि इस सूत्र में जिन ९० साधकों का वर्णन किया गया हैं, उन्होंने उसी भव में अपनी कठोर साधना कर मोक्ष प्राप्त किया है। पर्युषण के ८ दिनों में इन महान् आत्माओं के चरित्र का वाचन, श्रवण, मनन करने से शांति, विरति आदि आठ गुणों की प्रेरणा मिलती है। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | 196 ...जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषालक आठ वर्गों का संक्षिप्त परिचय प्रथम वर्ग- अन्तग्डदशा सूत्र के प्रथम वर्ग में दस राजकुमार का वर्णन है। इनके नाम हैं - १ गतमकुमार २. समृद्रकुमार ३. सागर कुमार ४. गम्भीर कुमार ५. स्तिमित कुमार ६. अचल कुमार ७. कम्पिल कुमार ८. अक्षोभ कुमार ९. प्रसेनजित कुमार १०. विष्णु कुमार। इन सभी राजकुमारों ने दीक्षा ग्रहण कर बारह वर्ष की टीक्षा पर्याय का पालन कर शत्रुजय पर्वत पर मासिक संलेखना करके मुक्ति प्राप्त की। द्वारिका नगरी का भी वर्णन इस वर्ग में आया है। दूसरा वर्ग-इस वर्ग में उन आठ राजन मारों का वर्णन है जे अन्धकवृष्णि राजा एवं धारिणी रानी के पुत्र थे। उन्होंने भो दोक्षा अंगीकार कर सोलह वर्ष नक टीक्षा पर्याय का पालन किया और अन्तिम समय शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। तीसरा वर्ग-इस वर्ग के १३ अध्ययन हैं। प्रश्नम ६ अध्ययनों में अणीयसेन कुमार, अनन्तसेन, अजितसेन , अनितरिषु, देवसेन और शत्रुसेन कुमारों का वर्णन है। ये छहों कुमार नाग गाथापति के पुत्र एवं सुलसा के अंगजात थे। बीस वर्ष इनका दीक्षा पर्याय रहा तथा चौदह पूर्वो का अध्ययन कर अन्तिम समय में ये एक मास की संलेखना कर मोक्षगामी हुए। सातवां अध्ययन सारण कुमार का है। आउवें अध्ययन में गजसुकमाल अनगार का वर्णन है। कृष्ण वासुदेव, देवकी महारानी, उनके छ: पुत्र मुनियों का ३ संघाड़ों में एक दिन आहार के लिए राजमहल में आना, देवकी की पुत्र अभिलाषा एवं श्रीकृष्ण की मातृ भक्ति का चित्रण भी इसमें आया है। नवां अध्ययन सुमुख कुमार का है, जिन्होंने भगवान अरिष्टनेमी के पास दीक्षा अंगीकार कर २० वर्ष के चारित्रपर्याय का पालन किया एवं अन्तिम समय संथारा धारण कर मोक्षगामी हुए।१० से १३ इन ४ अध्ययनों में दुर्मुख, कूपदारक, टारक एवं अनादृष्टि का वर्णन आया है। चतुर्थ वर्ग- इस वर्ग के १० अध्ययन हैं। इसमें जालि, मयालि आदि १० राजकुमारों का वर्णन है। ये सभी राजश्री वैभव में पले होते हुए भी अरिष्टनेमि के उपदेश सुनकर दीक्षित हो गए एवं कठोर साधना कर मोक्षगामी हुए। पांचवा वर्ग- इस वर्ग के १० अयन हैं। इनमें पहले ८ अध्ययन पद्मावती आदि ८ रानियों के हैं। ये सभी कृष्ण वासुदेव की पटरानियां थी। सुरा, अग्नि और द्वीपायन ऋषि के कोप के कारण भविष्य में द्वारिका नगरी के विनाश का कारण जानकर एवं भगवान अरिष्टनेमी की धर्मसभा में वैराग्य गय उपदेश सुनकर वे टीक्षित हो गई तथा कठार धर्म साधना कर सिद्ध बुद्ध, मुक्त हो गई। ९वें एवं १०वें अध्ययनों में श्री कृष्ण वासुदेव की पुत्रवधुएँ मूलश्री' एवं 'मूलदत्ता' का वर्णन है। ये भी भगवान के उपदेशों को सुनकर संसार की Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृतदशासूत्र असारता को जानते हुए दीक्षित हुई और कठोर धर्मसाधना करके मोक्षगामी हो गई। षष्ठवर्ग- इस वर्ग के १६ अध्ययन हैं। इस वर्ग से भगवान महावीर युग के साधकों का वर्णन प्रारम्भ होता है। प्रथम, द्वितीय, ४ से १४ अध्ययनों में कुल १३ गाथागतियों का वर्णन है। तीसरे अध्ययन में अर्जुनमाली अनगार का विस्तार से वर्णन आया है। सुदर्शन श्रावक को भगवान महावीर के दर्शनों की उत्कट भावना एवं अर्जुनमाली अनगार द्वारा मात्र ६ माह की अल्पावधि में कटोर तप --साधना, समता एवं क्षमा के द्वारा भयंकर पापों को क्षय करने का वर्णन भी आया है। १५वाँ अध्ययन बालक अतिमुक्त कुमार का है, जो यह सिद्ध करता है कि लघु वय में भी संयम अंगीकार किया जा सकता है। १६वाँ अध्ययन राजा अलक्ष का है जिन्होंने दीक्षा अंगीकार कर ११ अंगों का अध्ययन किया, अनेक वर्षों तक चारित्र पर्याय का पालन कर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। सातवाँ वर्ग- इसके १३ अध्ययन हैं। इनमें नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा आदि श्रेणिक राजा की १३ रानियों का वर्णन है। ये सभी भगवान महावीर की धर्मसभा में उपस्थित हुई। प्रभु के उपदेशों से प्रभावित होकर प्रव्रज्या ग्रहण की तथा कठोर धर्मसाधना कर सिद्ध गति को प्राप्त हुई। आठवां वर्ग इस वर्ग के १० अध्ययनों में जिन आत्माओं का वर्णन है वे सभी राजा श्रेणिक की रानियाँ तथा कोणिक राजा को छोटी माताएँ थीं। भगवान महावीर के वैराग्यमय धर्मोपदेश को सुनकर वे सब चन्दनबाला आर्या के पास टीक्षित हुई। इन सब महारानियों ने कठोर तप साधना द्वारा अपने कर्मों का क्षय किया। इन महारानियों के नाम एवं उनके द्वारा किये गये तप इस प्रकार है०१. काली- रत्नावली ०२. सुकाली- कनकावली ०३. महाकालो-- लघुसिंह निष्क्रीड़ित ०४. कृष्णा --- महासिंह निष्क्रीड़ित ०५. सुकना--. सप्त सप्तमिका, अष्ट अष्टमिका, नव नवमिका. दस-दसमिका भिक्षु पडिमा ०६. महाकृष्ठः- लधुसर्वतो भद्र ०५. वीरकृष्णा - महासर्वतो भद्र ०८. रामकृष्णः-- भद्रोत्तर ०९. पितृसेनकृष्णा--- मुक्तावली १७. महासेनकृष्णा- आयंबिल वर्द्धमान तप उपर्यक्त महारानियों ने संयम अंगीकार कर स्वयं को नप रूपी अग्नि में झोंक दिया। उनकी तपस्या का वर्णन सुनकर हमें भी तप करने की विशेष Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क प्रेरणा मिलती है। शिक्षाएँ इस सूत्र से हमें निम्न शिक्षाएँ मिलती हैं 01. 'संयमः खलु जीवनम्' संयम ही जीवन है। 02. धर्म कार्य में तनिक भी प्रमाद न करें। वय, कुल, जाति आदि संयम ग्रहण करने में बाधक नहीं बनते। 03. सुदर्शन श्रावक की तरह हमें भी देव , गुरु एवं धर्म पर अपार श्रद्धा होनी चाहिए। 04. मारणान्तिक कष्ट व परीषह आने पर भी गजसुकुमार की तरह समभाव में रहना चाहिए। 05. अर्जुनमाली अनगार की तरह समभाव से संयम के परीषह एवं कष्टों को सहन कर कर्मों की निर्जरा करनी चाहिए। 06. कृष्णवासुदेव की तरह धर्म दलाली करनी चाहिए। 07. काली, सुकाली आदि आर्याओं की तरह कठोर तप-साधना करनी चाहिए। इस प्रकार अन्तकृत्दशा सूत्र में अष्ट कर्म-शत्रुओं से संघर्ष करने की अद्भुत प्रेरणा भरी हुई है। इस सूत्र के प्रवक्ता भगवान महावीर हैं। बाद में सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जम्बू स्वामी को इस अंग सूत्र का अर्थ एवं रहस्य बताया। पर्वाधिराज पर्युषण के मंगलमय दिनों में हम सब इस आगम की वाणी का स्वाध्याय कर अपने कषायों का उपशमन करें, मन को सरल एवं क्षमाशील बनाएं तथा तप-त्याग की भावना में वृद्धि करें, यही इस सूत्र का प्रेरणादायी सार है। -89, Audiappa Naicken Street, First Floor, Sowcarpet, Chennai-79