Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आवश्यक सूत्र ॥श्री आगम-गुण-मञ्जूषा ।। ॥श्री. मागम-गु-भं०४५।।। Il Sri Agama Guna Manjusa il (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ.स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ११ अंगसूत्र ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय १) श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है । द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। ६) २) श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान मे विद्यमान है । १८० क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का मुख्य विषय रहा है। ३) श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। ४) श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी संग्रहग्रंथ है। एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण मे उपलब्ध है। ५ ) श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ( भगवती सूत्र ) :- यह सबसे बड़ा सूत्र है, इसमे ४२ शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ में प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान किया है । प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुई है। चारो अनुयोगो कि बाते अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। ७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। ८) श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यतः धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री शत्रुंजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हुए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती है । ९) श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। १०) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र मे भी है । कुल मिला के इसके २०० श्लोक है। ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है । १२ उपांग सूत्र १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है। इस मे चंपानगरी का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। २) श्री राजप्रनीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है । २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। श्री आगमगुणमंजूषा GY Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %。 %%%%%%85 २) त्रास %%%%%%%%%%% doOKHAR153835555555555555555555345555555555555555555555555ODXOS KAROKKAXXE E EEEE994%953589 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 985555359999999455889 श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है । जीव और अजीव के दश प्रकीर्णक सूत्र बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव ने कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताइ है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पनवणासूत्र के ही पदार्थ है । यह के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है। आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है । इसमे ३६ पदो का वर्णन श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। और मृत्युसुधार ५) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार (१) चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है। २२०० श्लोक है। श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन मे है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है। ६ आरे के स्वरूप है। इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। बताया है। ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। गये उसका वर्णन है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्यकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने । १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है । चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका में समजाया गया है। देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित ई श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे अन्य बातों का वर्णन है। पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली पञ्चक भी कहते है। १०A) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। %%%%% %%% %%%% %% %%%% %%%% %%%%% १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। (GainEducation-international 2010-03 VOON N54555554454549 श्री आगमगुणमजूषा E f54 www.dainelibrary.00) $$# KOR Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKO ALLA RURU RAREO ai i ferox (9) (3) KC国乐国为乐明明明明明明明明乐明明明明明F%%%%明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明军5B Introduction 45 Agamas, a short sketch I Eleven Angas : Acäränga-sutra : It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 ślokas. Sayagadanga-sutra : It is also known as Sütra-Kytänga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 ślokas. Thápānga-sūtra : It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 ślokas. Samavāyanga-sutra : This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 Slokas. Vyakhya-prajñapti-sutra : It is also known as Bhagavati-sutra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 ślokas. Jäätādharma-Kathanga-sutra : It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 ślokas. Upasaka-dasānga-sutra : It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahavira, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. It is of the size of around 800 Slokas. (8) Antagada-dasänga-sutra : It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vrsni, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akşobhakumara, 6 sons of Devaki, Gajasukumāra, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Krsna, 8 queens like Rukmini. It is available of the size of 800 Slokas. Anuttarovavayi-daśãnga-sútra: It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimana, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumāra and other 9 princes of king Srenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Anagara, etc. It is of the size of 200 ślokas. (10) Prasna-vyakarana-sūtra : It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahāvira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 ślokas. (11) Vipaka-sütrānga-sūtra : It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 ślokas. 图纸娱乐明明明明明明明明明明垢玩垢圳明明听听听听听听听听听听听垢乐明明明明明明明明明听听听听听听听听 (5) (6) (1) II Twelve Upangas Uvaväyi-sütra : It is a subservient text to the Acāranga-sutra. It deals with the description of Campā city, 12 types of austerity, procession-arrival of Koñika's marriage, 700 disciples of the monk Ambada. It is of the size of 1000 ślokas. Rayapaseni-sutra : It is a subservient text to Süyagađanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 ślokas. (7) (2) www.Lainelibrary XXXX XXXXL PITJUGET TOYOX Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKOK YU BALLU BURU VERLO PLA Xoxo (1) (2) IV Six Cheda-sūtras (1) Vyavahāra-sūtra, (2) Nisītha-Sutra, (3) Mahānisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-satra, (5) Daśāśruta-skandha-Sotra and (6) Bhatkalpa-sutra. These Chedasätras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. VI Two Colikas Nandi-sutra : It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirtharkaras and 11 Ganadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Slokas. Anuyogadvāra-sutra : Though it comes last in the serial order of the 45 Ágamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. * It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 ślokas. ** ********* V Four Molas atras (1) Dajavaikalika-sutra : It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Colikas called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthūlabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahavideha region and received four Calikas. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra : It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. . (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Piryaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. Avašyaka-sútra: It is the most useful Agama for all the four groups of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are: (1) Samayika, (2) Caturvimšatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kāyotsarga and (6) Paccakhana. 明明明明明明明明明與乐乐乐为历历明明明明明明明明兵兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐乐玩玩乐乐明步兵兵玩乐乐乐恩 * O YOK LOXOV L FT STATUTEUT- O 20:10 03 www.ainelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O | b %%%%% %%%%%%%%%%%%%%%%%% 1fited multu历 %%%%%%%% %%%%%% %%%2 0 આગમ - ૪૦ ચરણાનુયોગમય આવશ્યક સૂત્ર – ૪૦ I પર | ! o શ્લોકપ્રમાણ | અધ્યયને ---- મૂલપાઠ - - - - ગદ્યસૂત્ર ---- પદ્યસૂત્ર ----- ! 2 | ! e | 兵兵兵军军乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明C (૧) અધ્યયન : સામાયિક આમાં સામાયિક-વ્રત ગ્રહણ કરવાનો પાઠ છે. (૨) અધ્યયન: ચતુર્વિશતિસ્તવ આમાં ચતુર્વિશતિ (૨૪) સ્તવનો પાઠ છે. (૩) અધ્યયન: વંદના આમાં નમસ્કાર મંત્ર, ગુરુવંદના, દ્વાદશાવર્ત (૧૨ આવર્તન) ગુરુવંદના તેમજ અરિહંત વંદનાના પાઠ છે. (૪) અધ્યયનઃ પ્રતિક્રમણ આમાં સંક્ષિપ્ત પ્રતિક્રમણનો પાઠ આપીને શયન, ભિક્ષાચર્યા, કાળપ્રતિલેખના, અસંયમ, દ્વિવિધ-બંધન, ત્રિવિધ દંડ વગેરેથી ૩૩ આશાતના સંબંધી ૪૬ અતિચારોના પાઠ તેમજ સર્વ અતિચારોના પાઠો અને ધર્મારાધનની પ્રતિજ્ઞાનો પાઠ છે. (૫) અધ્યયન કાયોત્સર્ગ આમાં કાયોત્સર્ગની પ્રતિજ્ઞા અને કાયોત્સર્ગના આગારોના પાઠ છે. (૬) અધ્યયનઃ પ્રત્યાખ્યાન આમાંનમસ્કાર સહિત (નવકારશી) પ્રત્યાખ્યાનનો પાઠ આપીને પૌરુષી, પૂર્વાર્ધ, એકાશન વગેરે નવ પ્રત્યાખ્યાનોના પાઠ આપીને પ્રત્યાખ્યાનના પારણાનો પાઠ છે. 乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听乐玩玩乐乐听听玩玩乐乐乐乐步兵纸兵纸纸明明明明明明明明乐乐 શ્રમણોપાસક (શ્રાવક)ના આવશ્યક સૂત્ર (૧) આવયક: સામાયિક આમાં સામાયિક-વ્રત સ્વીકારનો પાઠ છે. (૨) આવશ્યક ચતુર્વિશતિ-સ્તવ # FFFMMMMMMMMM* શ્રી મનગમગુમંનુષI - ૬૨ FÉÉ ¥ÉÉ છે Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ આOf FEFFક સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ | WEFFક્કK FKFMFOJ હૈ (૩) આવયક: વંદના આ બંને આવશ્યકો શ્રમણના આવશ્યકોના સમાન છે. આવશયક પ્રતિક્રમણ આમાં જ્ઞાનાતિચારદર્શનાતિચાર અને ૧૨ વ્રતાતિચારોના પાઠ તેમજ સંલેખના, ૧૮ પાપસ્થાનકો અને ક્ષમાપનાના પાઠ છે. આવશયક: કાયોત્સર્ગ આ આવશ્યકનો પાઠ શ્રમણના આવશ્યકના સમાન છે. (૬) આવશ્યક પ્રત્યાખ્યાન આમાં સમુચ્ચય-પ્રત્યાખ્યાનના પાઠ છે અને આ સાથે આ આવશ્યક સૂત્રની સમાપ્તિ થાય છે. FC明明明明明明明明明明明明明明明明明编织明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明OM 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明听听听听见 જOF T F S M E W Wાગમગુણગંગૂઠા - ૩ Ë E F S SSC Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) आवस्सयं (पढमं मूलसुतं १, २, ३, ४ अज्झयणं [3] सिरि सहदेव सामिस्स णमो । सिरि गोडी - जिराउला - सव्वोदयपासणाहाणं णमो । नमोऽत्थुणं समणस्स भगबओ महइ महावीर कद्रमाण सामिस्स । सिरि गोयम-सोहम्माइ सव्व गणहराणं णमो । सिरि सुगुरु देवाणं णमो आवस्सयं पढमं मूलसुत्तं पढमं अज्झयण- सामाइ १) नमो अरहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं एसो पंच नमुक्कारो सब्व पावप्पण्यासाणो मंगलाणं च सब्वोसि पढमां होइ (हवइ) मंगलं (अ०४) आगममंजुषा पृ. १२०५ ।१-१ । २) करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं कोसिरामि ॥ १॥ ★★★ पढमं अज्झयणं समत्तं बीयं अज्झयणं- चउवीसत्थओ ★★★ ३) लोगस्स उज्जोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे. अरिहंत कित्तइस्सं चउबीपि केवली ॥१॥ ४) उसभामजियं च वंदे संभवमभिणंदणं च सुमहं च पउमप्पहं सुपासं जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥ ५) सुविहिं च पुष्पदंती सीअल सिज्नंस वासुफुनं च विमलमणतं च जिणं धम्मं संतिं च वंदामि ||३|| ६) कुंथुं अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च वंदामि रिट्ठनेमिः पासं तह बद्धमाणं चा ॥४॥ ७) एवं मए अभिथुआ विहुय रयमला पहीणजरमरणा चउवीसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ ८) कित्तिय वंदिय महिया जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धा आरुम्मा- बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दितु ॥६॥ ९) चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥★★★ बीयं- अज्झयणं समत्तं ★★★ तइयं अज्झयणंवंदणयं ★★★१०) इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, अणुजाणह में मिउग्गहं निसीहि अहोकायं काय-संफासं खमणिज्जो भे किलामो, अप्पकलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो जत्ता भे जवणिज्जं च भे, खासेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाय वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ तस्स खमासमष्णो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । २ ★★★ तइयं अज्झयणं समत्तं ★ ★ ★ चउत्थं अज्झयणं ★★★ पडिक्कमणं नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं एसो पंच नमुक्कारो सव्व पावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होइ (हवइ) मंगलं अ ०८ करेमि भंते सामाइय- सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविणंमणे वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । ३-१ । १२) चत्तारि मंगलं अरहंता मंगलं सिद्धा मंगलं साहू मंगलं केवलिपन्नत्तो धम्मो मंगलं | ३ | १३) चत्तारि लोगुत्तमा अरहंता लोगुत्तमा सिद्धा लोगुत्तमा साहू लोगुत्तमा केवलिपन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो । ४ । १४) चत्तारि सरणं पवज्जामि अरहंते सरणं पवज्जामि सिद्धे सरणं पवज्जामि साहू सरणं पवज्जामि केवलिपन्नत्तं धम्मं सरणं पवज्जामि । ५। सू-१ १५) इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइयारो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्मुत्ता उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचितिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरिते सुए सामाइए तिन्हंगुत्तीणं चउण्हंकसायाणं पंचण्हंमहव्वयाणं छण्हंजीवनिकायाणं सत्तण्हंपिंडेसणाणं अट्ठण्हंपवयणमाऊणं नवण्हंबंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । ६ । सू. २१६ ) इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे पाणक्कमणे बीयक्कमणे हरियक्कमणे ओसा उत्तिंग पणग-दगमट्टी- मक्कडासंताणासंकमणे जे मे जीवा विहाहिया एगिंदिया बेदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचिदिया अभिया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया ठाणाओ ठाणं संकामिया 66666666666 सौन्य : प.पू. साध्वीश्री अक्षयगुशाश्रीक म. सा. नी प्रेरणाथी श्री रामाशिया हैन संघ (१२७) - श्री आगमगुणमंजूषा - १५७१ ( C D E USA A A 9 2 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MORO5555555555555559 ___ (२] 555555555555555FOXOS जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।७। सू.३ १७) इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए निगामसिज्जाए संथारा उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण पसारणाए छप्पइयसंघट्टणाए कूइए कक्कराइए छीए जंभाइए आमोसे ससरक्खामोसे आउलमाउलाएसोअणवत्तियाएइत्थीविप्परिआसियाएदिट्ठिविप्परि आसिआएमणविप्परिआसिआए पाणभोयणविप्परि आसि आएजोमेदेवसिओ अइयारोकओतस्सम्छिमिदुक्कडं ।८||सू-४। १८) पडिक्कमामि गोयरचरिआए भिक्खायरिआए उग्घाडकवाडउग्घाडणाए साणावच्छा-दारसंघट्टणाए मंडी-पाहुडियाए बलि-पाहुडियाए ठवणा-पाहुडियाए संकिए सहसागारे अणेसणाए (पाणे सणाए) पाणभोयणाए बीयभोयणाए हरियभोयणाए पच्छाकम्मियाए पुरेकम्मियाए अदिट्ठहडाए दग-संसट्ठहडाए रय-संसठ्ठहडाए परिसाडणियाए पारिट्ठावणियाए ओासणभिक्खाए जं उग्गमेणं उप्पायणेसणाए अपरिसुद्धं परिग्गहियं परिभुत्तं वाजंन परिठ्ठवियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।९।सू-५/१९) पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए उभओकालं भंडोवगरणस्स अप्पडिलेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।१।।सू-६। २०) पडिक्कमामि एगविहे असंजमे, पडिक्कमामि दोहिं बंधणेहि-रागबंधणेणं दोसबंधणेणं, पडिक्कमामि तिहिं गुत्तीहिंमणगुत्तीए वइगुत्तीए कायगुत्तीए ।११।सू-६। २१) पडिक्कमामि तिहिं सल्लेहि-मायासल्लेणं निआणसल्लेणं मिच्छादसणसल्लेणं, पडिक्क-मामि तिहिं गारवेहि-इड्ढीगारवेणं रसगारवेणं सायागारवेणं, पडिक्कमामि तिहिं विराहणाहि-नाणविराहणाए दंसणविराहणाए चरित्तविराहणाए, पडिक्कमामि चउहिं कसाएहिकोहकसाएणं माणकसाएणं मायाकसाएणं लोभकसाएणं, पडिक्कमामि चउहि सण्णाहिंआहारसण्णाए भयसण्णाए मेहुणसण्णाए परिग्गहसण्णाए, पडिक्कमामि चउहिं विकहाहिइत्थिकहाए भत्तकहाए देसकहाए रायकहाए, पडिक्कमामि चउहिं झाणेहि-अट्टेणं झाणेणं रुद्देणं झाणेणं धम्मेणं झाणेणं सुक्केणं झाणेणं ।१२।।सू-७।२१) पडिक्कमामि पंचहि किरियाहिं काइयाए अहिगरणियाए पाउसियाए पारितावणियाए पाणाइवायकिरियाए।१३।।सू८।२३) पडिक्कमामि पंचहिं कामगुणेहि-सद्देणं रुवेणं गंधेणं रसेणं फासेणं, पडिक्कमामि पंचहिं महव्वएहि-पाणाइवायाओ वेरमणं मुसावायाओ वेरमणं अदिन्नादाणाओ वेरमणं मेहुणाओ वेरमणं परिग्गहाओ वेरमणं, पडिक् कमामि पंचहि समईहिं-इरियासर्मिइए भासासिर्मिइए एसणासमिईए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिईए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठा-वणियासमिईए।१४|सू-९।२४) पडिक्कमामि छहिं जीवनिकाएहिं-पुढविकाएणं आउकाएक तेउकाएणं वाउकाएणं वणस्सइकाएणं तसकाएणं, पडिक्कमामि छहिलेसाहिं किण्हलेसाए नीललेसाए काउलेसाए तेउलेसाए पम्हलेसाए सुक्कलेसाए, पडिक्कमामि सत्तहिं भयट्ठाणणेहिं, अट्ठहिं मयट्ठाणेहिं, नवहिं बंभचेरगुत्तीहिं, दसविहे समणधम्मे, एक्कारसहिं उवासगपडिमाहिं, बारसहिं भिक्खुपडिमाहिं, तेरसहिं किरियाट्ठाणेहिं ।१५। ।सू-१०।२५) चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं|१६||सू-११।२६) एगवीसाएसबलेहिं, बावीसाएपरीसहेहिं, तेवीसाएसुयगडज्झयणेहि, चउवीसाए देवेहि, पंचवीसाएभावणाहिं, छव्वीसाएदसाकप्पववहाराणंउद्देसणकालेहिं, सत्तावीसाएअणगारगुणेहिं अट्ठावीसइविहेआयारपकप्पेहिं, एगुणतीसाएपावसुयपसंगेहिं, तीसाएमोहणीयट्ठाणेहिं एगतीसाए सिद्धाइगुणेहिं, बत्तीसाए जोगसंगेहेहिं ।१७।सू-१२। २७) तेत्तीसाए आसायणाहिं ।१८।सू-१३। २८) अरिहंताणंआसायणाए सिद्धाणंआसायणाए आयरियाणंआसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए साहूणं आसायणाए साहुणीणंआसायणाए सावयाणंआसायणाए सावियाणं आसायणाए देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए इहलोगस्सआसायणाए परलोगस्स - आसायणाए के वलिपन्नत्तस्सधम्मस्सआसायाणाए सदेवमणुयासुरस्सलोगस्सआसायणाए सव्वपाणभूयजीवसत्ताणंआसायणाए कालस्सआसायणाए सुयस्सआसायणाए सुयदेवयाए आसायणाए वायणायरियस्सआसायणाए ।१९।सू-१४। २९) जं वाइद्धं वच्चोमेलियं हीणक्खरं अच्चक्खरं पयहीणं विणयहीणं घोसहीणं जोगहीणं सुट्ठदिन्नं दुटुंपडिच्छियं अकालेकओसज्झाओ कालेनकओसज्झाओ असज्झाइएसज्झाइयं सज्झाइएनसज्झाइयं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।२०।सू-१५।३०) नमो चउव्वीसाए तित्थगराणं Korro 9 555 श्री आगमगुणमंजूषा - १५७२ 1954555555555 555555 TOEIC%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐GO 乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FAQ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) आवस्सयं (पढमं मूलसुत्तं) ४५ अज्झयणं [३] उसभादिमहावीरपुज्जवसाणाणं । २१ । सू-१६ । ३१) इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरं केवलियं पडिपुन्ने नेआउयं संसुद्धं सल्लगत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्वंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतंकरेतिं । २२ सू१७| ३२) तं धम्मं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि फासेमि पालेमि अनुपालेमि तं धम्मं सद्दहंतो पत्तियंतो रोएंतो फासेंतो पालंतो अनुपालंतो तस्स धम्मस्स केवलि पन्नत्तस्स अब्भुट्ठिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए असंजमं परियाणामि संजम उवसंपज्जामि अबंभ परियाणामि बंभ उवसंपज्जामि अकप्पं परियाणामि कप्पं उवसंपज्जामि अन्नाणं परियाणामि नाणं उवसंपज्जामि अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि अबोहिं परियाणामि बोहिं उवसंपज्जामि अमग्गं परियाणामि मग्गं उवसंपज्जामि | २३/सू-१८। ३३) जं संभरामि जं च न संभरामि, जं पडिक्कमामि जं च न पडिक्कमामि, तस्स सव्वस्स देवसियस्स अइयारस्स पडिक्कमामि समणोहं संजय - विरय-पडियह पच्चक्खाय पावकम्मो अनियाणो दिट्ठिसंपन्नो मायामोसविवज्जओ | २४|सू(१९| ३४) अड्ढाइनेसु दीवसमुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमीसु जावंत केई साहू रयहरण-गुच्छपडिग्गहधरा पंचमहव्वयधरा अट्ठारस सहस्स सीलंग धरा अक्खयायारचरित्ता ते सव्वे सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि । २५ सू-२० । ३५) खामेमि सव्वजीवे सव्वे जीवा खमंतु मे मित्ती मे सव्वभूएस वेरं मज्झ न केणई ||८|| - १३६) एवमहं आलोइय निंदिय गरिहिय दुगंछिय सम्मं तिविहेण पडिक्कतो वंदामि जिणे चउवीसं ॥ ९ ॥ - २★★★ चउत्थं अज्झयणं समत्तं पंचमं अज्झयणं- काउस्सग्गो ★★★★ ३७) करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । २६ - १ । ३८) इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं जो मे देवासिओ यारो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचितिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरिते सुए सामाइए तिण्हंगुत्तीणं चउण्हंकसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हंजीवनिकायाणं सत्तण्हंपिंडेसणाणं अट्ठण्हंपवयणमाऊणं नवहंबंभचेरगुत्तीर्ण दसवसमणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहयं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं | २६ सूत्र - १ । ३९) तस्स उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं अन्नत्थ ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं छीएणं जंभाइएणं उड्डएणं वायनिसग्गेणं भमलीए पित्तमुच्छाए सुमिहिं अंगसंचालेहिं सुहूमेहिं खेलसंचालेहिं सुहेमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्न मे काउस्सग्गो जाव अरिहंताणं भगवंताणं नक्कारेण न पांरेमि तावकायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि । २७ सूत्र - २।४०) लोगस्स उज्जोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसंपि केवली ।।२९.१ ।। ४१) उसभमजियं च वंदे संभवमभिनंदणं च सुमहं च पुसप्पहं सुपासं जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥ २९.२।। ४२) सुविहिं च पुप्फदंतं सीअल सिज्नंस वासुपूज्नं च विमलमणंतं च जिणं धम्मं संतिं च वंदामि ॥ २९.३ ॥ ४३) कुंथुं अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च वंदामि रिट्ठनेमिं पासं तह वद्धमार्ण च ।। २९.४ ।। ४४) एवं मए अभिथुआ विहुय रयमला पहीण-जरमरणा चउवीसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु ॥ २९.५ ।। ४५) कित्तिय वंदिय महिया जेए लोगस्स उत्तमा सिद्दा आरु ग्ग-बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दितु ॥ २९.६ ।। ४६) चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंत् ॥ २९.७ ॥ ४७) सव्वलोए अरहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तियाए पूअणवत्तियाए सक्कारवत्तियाए सम्माणवत्तियाए बोहिलाभवत्तियाए निरुवसग्गवत्तियाए स द्धाए मेहाए धिईए धारणाए अणुप्पेहाए वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं (अन्नत्थ०) |२८|सूत्र- ३ | ४८) पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य भरहेरवय विदेहे धम्माइगरे नम॑सामि ||१०|| १४९) तमतिमिरपडल विद्धंसणस्स सुरगणनरिंदमहियस्स सीमाधरस्स वंदे पप्फोडियमोहजालस्स ॥११॥-२५०) जाईजरामरण सोग पणासणस्स, कल्लाणपुक्खल विसालसुहावहस्स कोदेवदानवनरिंदगणच्चिअस्स, धम्मस्ससारमुवलब्भकरे पमायं ॥ १२ ॥ ३ 5 श्री आगमगुणमजूषा १५७३ X Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O FFFFFFF55ff5 (४०) आवस्सयं (पढम मूलसुत्तं) ५,६ अज्झयणं %%%%%%% %%%2 6 %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%所QO ५१) सिद्ध भो पयओ नमो जिणमए नंदी सया संजमे देवं नाग सुवण्णकिन्नरगण स्सब्भूअभावच्चिए लागो जत्थ पइट्टिओ जगमिणं तेलुक्कमच्चासुरं धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ॥१३॥-४५२) सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदणं ० अन्नत्थ ०।२९।।सूत्र-४५३) सिद्धाणं बुद्धणं पारगयाणं परंपर गयाणं लोअग्गमुवगयाणं नमो सया सव्वसिद्धाणं ।।१४।।-१५४) जो देवाण वि देवो जं देवा पंजली नमसंति तं देवदेवमहियं सिरसा वंद महावीरं ॥१५||-२५५) इक्कोवि नमुक्कारो जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स संसार सागराओ तारेइ नरं व नारिं वा ।।१६।।-३५६) उज्जितसेल सिहरे दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स तं धम्मचक्कवट्टी अरिट्ठनेमिं नमसामि ।।१७।-४५७) चत्तारि अट्ठदस दो य वंदिआ जिणवरा चउव्वीसं परमट्ट निट्ठिअट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥१८॥-५ (इति सुयथव - सिद्धथव गाहाओ) ।३०। ५८) इच्छामि खमासमणो पिअं च भे जं मे हट्ठाणं तुट्ठाणं अप्पायं काणं अभग्गजोगाणं सुसीलाणं सुव्वयाणं सायरिय उवज्झायाणं नाणेणं दसणेणं चरित्तेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं बहुसुभेणं भे दिवसो पोसहो पक्खो वइक्कंतो अन्नो य भे कल्लालेणं पज्जुवट्ठिओ सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि - तुब्भेहिं समं ।३२। सूत्र-५।६०) इच्छामि खमासमणो पुव्विं चेइयाई वंदित्ता नमंसित्ता तुब्भण्डं पायमूलं विहरमाणेणं जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्ट सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि - अहमवि वंदावेमि चेइयाई ।३३।सूत्र-६। ६१) इच्छामि समासमणे उवट्ठिओ मि तुब्भण्हं संतिअं अहाकप्पं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा (रयहरणं वा) अक्खरं वा पयं वा गाहं वा सिलोगं वा सिलोगद्धं वा अटुं वा हेउं वा पसिणं वा वागरणं वा तुब्भेहिं सम्मं चिअत्तेण दिन्नं मए अविणएण पडिच्छिअंतस्स मिच्छामिदुक्कडं - आयरियसंतिअं|३४|सूत्र-७।६२) इच्छामि खमासमणो अहमपुव्वाइं कयाइं च मे किइ कम्माइं आयरमंतरे विणयमंतरे सेहिए सेहाविओ संगहिओ उवग्गहिओ सारिओ वारिओ चोइओपडिचोइओचिअत्ता मे पडिचोयणा उव्वट्ठिओहं तुब्भण्हं तवतेयसिरीए इमाओ चाउरंतसंसारकंताराओ साहट्ट नित्थरिस्सामि त्तिकट्ट सिरसामणसा मत्थएण वंदामि - नित्थारगपारगाहोह ।३५] सूत्र-८ पंचमं अज्झयणं समत्तं छ8 अज्झयणं - पच्चक्खाणं ६३) तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्तं उवसंपज्जइ नो से कप्पड़ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिम्गहियाणी वा अरिहंतचेझ्याणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुवि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउंवा अनुप्पयाउं वा नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं से य सम्मत्तेपसत्थसमत्तमोहणियकम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थेपसमसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते सम्मत्तस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयाया जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा-संका कंखा वितिगिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसंथवे।३६॥सूत्र-१।६४) थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से पाणाइवाए दुविहे पन्नत्तं तं जहासंकप्पओ अ आरंभओ अ तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावजीवाए पचच्क्खाइ नो आरंभओ थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा-बंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवुच्छेए ।३७।सूत्र-१।६५) थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहाकन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयाराजाणियव्वा तं जहा-सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे।३८||सूत्र-श६६) थूलगअदत्तादानं समणोवासओ पच्चक्खाइ से अदिन्नावाणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा सचित्तादत्तादाने अचित्तादत्तादाने अ, थूलादत्तादानवेरमणस्स समणोवासएणं मे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा तेनाहडे तक्करपओगे विरुद्धज्जाइंक्कमणे कूडतुलकूडमाणे तप्पडिरुवगववहारे।३९/सूत्र-४।६७) परदारगमणं समणोवासओपच्चक्खाइ सदारसंत्तोसंवा पडिवज्जइ से य परदारगमणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा-ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे सदारसंतोस्स समणोवासएणं झमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा- ' OXO明明明明明明明明明明明明明明乐明明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐纸步步步须听听听听听听听明步QQ恩 %% %%%% UOLO%%%%%%%% KOFFFFFFFFFFFF55 श्री आगभगुणमंजूषा १५७४ 55FFFFFFFF%95555 98555 98GEOR Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOLOR 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐明明明明明明明明明明明乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐观 SO 955555万步步步步步步步步步! (80) आवस्सयं (पढम मूलसुत्त) ६ अन्झयणं 55555xoy अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिगहियागमणे अनंगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे।४०। सूत्र-४।६८) अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छापरिमाणं उवसपंज्जइ से परिग्गहे दुविहे पन्नत्ते तं जहा-सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य, इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा-धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरन्नसुवन्नपमाणा-इक्कमे दुपयचउप्पयपमाणाइक्कमे कुवियपमाणाइक्कमे।४१||सूत्र-६।६९) दिसिवए तिविहे पन्नत्ते-उड्ढदिसिवए अहोदिसिवए तिरियदिसिवए दिसिवयस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा-उड्ढदिसिपमाणाइक्कमे ॥ अहोदिसिपमाणाइक्कमे तिरियदिसिपमाणाइक्कमे खित्तुवुड्ढी सइअंतरद्धा ।४२||सूत्र-६।७०) उवभोगपरिभोगवए दुविहे पन्नत्ते तं जहा-भोअणओ कम्मओ अ, भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा-सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अप्पउलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया दुप्पउलिओसहिभक्खणया ।४३||सूत्र-७। ७१) कम्मओ णं सममोवासएणं इमाइं पन्नरस कम्मादानाइं जाणियव्वाइं तं जहाइंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिज्जे लक्खवाणिज्जे रसवाणिज्जे केसवाणिज्जे विसवाणिज्जे जंतपीलणकम्मे निल्लंछणकम्मे दवग्गिदावणया सरदहतलायसोसणया असईपोसणया।४४||सूत्र-७।७२) अनत्थदंडे चउबिहे पन्नत्तेतं जहा-अवज्झाणारिए पमत्तायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे अनत्थदंडवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा-कंदप्पे कुक्कुइए मोहरिए संजुत्ताहिगरणे उवभोगपरिभोगाइरेगे।४५||सूत्र-८1७३) सामाइयं नामं सावज्जजोगपरिवज्जणं निरवज्जजोगपडिसेवणं च॥४६-१।७४) सिक्खा दुविहा गाहा उववायठिई गई कसाया य बंधंता वेयंता पडिवज्जाइक्कमे पंच ।।१९||-१७५) सामाइअंमि उ कए समणो इव सावओ हवइ जम्हा एएणं कारणेणं बहुसो सामाइयं कुज्जा ।।२०||-२७६) सव्वंति भाणिऊणं विरई खलु जस्स सब्विया नत्थि सो सव्वविरइवाई चुक्कइ देसं च सव्वं च ॥२१||-३ ७७) सामाइयस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा-मणदुप्पणिहाणे वइदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे सामाझ्यस्स सइअकरणया सामाझ्यस्स अणवट्ठियस्स करणया ।४६।।सूत्र-९।७८) दिसिव्वयगहियस्स दिसापरिमाणस्स पइदिनं परिमाणकरणं देवावगासियं देवावगासियस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा-आणवणप्पओगे पेसवणप्पओगे सद्दाणुवाए रुवाणुवाए बहिया पुग्गलपक्खेवे।४७||सूत्र१०।७९) पोसहोववासे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा-आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे, पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहाअप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओ अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ पोसहोववासस्स सम्म अन्नुपालणया ।४८॥सूत्र-१। ८०) अतिहिंसविभागो नाम नायागयाणं कप्पणिज्जाणं अन्नपाणाईणं दव्वापां देसकालसद्धा-सक्कारकमजुअंपराए भत्तीए आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दाणं, अतिहिंसविभागस्स समणोवसएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तंजहा-सच्चित्तनिक्खेवणया सच्चित-पिहणया कालाइक्कमे परवएसे मच्छरिया य।४९॥सूत्र-२२८१) इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाई आवकहियाई चत्तारि सिक्खावयाइं इत्तरियाई एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा-तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अझ्यारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाई च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेस करणजोगा।सूत्र-३। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंचम अइयारा जाणियव्वा तं जहा-इहलोगासंसप्पओगे परलोगासंसप्पओगे जीविया-संसप्पओगे मरणासंसप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे।५०||सूत्र-४।८२) सूरे उग्गए नमुक्कारसहियं पच्चक्खाइ चउब्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं वोसिरइ ५०-१।सूत्र-१। ८३) सूरे उग्गए पोरिसिं पच्चक्खाइ चउब्विहंपि आहार-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ (५०-२) (सूत्र-२) ८४) सूरे उग्गए पुरिमड्ढं पच्चक्खाइं चउव्विहंपि आहार-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणा भोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति आगारेणं वोसिरइ।५०-३।सूत्र-३ ८५) एगासणं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं असणं EMOTIO555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१५७५5555555555555555555555FOTOR SO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听纸明恩 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 55555555555555555555555ODY 2005 勇勇步步步步步步步步步明 事历历万岁万岁万万岁万万岁 पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं आउंटणपसारणेणं गुरु अब्भुट्ठाणेणं पारिठ्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्ति आगारेणं वोसिरइ।५०-४। सूत्र-४ 86) एगट्ठाणं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणा भोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं आउंटण पसारेणं गुरुअब्भुट्ठाणेणं पारिट्ठावणियागारेणं सव्वसमाहि वत्ति आगारेणं वोसिरइ ।५०-५।सूत्र-५ 87) आयंबिलं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारअसणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्ति आगारेणं वोसिरइ / 50-7 / सूत्र-७८८) सूरे उग्गए अभत्तटुं पच्चक्खाइ चउब्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्ति आगारेणं वोसिरइ ।५०-७/सूत्र-७ 89) दिवसचरिमं पच्चक्खाइ चउब्विहंपि आहार-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्तिआगारेणं वोसिरइं (50-8) 90) भवचरिमं पच्चक्खाइ, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्ति-आगारेणं वोसिरइ 150-9 / 91) अभिग्गहं पच्चक्खाइ चउब्विहंपि आहार-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्तिआगारेणं वोसिरइ (50-10) सूत्र-९९२) निव्विगइयं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं - असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसट्टेणं उक्खित्तविवेगेणं पडुच्चमक्खिएणं पारिट्टावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्ति आगारेणं वोसिरइ (50-11) - (50) 40 4 आवस्सयं समत्तं पढमं मूलसुत्तं समत्तंभ UGG乐听听听听听听听听听听听听听货明明明明明明明明明明货车货货货货货货货货蛋蛋听听听听听听听蛋蛋蛋2G ROR95555555555555555555 NOSO1311155555555$$$श्री आगममुणमजूषा-१५७६45555555 5999999 3GHOR