Book Title: Agam 34 Chhed  01 Nishith Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री निशीथ सूत्र ॥श्री आगम-गुण-मञ्जूषा॥ ॥श्री.मागम-गुण-४५।।। 11 Sri Agama Guna Manjusa 11 (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ.स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ११ अंगसूत्र ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय १) श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है । द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। ६) २) श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान मे विद्यमान है । १८० क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का मुख्य विषय रहा है। ३) श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। ४) श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी संग्रहग्रंथ है। एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण मे उपलब्ध है। ५ ) श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ( भगवती सूत्र ) :- यह सबसे बड़ा सूत्र है, इसमे ४२ शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ में प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान किया है । प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुई है। चारो अनुयोगो कि बाते अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। ७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। ८) श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यतः धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री शत्रुंजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हुए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती है । ९) श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। १०) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र मे भी है । कुल मिला के इसके २०० श्लोक है। ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है । १२ उपांग सूत्र १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है। इस मे चंपानगरी का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। २) श्री राजप्रनीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है । २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। श्री आगमगुणमंजूषा GY Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %。 %%%%%%85 २) त्रास %%%%%%%%%%% doOKHAR153835555555555555555555345555555555555555555555555ODXOS KAROKKAXXE E EEEE994%953589 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 985555359999999455889 श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है । जीव और अजीव के दश प्रकीर्णक सूत्र बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव ने कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताइ है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पनवणासूत्र के ही पदार्थ है । यह के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है। आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है । इसमे ३६ पदो का वर्णन श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। और मृत्युसुधार ५) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार (१) चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है। २२०० श्लोक है। श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन मे है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है। ६ आरे के स्वरूप है। इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। बताया है। ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। गये उसका वर्णन है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्यकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने । १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है । चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका में समजाया गया है। देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित ई श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे अन्य बातों का वर्णन है। पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली पञ्चक भी कहते है। १०A) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। %%%%% %%% %%%% %% %%%% %%%% %%%%% १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। (GainEducation-international 2010-03 VOON N54555554454549 श्री आगमगुणमजूषा E f54 www.dainelibrary.00) $$# KOR Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKO ALLA RURU RAREO ai i ferox (9) (3) KC国乐国为乐明明明明明明明明乐明明明明明F%%%%明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明军5B Introduction 45 Agamas, a short sketch I Eleven Angas : Acäränga-sutra : It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 ślokas. Sayagadanga-sutra : It is also known as Sütra-Kytänga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 ślokas. Thápānga-sūtra : It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 ślokas. Samavāyanga-sutra : This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 Slokas. Vyakhya-prajñapti-sutra : It is also known as Bhagavati-sutra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 ślokas. Jäätādharma-Kathanga-sutra : It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 ślokas. Upasaka-dasānga-sutra : It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahavira, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. It is of the size of around 800 Slokas. (8) Antagada-dasänga-sutra : It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vrsni, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akşobhakumara, 6 sons of Devaki, Gajasukumāra, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Krsna, 8 queens like Rukmini. It is available of the size of 800 Slokas. Anuttarovavayi-daśãnga-sútra: It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimana, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumāra and other 9 princes of king Srenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Anagara, etc. It is of the size of 200 ślokas. (10) Prasna-vyakarana-sūtra : It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahāvira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 ślokas. (11) Vipaka-sütrānga-sūtra : It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 ślokas. 图纸娱乐明明明明明明明明明明垢玩垢圳明明听听听听听听听听听听听垢乐明明明明明明明明明听听听听听听听听 (5) (6) (1) II Twelve Upangas Uvaväyi-sütra : It is a subservient text to the Acāranga-sutra. It deals with the description of Campā city, 12 types of austerity, procession-arrival of Koñika's marriage, 700 disciples of the monk Ambada. It is of the size of 1000 ślokas. Rayapaseni-sutra : It is a subservient text to Süyagađanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 ślokas. (7) (2) www.Lainelibrary XXXX XXXXL PITJUGET TOYOX Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKOK YU BALLU BURU VERLO PLA Xoxo (1) (2) IV Six Cheda-sūtras (1) Vyavahāra-sūtra, (2) Nisītha-Sutra, (3) Mahānisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-satra, (5) Daśāśruta-skandha-Sotra and (6) Bhatkalpa-sutra. These Chedasätras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. VI Two Colikas Nandi-sutra : It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirtharkaras and 11 Ganadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Slokas. Anuyogadvāra-sutra : Though it comes last in the serial order of the 45 Ágamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. * It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 ślokas. ** ********* V Four Molas atras (1) Dajavaikalika-sutra : It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Colikas called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthūlabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahavideha region and received four Calikas. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra : It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. . (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Piryaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. Avašyaka-sútra: It is the most useful Agama for all the four groups of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are: (1) Samayika, (2) Caturvimšatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kāyotsarga and (6) Paccakhana. 明明明明明明明明明與乐乐乐为历历明明明明明明明明兵兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐乐玩玩乐乐明步兵兵玩乐乐乐恩 * O YOK LOXOV L FT STATUTEUT- O 20:10 03 www.ainelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 સફ્ળ ગુજરાતી ભાવાર્થ 原 ※行卐 ઉદ્દેશક ઉપલબ્ધ મૂલપાઠ ગદ્યસૂત્ર ઉદ્દેશક ૧ २ 3 * ૫ ૐ 9 : ૯ ૧૦ આગમ ૩૪ ઘેર ગાનુયોગમા નિશીયસૂત્ર – ૩૪ श्री आगमगुणमंजूषा ४६ ગસંખ્યા ૫૮ ૫૯ ૭૯ ૧૧૧ ७७ ७७ ૯૧ ૧૭ ૨૮ ४७ ૬૪૪ २० ---૮૧૨ શ્લોક પ્રમાણ -૧૪૦૫ ઉદ્દેશક ૧૧ ૧૨ ૧૩ ૧૪ ૧૫ ૧૬ ૧૭ ૧૮ ૧૯ २० સૂત્રસંખ્યા ૯૨ ૪૨ ७४ ૪૫ ૧૫૪ ૫૦ ૧૫૧ ૬ ૪ ૩૬ ૫૩ ૭ ૬ ૧ + ૬૪૪ ૧૪૦૫ ઉદ્દેશક : ૧ આમાં બ્રહ્મચર્ય મહાવ્રત ભંગ, સુગંધ ગ્રહણ, અન્ય તીર્થિક કે ગૃહસ્થ પાસે કામ કરાવ્યું જે, કે માર્ગે, પાણીની નળી, ચીકુ, દોરી, મૂતર કે ઊનના દોરા વગેરે બનાવડાવવા તેમજ સોય, કાતર, નખહરણી, કર્ણ-શોધની, પાત્ર, દંડ, વસ્ત્ર, સદોષ આહાર વગેરે વિષેના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. ઉદ્દેશક : ૨ આમાં પહેલા ઉદ્દેશક પ્રમાણેના કેટલાક તદુપરાંત દ્વિતીય મહાવ્રત, તૃતીય મહાવ્રત, એષણા– સમિતિ અને પરિભોગૈષણા વગેરે જુદા-જુદા પ્રાયશ્ચિત્તો છે. FOTOY Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O m ના નામ કેમ ન ક કkkkkkkkkk સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ માકકકકકકકકકકકકકકડી BC%E5BFક્કMESS ઉદ્દેશક : ૩ કાર્ય કરવાં, પાર્થસ્થ વગેરેની વંદના-પ્રશંસા વગેરેના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. આમાં એષણા- સમિતિના પ્રાયશ્ચિત્ત જેવાં કે એક જ ઘરમાં બે વાર ભિક્ષાર્થે જવું, ઉદ્દેશક : ૧૪ આહારની યાચના વગેરે, પગ ધોવા અને શરીરના સંસ્કાર, વશીકરણ મંત્ર બનાવવું, મળ- આમાં પાત્રસંબંધી નિયમોના ભંગ બદલ કરવાના પ્રાયશ્ચિત્તો છે. મળત્યાગ સંબંધી અવિવેક વગેરે બ્રહ્મચર્ય મહાવ્રતના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. ઉદ્દેશક : ૧૫ ઉદ્દેશક : ૪ આમાં ભિક્ષુ - ભિક્ષુણી સાથે અપ્રિય વચન અને વ્યવહાર, અન્ય દ્વારા શરીર આમાં રાજા વગેરેને વશ કરવાથી માંડીને કલહ કરવો, પરસ્પર શરીરસંસ્કાર વગેરે સંસ્કાર, નિષિદ્ધ સ્થાનોમાં મળમૂત્ર ત્યાગ, નિષિદ્ધ વસ્ત્ર ગ્રહણ વગેરે માટે પ્રાયશ્ચિત્ત છે. વિવિધ વિષયો જણાવી અને પરિવાર કલ્પવાળા સાથે આહાર-વ્યવહારના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. ઉદ્દેશક : ૧૬ ઉદ્દેશક : ૫ આમાં નિવાસના નિયમોનો ભંગ કરવો, સચિત્ત શેરડી ભક્ષણ, સંયમી સાથે આમાં અન્યતીર્થિક કે ગૃહસ્થ પાસે કામ કરાવવાં, વસ્ત્ર સીવડાવવાં, રજોહરણના દુર્વ્યવહાર અને અસંયમી સાથે વ્યવહાર, નિષિદ્ધ સ્થાનો પર આહારગ્રહણ કે મળમૂત્ર અનુચિત ઉપયોગ વગેરે ૧૫ જેટલી બાબતોના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. ત્યાગ, જરૂરિયાત કરતાં વધારે સાધનો રાખવા વગેરેના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. ઉદશક : ૬ - ૭ ઉદ્દેશક : ૧૭ આ બંનેમાં મૈથુન સંકલ્પ નિર્ચથી સાથે મર્યાદા બહારના વ્યવહાર માટેના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. આમાં કુતૂહલાર્યકાર્ય કરવાં, નિગ્રંથ કે નિગ્રંથીના પરસ્પર શરીરસંસ્કાર, આહારઉદ્દેશક: ૮ જળ સંબંધી નિયમોનો ભંગ, મનોરંજનાથે ગાયન, વાજિંત્ર વગેરેનું શ્રવણ જેવા દોષોના આમાં એકલવયાથી સ્ત્રી સાથે મર્યાદા બહારનો વ્યવહાર, સ્ત્રી પરિષદમાં કસમયે પ્રાયશ્ચિત્ત છે. ધર્મક્યા વગેરે સાત કર્મોના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. ઉદ્દેાકા: ૧૮ ઉદ્દેશક : ૯ આમાં નૌકા આરોહણ સંબંધી તેમજ વસ્ત્ર સંબંધી નિયમોના ભંગ કરવા બદલ આમાં છ દોષાયતનોમાં આવાગમન, સ્ત્રી અંગદન, માંસાહાર, રાજ્યાશ્રિત પરિવાર પ્રાયશ્ચિત્ત છે. પાસે આહારગ્રહણ વગેરે માટે જુદા-જુદા પ્રાયશ્ચિત્ત બતાવ્યાં છે. ઉદ્દેશક : ૧૯ ઉદ્દેશક : ૧૦ આમાં ખરીદલી પ્રાસુક વસ્તુગ્રહણ, અધિક આહાર, ચાર સંધ્યામાં સ્વાધ્યાય, આમાં ગુરુજનો સાથે અવિનય, સદોષ આહાર, દીક્ષાર્થીને મિથ્યા પરામર્શ, ચાર મહોત્સવો તેમજ ચાર પ્રતિપદાઓમાં સ્વાધ્યાય, શ્રુતસ્વાધ્યાય વિષયક નિયમોનો દોષાનુસાર પ્રાયશ્ચિત્ત ન કરવા, વર્ષાવાસ સંબંધી નિયમોનો ભંગ વગેરે માટે પ્રાયશ્ચિત્ત ભંગ વગેરે માટેના પ્રાયશ્ચિત્ત છે, બતાવ્યાં છે. ઉદ્દેશક : ૨૦ ઉદ્દેશક : ૧૧. આમાં નિષ્કપટ-કપટ આલોચના નિમિત્તે કરવાના પ્રાયશ્ચિત્ત બતાવ્યાં છે. આમાં પાત્ર સંબંધી મર્યાદાઓનો ભંગકરવો, ધર્મનિદા, શરીરસંસ્કાર, દિવાભોજન નિંદા, અયોગ્ય વ્યક્તિ પાસે સેવા કરાવવી કે તેવાની સેવા કરવી, બાલ-મરણ વગેરેના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. ઉદ્દેશક: ૧૨ આમાં પ્રાણિવધ કે પ્રાણિમુક્તિ, પ્રત્યાખ્યાન - ભંગ, છ કાયિકની હિંસા. સદોષકાલાસિકમ - ક્ષેત્રાતિક્રમ આહારગ્રહણ, મહાનદી વારંવાર ઓળંગવી વગેરેના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. ઉદ્દેશક : ૧૩ આમાં અયોગ્ય સ્થાનમાં કાયોત્સર્ગ, અન્ય તીર્થિક કે ગૃહસ્થોના વિવિધ અનુચિત %%% %%%%% %%%%%%%% 新TH1H197-9 5 % % % %% % %% % % % % 5 听听听玩玩乐乐乐乐听听听听听听听宝听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听玩乐%%TO 周 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) निसीह छेयसुत्तं उ.१,२ [१] 55555555555555203 HTC與與與與與與與與與玩玩乐乐乐听听听听玩玩乐乐听听听听听听听听玩乐乐乐乐乐乐明明明明明明明明O迅 सिरि उसहदेव सामिस्स णमो। सिरि गोडी - जिराउला - सव्वोदयपासणाहाणं णमो । नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महइ महावीर वद्धमाण सामिस्स । सिरि गोयम - सोहम्माइ सव्व गणहराणं णमो। सिरि सुगुरु - देवाणं णमो । 卐 श्रीनिशीथसूत्रं- भाष्ये पीठिकागाथा: ४८६ प्रक्षिप्ता: १०' जे भिक्खू हत्थकम्मं करेइ करतं वा साइज्जइ "५५१।१। जे भिक्खू अङ्गादाणं कद्वेण वा कलिञ्चेण वा सलागाए वा संचालइ संचालतं सा० ५८६' ।। जे० संबाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा संबाहंतं वा पलिमइंतं वा सा०।३। जे० तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवणीएण वा अन्भंगेज्ज वा मक्खेज वा अब्भंगतं मक्खंतं वा सा०।४।जे कक्केण वालोद्रेण वा पउमचुण्णेण वा ण्हाणेण वा सिणाणेण वा चुण्णेहि वा वण्णेहि वा उव्वट्टेइ वा परिवढेइ वा उव्वद॒तं वा परिवर्दृतं वा सा०।५।जे० सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पघोएज्ज वा उच्छोलतं वा पघोवंतं वा सा०।६। जे० निच्छल्लेइ वा निच्छल्लंतं वा सा०।७। जे० जिग्घइ जिग्छतं वा सा० ५९०' ।८। जे० अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि अणुपवेसेत्ता सुक्कपोग्गले निग्घायइ निग्धायंतं वा सा० ६०३।९। जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं गंधं जिग्घइ जिग्छतं वा सा०६०८।१०। जे भिक्खू पयमग्गं वा संकमं वा अवलंबणं वा '६१९।११। जे० दगवीणिय ६२९।१२। जे० सिक्कगं वा सिक्खगणंतगंवा '६४१' ।१३। जे० सोत्तियं वा रज्जुयं वा चिलिमिणिंवा '६५१।१४। जे० सूईए।१५। पिप्पलगस्स।१६। नहच्छेयणगस्स।१७। कण्णसोहणगस्स उत्तरकरणं अम्नउत्थिएणं वा गारत्थिएण वा कारेइ कारंतं वा सा० '६६५।१८। जे० अण्णट्ठाए सूई ।१९। पिप्पलगं ।२०। नहच्छेयणगं ।२१। कण्णसोहणगं जायइ जायंतं वा सा० '६५८ ।२२।जे भिक्खू अविहीए सूई जाव जायइ जायंतं वा सा० '६६०।२३-२६। जे भिक्खू अप्पणो एगस्स अट्ठाए सूई० जाइत्ता अन्नमन्नस्स अणुप्पदेइ अणुप्पदेंतं वा सा०।२७-३० । जे भिक्खू पडिहारियं सूई जाइत्ता 'वत्थं सिव्विस्सामि' त्ति पायं सिव्वइ सिव्वंतं वा सा०।३१।० पिप्पलगं जाइत्ता 'वत्थं छिदिस्सामि त्ति पायं छिंदइ छिदंतं वा सा० ॥३२० नहच्छेयणगं जाइत्ता नहं छिदिस्सामि' त्ति सल्लुद्धरणं करेइ करंतं वा सा०।३३।० कण्णसोहणगं जाइत्ता 'कण्णमलं नीहरिस्सामि' त्ति दन्तमलं वा नहमलं वा नीहरइ नीहरंतं वा सा० ६६२।३४ जे भिक्खू अविहीए सूई० पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणतं वा सा० ६७२।३५-३८। जे भिक्खू लाउपायं वा दारूपायं वा मट्टियापायं वा अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा परिघट्टावेइ वा संठवेइ वा जमावेइ वा अलमप्पणो करणयाए सुठुमवि नो कप्पइ जायमाणे सरमाणे अन्नमन्नस्स वियरइ वियरत वा सा० ६८६।३९। जे० दण्डयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा परिघट्टावेइ सो चेव मग्गिल्लओ गमओ अणुगंतव्वो जाव (पायं तड्डेति) सा० '७०८' ।४० जे० पायस्स एक्कं तुडियं तड्डेइ तड्डतं वा सा०७१४' १४१० पायस्स परं तिण्हं तुडियाणं तड्डेइ तड्डतं वा सा० '७१९।४। जे० पायं अविहीए बंधइ बंधतं वा सा० '७२६।४३। जे० पायं एगेणं बंधेणं बंधइ बंधतं वा सा० ७३१।४४ाजे० पायं परं तिण्हं बंधाणं बंधइ बंधतं वा सा० ७३६।४५/ जे० अइरेगबंधणं पायं दिवड्ढाओ मासाओ परेण धरेइ धरतं वा सा०७४५' ।४६|जे० वत्थस्स एगं पडियाणियं देइ देंतं वा सा० ७६२१४७। जे० वत्थस्स परं तिण्हं पडियाणियाणं देइ देंतं वा सा०'७६७' १४८ जे० अविहीए वत्थं सिव्वइ सिव्वंतं वा सा० '७७४१४९। जे० वत्थे एगं फालियगण्ठियं करेइ करतं वा सा० '७७७।५० जे० वत्थे परं तिण्हं फालियगण्ठियाणं करेइ करतं वा सा०।५। जे० वत्थे एग फालियं गण्ठेइ गंठतं वा सा०।५। जे० वत्थे परं तिण्हें फालियाणं गंठेइ गंठंतं वा सा०५३। जे० वत्थं अविहीए गंठेइ गंठंतं वा सा०। ७७८१५४। जे० वत्थं अतज्जाएणं गाहेइ गाहंतं वा सा० '७८११५५। जे० अरेगगहियं वत्थं परं दिवड्ढाओ मासाओ धरेइ धरंतं वा सा० ७८७१५६। जे० गिहधूमं अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा परिसाडावेइ परिसाडेतं वा सा० ७९३१५७। जे० पूइकम्मं भुंजइ भुंजतं वा साइज्जइ, तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अणुवग्याइयं ८०४५८ ***पिढमो उद्देसओ समत्तो॥★★★जे भिक्खू दारूदंडगं पायपुंछणगं करेइ करतं वा सा० १८११ जे० गिण्हइ गिण्हतं वा सा०।२।० धरेइ धरतं वा सा०।३।० वियरइ वियरेंत वा सा०1४०० परिभाएइ परिभायंतं वा सा०५/० परिभुश्चइ परि जंतं वा सा० २१।६। जे० परं दिवड्ढाओ मासाओ સૌજન્ય :- પ.પૂ. વિદુષી સાધ્વીશ્રી ચારૂલતાશ્રીજી ની પ્રેરણાથી મુલુન્ડ જે. મૂ. જૈન સંઘ) $听听听听听听听听听听听听乐乐乐明明明明明明明明乐乐乐乐安乐乐玩玩乐乐乐乐乐加乐玩玩乐乐听听听听 555555555$$$5 श्री आगमगुणमंजूषा - १३४८55555$$$$$$$$$$$$$ $ $$ONOR Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AC%%% %%%牙牙耳目 。 (३४) निसीह छेयसुत्तं उ. २,३ [२] CB明明明明听听听听听听听听听听听 HTC国明明明明明明明明明明明兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐历历明明乐乐乐兵兵兵玩乐明明明明明明明明明明明明明GO धरेइ धरतं वा सा० २८७ जे० विसुयावेइ विसुयावेंतं वा सा० '३६।८। जे भिक्खू अचित्तपइट्ठियं गंधं जिग्घइ जिग्घंतं वा सा० '३८।९। जे० पयमग्गं वा संकम वा अवलंबणं वा ।१०। जे० दगवीणियं ।११। सिक्कगं वा सिक्कगणंतगं वा ।१२। सोत्तियं वा रज्जुयं वा (चिलिमिणिं वा) करेइ करतं वा सा०।१३। जे० सूईए।१४। पिप्पलगस्स ।१५। नहच्छेयणगस्स ।१६। कण्णसोहणगस्स उत्तरकरणं सयमेव करेइ करेंतं वा सा०५६।१७। जे भिक्खू लहुस्सगं फरूसं वयइ वयंत वा सा० ७९।१८। जे० मुसं वयइ वयतं वा सा० ९०।१९। जे० अदत्तं आइयइ आइयंतं वा सा० ९९।२०। जे भिक्खू लहुस्सएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा पायाणि वा कण्णाणि वा अच्छीणि वा दन्ताणि वा नहाणि वा मुहं वा उच्छोलेज वा पच्छोलेज वा उच्छोलतं वा पच्छोलंतं वा सा० ११७।२१। जे० कसिणाइं चम्माइं धरेइ धरेत वा सा० १५२।२२।० कसिणाई वत्थाई १७७।२३।० अभिन्नाइं वत्थाइं।२४।० लाउयपायं वा दारूपायं वा मट्टियापार्य वा सयमेव परिघट्टइ वा संठवेइ वा जवेइ वा परिघट्टेतं वा जाव जवेंतं वा सा० १८०।२५/० दंडगं वा लट्ठियं वा अवलेहणं वा वेणुसूइयं वा ।२६। जे० नियगगवेसियं पडिग्गहगं धरेइ धरेतं वा सा० १९४।२७। जे० परगवेसियं ।२८१० वरगवेसियं ।२९।० बलगवेसियं २०४१३०० लवगवेसियं २१०।३१। जे भिक्खू नितियं अग्गपिंडं भुंजइ भुंजतं वा सा०२१९।३२।० पिंडं ।३३।० अवड्ढं ।३४० भागं ।३५/० उवड्ढभागं ।३६/० वासं वसइ वसंतं वा सा० २३६।३७। जे भिक्खू पुरेसंथवं वा पच्छासंथवं वा करेइ करंतं वा सा० २६५||३८। जे० समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे पुरेसंथुझ्याणि वा पच्छासंथुझ्याणि वा कुलाई पुव्वामेव पच्छा वा भिक्खायरियाए अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा० १९१३९/ जे भिक्खू अन्नउत्थिएण वा गारित्थएण वा परिहारिओ वा अपरिहारिएण सद्धिं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविसइ वा निक्खमइ वा अणुपविसंतं वा निक्खमंतं वा सा० '३०६' १४० जे० बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा निक्खमइ वा पविसइ वा निक्खमंतं वा पविसंतं वा सा० ३१४'।४१। जे० गामाणुगामं दूइज्जइ दूइज्जतं वा सा० ३२२।४२। जे० भिक्खू अन्नयरं भोयणजायं पडिग्गाहेत्ता सुन्भिं सुन्भिं भुज्जइ० दुब्भिं दुन्भिं परिट्ठवेइ परिट्ठवंतं वा सा०।४३। जे० अन्नयरं पाणगजायं पडिग्गाहेत्ता पुप्फगं पुप्फगं आइयइ० कसायं कसायं परिट्ठवइ परि० सा० '३३३'।४४॥जे० मणुन्नं भोयणजायं पडिग्गाहेत्ता बहुपरियावन्नं सिया अदूरे तत्थ साहम्मिया संभोइया समणुन्ना अपरिहारिया संता परिवसन्ति ते अणापुच्छित्ता अनिमंतिय परिट्ठवइ परिट्ठवंतं वा सा० '३४८।४५/ जे० सागारियपिंडं गिण्हइ गिण्हतं वा सा०1४६। जे० भुंजइ भुजंतं वा सा० ४१५'१४७ जे० सागारियं कुलं अजाणिय अपुच्छिय अगवेसिय पुव्वामेव पिंडवायपडियाए अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा० '४२०' 1४८। जे० सागारियनिस्साए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासिय जायइ जायंतं वा सा० '४२७'।४९। जे० उडुबद्धियं वा सेज्जासंथारगं परं पज्जोसवणाओ उवाइणावेइ उवायणावेंतं वा सा० '४५७' ।५० जे० वासावासियं सेज्जासंथारगं परं दसरायकप्पाओ० '४९४' ५११० उडुबद्धियं वा वासावासियं वा सेज्जासंथारगं उवरिसिज्जमाणं पेहाए न ओसारेइन ओसारंतं वा सा० ५००।५२जे० पाडिहारियं सेज्जासंथारगं दोच्चंपि अणुन्नवेत्ता बाहिं नीणेइ नीणतं वा सा०५३। जे० सागारियसंतियं ।५४ जे० पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा '५१३।५५/जे० पाडिहारियं सेज्जासंथारगं आयाए अपडिहटु संपव्वइ संपव्वयंतं वा सा०५२३१५६। जे० सागारियसंतियं सेज्जासंथारगं आयाए अविगरणं कटु अणप्पिणित्ता संपव्वयइ संपव्वयंतं वा सा० ५२७' ।५७। जे० पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं विप्पणटुं न गवेसइ णगवसंतं वा सा० '६००' १५८ जे० इत्तिरियपि उवहिं न पडिलेहेइ न पडिलेहतं वा सा०, तं सेवमाणे आवजइ मासियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं १५९***|| बिइओ उद्देसओ २॥*** जे भिक्खू आगंतागारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावहेसु वा अन्नउत्थियं वा गारत्थियं वा असणं वा० ओभासइ ओभासंतं वा सा०।१० अन्नउत्थिया वा गारत्थिया वा०२१० अन्नउत्थिणि वा गारत्थिणि वा०।३।० अन्नउत्थिणीओ वागारत्थिणीओ वा०॥ 18| ११' जे० अन्नउत्थियं वा गारत्थियं वा कोऊहलपडियाए पडियागयं समाणं असणं वा० ओभासियं ओभासिय जायइ जायंतं वा सा, एवं एतेणावि चत्तारि गमगा '२०' ५-८। जे० अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा असणं वा० अभिहडं आहटु दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय २ परिवेढिय २ परिजविय २ SonururucturincricuccebNERIEIAAAA m a GREHindi Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐坊乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐SO Ox95555555555555555 (३४) निसीह छेयसुत्तं उ. ३, ४ . [३] 555555555555555xory 2 ओभासिय २ जायइ जायंतं वा सा०, एवं एतेण चेव चत्तारि गमगा २७।९-१२। जे० गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए पविढे पडियाइक्खित्ते समाणे दोच्चं तमेव कुलं अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा० ३३।१३। जे० संखडिपलोयणाए असणं वा० पडिगाहेइ पडिगाहंतं वा सा० ४५'।१४। जे० गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए म अणुपविढे समाणे परं तिघरंतराओ असणं वा० अभिहडं आहटु दिज्जमाणं पडिगाहेइ पडिगाहंतं वा सा० ५३' ।१५। जे भिक्खू अप्पणो पाए आमज्जेज वा पमज्जेज्ज वा आमज्जत वा पमज्जंतं वा सा० "५७' ।१६। जे० संबाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा संबाहंतं वा पलिमदंतं वा सा०।१७।० तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा #नवणीएण वा मक्खेज वा भिलिङ्गेज्ज वा ममक्खंतं वा भिलिंगंतं वा सा०।१८० लोद्धेण वा कक्केण वा उल्लोलेज्न वा उव्वदे॒ज्ज वा उल्लोलंतं वा उव्वद॒तं वा सा० ॐ १९/० सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलतं वा पधोयंतं वा सा०/२०/० फुमेज्ज वा रएज्ज वा फुमंतं रयंतं वा सा० F '६२।२१। जे भिक्खू अप्पणो कायं आमज्जेज वा पमज्जेज वा आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सा०, एतेणं अभिलावेणं सो चेव गमो भाणियव्वो जाव रयंतं वा सा० ६३' ।२२-२७। जे भिक्खू अप्पणो कायस्स वणेवि ते चेव '७२।२८-३३ ।जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अन्नयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदेज वा विच्छिदेज वा अच्छिदंतं वा विच्छिंदंतं वा सा०।३४।० अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा नीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वाणीहरंतं वा विसोहंतं वा सा०३५/० अच्छिं० विच्छिंनीहरित्ता विसोहेत्ता सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा पच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलतं वा पधोवंतं वा सा० ३६/० अच्छिं० पधोइत्ता अन्नयरेणं आलेवणजाएणं आलिपज्ज वा विलिपज्ज वा आलिंपतं वा विलिपंतं वा सा० ।३७० अच्छिं० विलिपित्ता तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवणीएण वा अब्भङ्गेज्न वा मक्खेज वा अन्भगंतं वा मक्खंतं वा सा०।३८० अच्छिं० मक्खेत्ता अन्नयरेण धूवणजाएण धूवेजवा पधूवेज्ज वा धूवंतं वा पधूवंतं वा सा०।३९। जे भिक्खू अप्पणो पाउकिमियं वा कुच्छिकिमियं वा अङ्गुलिए निवेसिय निवेसियनीहरइ नीहरंतं वा सा० '७६।४० जे० दीहाओ नहसिहाओ कप्पेज्ज वा संठवेज वा कप्पंतं वा संठवंतं वा सा०।४१० दीहाई जङ्घरोमाई।४२२० वत्थि०।४३० चक्खु०१४४० कक्ख०।४५/० मंसु०।४६/० दन्ते आघंसेज वा पघंसेज्न वा आघसंतं वा पघसंतं वा सा० १४७० उच्छोलेज वा पधोएज्ज वा उच्छोलंतं वा पधोयंतं वा सा० . 1४८1० फुमेज वा रएज्ज वा फुमंत वा रयतं वा सा०।४९। उढे आमज्जेज वा पमज्जेज्ज वा, एवं ओढे पायगमो भाणियव्वो जाव फुमेज वा रएज्ज वा।५०-५५/ जे० दीहाइं उत्तरोट्ठरोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज वा कप्पंतं वा संठवंतं वा सा०५६/० अच्छिपत्ताई।५७/० अच्छीणि आमज्जेज वा एवं अच्छीसु पायगमो भाणियव्वो जावरएज्ज वा।५८-६३।० दीहाइंभुमगरोमाई।६४१० पासरोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्पंतं वा संठवंतं वा सा०।६५/० अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दन्तमलं वा नहमलं वा नीहरेज वा विसोहेज्ज वा णीहरंतं वा विसोहंतं वा सा० १६६।० कायाओ सेयं वा जल्लं वा पङ्क वा मलं वा०।६७ जे भिक्खू गामाणुगामं दुइज्जमाणे अप्पणो सीसदुवारियं करेइ करत वा सा०६८। जे० सणकप्पासओ वा उण्णक० वापोण्डक० वा अमिलक० वा वसीकरणसोत्तियं करेइ करतं वा सा०६९। जे० गिहंसि वा गिहमुहंसि वा गिहदुवारियसि वा गिहपडिदुवारंसि वा गिहेलुयंसि वा गिहंगणंसि वा गिहवच्वंसि वा उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेइ परिट्ठवंतं वा सा० १७०१० मडगगिर्हसि वा मडगच्छारियसि वा मडगथूभियंसि वा मडगआसयंसि वा मडगलेणंसि वा मडगथण्डिलंसि वा मडगवच्वंसि वा०।७१० इङ्गालदाहंसि वा खारदाहंसि वा गायदाहंसि वा तुसदाहसि वा ऊसदाहंसि वा० १७२।० आययणसि वा पंकसि वा पणगंसि वा० ॥७३॥ नवियासु वा गोलहणियासु नवियासु वा मट्टियाखाणीसुपरिभुज्जमाणियासु वा अपरिभुज्जमाणियासुवा०।७४१० उंबरवच्चंसिवानग्गोहवच्चंसिवा आसत्थ० वा पिलंखु० वा डाग० वा० १७५१० इक्खुवर्णसि वा सालिवणंसि वा कुसुंभवणंसि वा कप्पासवणंसि०७६/० डागवच्चंसि वा साग० वा मूलय वा कोत्थुबरि० वा खार० वा जीरिय० वा दमणग० वा मरूग० वा० ७७/० असोगवणंसि वा सत्तिवण्णवणंसि वा चंपगवणंसि वा चूयबणंसि वा अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु पत्तो वएसु पुप्फोवएसु फलोवएसु छाओवएसु० १०६' ७८/० सपायंसि वा परपायंसि वा दिया वा राओ वा वियाले वा उब्बाहिज्जमाणे सपायं गहाय परपायं वा जाइत्ता उच्चारपासवणं परिट्ठवेत्ता अणुग्गए सूरिये एडेइ MOPos9959555555 999 / श्री आगमगुणमंजूषा - १३५०55555555555555 5 5GGC 0.95听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明步 T4 MO5544 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) निसीह छेयसुतं उ. ४, ५ [8]. CO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐的乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐$乐乐乐乐乐乐乐 एडंतं वा वा० ११७' तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ।७९**॥ तइओ उद्देसओ ३॥★★★जे भिक्खू रायं अत्तीकरेइ अत्तीकरतं वा सा०,० अच्चीकरेइ अच्चीकरतं वा सा०, ० अत्थीकरेइ अत्थीकरतं वा सा०२८।१-३॥ एवं रायारक्खियं ।४-६/नगरारक्खियं ७-९/ निगमारक्खियं ।१०१२। देसारक्खियं ।१३-१५/सव्वारक्खियं '२८ ११६-१८१० कसिणाओ ओसहीओ आहारेइ आहारतं वा सा० ३७।१९।० आयरियउवज्झाएहिं अविइन्नं विगई आहारेइ आहारंतं वा सा० '६२' १२०० ठवणकुलाई अजाणिय अपुच्छिय अगवेसिय पुव्वामेव पिण्डवायपडियाए अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा० १०९' २११० निग्गन्थीणं उवस्सयंसि अविहीए अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा० २२२१२२४० निग्गन्धीणं आगमणपहंसि दण्डगं वा लट्ठियं वा रयहरणं वा मुहपोत्तिय प्र वा अन्नयरं वा उवगरणजायं ठवेइ ठवंतं वा सा० २३३'१२३० नवाइं अणुप्पन्नाई अहिगरणाइं उप्पाएइ उप्पायंतं वा सा० २५३।२४|० पोराणाई अहिगरणाई खामियविउसमियाइं पुणो उदीरेइ उदीरंतं वा सा० २५८।२५/० मुहविप्फालियं हसइ हसंतं वा सा० २६३' ।२६० पासत्थस्स संघाडयं देइ पडिच्छइ देन्तं वा पडिच्छंतं वा सा०।२७-२८। एवं ओसन्नस्स ।२९-३०। कुसीलस्स।३१-३२। नितियस्स ।३३-३४। संसत्तस्स २८३' ।३५-३६।० उदउल्लेण वा ससिणिर्तण वा हत्थेण वा दव्वीए वा भायणेण वा असणं वा० पडिगाहेइ पडिगाहंतं वा सा०।३७। एवं एक्कवीसं हत्था भाणियव्वा (दशवै०५ अ० ३२३३-३४-३५) ससरक्खेण वा मट्टियासंसटेण वा ऊसासं० वा लोणियसं० वा हरियालसं० वा मणोसिलासं० वा वण्णियसं० वा गेरूयसं० वा सेडियसं० वा सोरट्ठियसं० वा हिमुलगसं० वा अञ्जणसं० वा लोद्धसं० वा कुक्कुससं० वा पिट्ठसं० वा कंतवसं० वा कंदमूलसं० वा सिङ्गबेरसं० वा पुप्फगसं० वा उक्कुट्ठसं० वा हत्थेण वा० २८९' ।३८० गामारक्खियं अत्तीकरेइ अच्चीकरेइ अत्थीकरेइ करतं वा सा० एवं सो चेव रायगमोणेयव्वो।३९-४११० देसारक्खियं०१४२-४४० सीमारक्खियं०।४५-४७० रण्णारक्खियं०।४८-५०० सव्वारक्खियं० २९०'।५१-५३।० अन्नमन्नस्स पाए एवं तइयउद्देसगमेणणेयव्वं जाव गामाणुगामं दुइज्जमाणो अन्नमन्नस्स सीसदुवारियं करेइ करतं वा सार २९११५४-१०६/० साणुप्पाए उच्चारपासवणभूमि न पडिलेहेइ नपडिलेहतं वा सा० २९५' ।१०७० तओ उच्चारपासवणभूमीओ न पडिलेहेइ नपडिलेहतं वा सा० २९९' ।१०८१० खुड्डागंसि थण्डिलंसि उच्चारपासवणं परिठ्ठवइ परिट्ठवंतं वा सा० '३०४।१०९० उच्चारपासवणं अविहीए परिट्ठवेइ परिट्ठवंतं वा सा० '३०७।११०० उच्चारपासवणं परिट्ठवेत्ता न पुग्छंइ नपुञ्छंतं वा सा०।११११० कट्ठण वा कलिञ्चेण वा अङ्गुलियाए वा सलागाए वा पुच्छइ पुच्छंतं वा सा०।११२० नायमइ नायमंतं वा सा०।११३० तत्थेव आयमइ आयमंतं वा सा० ॥११४१० अतिदूरे आयमइ आयमंतं वा सा०।११५/ जे भिक्खू परं तिण्हं नावापूराणं आयमइ आयमंतं वा सा० ३१७' ।११६० अपरिहारिए णं परिहारियं बुया-एहि अज्जो ! तुमं च अहं च एगओ असणं वा० पडिग्गाहेत्ता तओ पच्छा पत्तेयं पत्तेयं भोक्खामो वा पाहामो वा, जो तमेवं वयइ वयंतं वा सा०, सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारठ्ठाणं उग्धाइयं '३२९।११७ ★★★ || चउत्थो उद्देसओ४॥★★★ जे भिक्खू सचित्तरूक्खमूलंसि ठिच्चा आलोएज्ज वा पलोएज्ज वा आलोयंतं वा पलोयंतं वा सा०।१। जे० सचित्तरूक्खमूले ठाणं वा सेज वा निसीहियं वा चेएइ चेयंतं वा सा०।२।० सचित्तरूक्खमूलंसि ठिच्चा असणं वा० आहारेइ आहारतं वा सा०।३० उच्चारपासवणं परिठ्ठवेइ परिवंतं वा सा० २९।४।० (२३८) सज्झायं करेइ करेंतं वा सा०१५/० उद्दिसइ उद्दिस्संतं वा सा०६० समुद्दिसइ समुद्दिसंतं वा सा० १७/० अणुजाणइ अणुजाणंतं वा सा०।८।० वाएइ वायंतं वा सा०।९/० पडिच्छइ पडिच्छंतं वा सा०।१०० परियट्टेइ परियद॒तं वा सा० ३६।११। जे भिक्खू अप्पणोई संघाडि अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा सिव्वावेइ सिव्वावंतं वा सा० '४५।१२।० अप्पणो संघाडीए दीहसुत्ताई करेइ करंतं वा सा० ५०'।१३।० पिउमंदपलासयं वा पडोलप० वा बिल्लप० वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा संफाणिय संफाणिय आहारेइ आहारतं वा सा०५९।१४/० पडिहारियं पायपुच्छणयं म जाइत्ता तामेव रयणिए पच्चप्पिणिइस्सामित्ति सुए पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा सा०।१५/० पडिहारियं पायपुच्छणयं जाइत्ता सुए पच्चप्पिणइस्सामित्ति तमेव रयणि पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा सा०।१६। एवं सागारियसंतिएवि जे पायपुच्छणयं जाइत्ता दो आलावग्गा ।१७-१८१० पाडिहारियं दण्डयं वा लठ्ठियं वा अवलेहणिज्नं 明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听CC) Ain Education International 2010SONELEVELEMEENETELEVENEVENEVELETE NETELEVENEVERE or Private&Personal Use Only www.jainelibrary.com S h ririGEEEEEEEENETrirFFFFFFFFFFAMOY Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) निसीह छेयसुत्तं उ. ५,६,७ [3] वा वेलुसूई वा एवं एतेहिं दोहिं चेव पाडिहारियं सागारियं गमएहिं णेयव्वा । १९.२२।० पाडिहारियं सेज्जासंथारगं पच्चप्पिणित्ता दोच्चंपि अणणुन्नविय अहि अहिवंतं वा सा० '८१' | २३ | एवं सागारियसंतिएवि । २४ जे० पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारयं अप्पच्चप्पिणित्ता अणुण्णविय अहिठ्ठेइ अहितं वा सा०।२५।० सणकप्पासाओ वा पोण्डक० वा उण्णक० वा अमिलक० वा दीहसुत्ताई करेइ करंतं वा सा० '११२।२६।० सचित्ताइं करेइ धरेइ परिभुंजइ करंतं० वा सा० । २७-२९। एवं चित्ताई । ३०-३२ । विचित्ताणि दारूदण्डाणि वा वेलुदण्डाणि वा वेत्तदं० वा करेइ करंतं वा सा० एवं धरेइ धरंतं वा सा० परिभुंजइ परिभुजंतं वा सा० ‘१२०’ ।३३-३५। जे० नवगनिवेसंसि गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा अणुपविसित्ता असणं वा० पडिगाहेइ पडिगाहंतं वा सा० । ३६।० नवगनिवेसंसि अयागरंसि वा तंबागरंसि वा तउआ० वा सीसआ० हिरण्णआ० वा सुवण्णआ० वा रयण० वा वइरआ० वा अणुप्पविसित्ता० १२९' |३७| जे० मुहवीणियं करेइ करतं वा सा० । ३८ ० दन्तवी० । ३९। एवं उठ्ठवी० |४०|| नासावी० ।४१। कक्खवी० ।४२। हत्थवी० |४३| नहवी० |४४| पत्तवी० |४५। पुप्फवी० |४६| फलवी० |४७ | बीवी ०|४८ | हरियवी० |४९ | मुहवीणियं जाव हरियवी० वाएइ वार्यतं वा सा० अण्णतराणि वा तहापगाराई अणुदिन्नाई सद्दाई उदीरेइ उदीरंतं वा सा० ‘१३२’।५०-६१।० उद्देसियं सेज्जं अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा० । ६२१० सपाहुडियं । ६३|० सपरिकम्मं । ६४ । जे० 'नत्थि संभोगवत्तिया किरिय' त्ति वयइ वयंतं वा सा० '२७५' । ६५।० वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा अलं थिरं धुवं धरणिज्जं पलिच्छिदिय पलिच्छिदिय परिठ्ठवेइ परिठ्ठवंतं वा सा० ॥६६/० लाउयपायं वा दारूपायं वा मट्टियापा० वा० ६७/० दण्डगं वा जाव पिप्पलसूइगं वा पलिभज्जिय परिठ्ठवेइ परिठ्ठवंतं वा सा० '२८१' १६८।० अइरेगपमाणं रयहरणसीसाइं धरेइ धरंतं वा सा० ।६९।० सुहुमाई रयहरणसीसाई करेइ करंतं वा सा० । ७०1० रयहरणस्स एवं बंधं देइ देतं वा सा० /७१।० रयहरणस्स परं तिण्हं बंधाणं देइ देतं वा सा०|७२ | जे० रयहरणं अविहीए बंधइ बंधतं वा सा० ।७३|० कण्डुसगबंधेण बंधइ बंधतं वा सा० १७४|० वोसठ्ठे धरेइ धरतं वा सा० /७५/० अनिस धरे धरतं वा सा० । ७६।० अभिक्खणं अभिक्खणं अहिठ्ठेइ अहिवंतं वा सा० ।७७/० उस्सीसमूले ठवइ ठवंतं वा सा० । ७८१० तुड्डेइ तुड्डतं वा सा०, तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारठ्ठाणं उग्घाइयं '३११' । ७९★★★ । पञ्चमो उद्देसो ५ ॥ ★★★ जे भिक्खू माउग्गामं मेहुणवडियाए विन्नवेइ वा विण्णवंतं वा सा० ‘५१' ।१। जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए हत्थकम्मं करेइ करतं वा सा० | २|० अंगादाणं कठ्ठेणं वा कलिंचेण वा अंगुलियाए वा संचालेइ संचालतं वा सा०, एवं माउग्गामऽभिलावेण पढमुद्देसाइगमो णेंयव्वो जाव सोयसुयं, जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि अणुप्पविसित्ता सुक्कपोग्गले निरघाएइ निग्घायंतं वा सा० । ३-१०। जे० माउग्गामं मेहुणवडियाए सयं कुज्जा सयं बूया करंतं वा० सा० | ११ | जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए कलहं कुज्जा कलहं बूया कलहवडियाए गच्छइ गच्छंतं वा सा० | १२|० लेहं लिहइ लेहं लिहावेइ लेहवडियाए गच्छइ गच्छंतं वा सा० '६९' |१३|० पिठ्ठतं वा सोयंतं वा पोसंतं वा भल्लायएणं उप्पाएइ उप्पायंतं वा सा० | १४|० पिठ्ठेतं वा सोयंतं वा पोसंतं वा भल्लायएण उप्पारत्ता सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्न वा० | १५/० पिठ्ठतं वा सोयंतं वा पोसंतं वा भल्लायएण उप्पाएत्ता तेल्लेण वा एवं जहा तइए उद्देसए गंडादीण जो गमो सो चेव इहंपि णेयव्वो जाव अणयरेण आले वणजाएणं आलिपेज्ज वा विलिपेज्न वा आलिंपतं वा विलिपंतं वा सा० | १६ | एवं जाव धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा ।१७-१८।० कसिणारं वत्थाई धरेइ धरंतं वा सा० । १९ । एवं अहयाई | २०|० धोवमलिणाई | २११० चित्ताई | २२|० विचित्तानं । २३।० अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा आमज्जेत वा पमज्जेत वा सा० एवं तइयउद्देसे जो गमओ सो चेव इह मेहुणवडियाए णेयव्वो जाव जे माउग्गामस्स मेहुणवडियाए गामाणुगामं दूइज्जमाणे अप्पणो सीसदुवारियं करेइ करंतं वा सा०।२४-७६।० खीरं वा दहिं वा नवणीयं वा गुलं वा खण्डं वा सक्करं वा मच्छण्डियं वा अन्नयरं वा पणीयं आहारं आहारेइ आहारंतं वा साइज्जइ '८८' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं अणुग्घाइयं ★★★ ॥७७॥ छठ्ठो उद्देसओ ६ ॥ ★★★ जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए तणमालियं वा मुञ्ज० वा भेण्ड० वा मयण० वा पिंछ० वा दन्त० वा सिंग० वा संख० वा हड्ड० वा कठ्ठ० वा पत्त० वा पुप्फ० वा फल० वा बीय० वा हरियामालियं वा करेइ करंतं वा सा० धरेइ धरंतं श्री आगमगुणमंजूषा १३५२ (CK666666666666 原 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) निसीह छेयसुत्तं उ. ७,८ [६] फफफफफफफफ वासा०पिणिधइपिणिधंतं वा सा० ११-३० अयलोहाणि वा तंब० वा तउय० वा सीसग० वा रूप्पग० वा सुवण्णलोहाणि वा करेइ करंतं वा सा० धरेइ धरंतं वा सा० परिभुञ्जइ परिभुञ्जतं वा सा० १४-६१० हाराणि वा अद्धहाराणि वा एगावलिं वा मुत्तावलिं वा कणगावलिं वा रयणावलिं वा कडगाणि वा तुडियाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि वा पट्टाणि वा मउडाणि वा पलंबसुत्ताणि सुवण्णसुत्ताणि वा करेइ करंतं वा सा० धरेइ धरंतं वा सा० परिभुञ्जइ परिभुअंतं वा सा० १७-९१० आईणाणि वा आईणपावराणि वा कंबलाणि वा कंबलपा० कोयरा (वा) णि वा कोयर (व) पा० वा कालमियाणि वा नीलमि० सामाणि वा महासामाणि वा उट्टाणि वा उस्साणि वा वग्घाणि वा विवग्घाणि वा परवङ्गाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा खोमाणि वा दुगुल्लाणि वा पट्टणाणि वा आवरन्ताणि वा चीणाणि वा अंसुयाणि वा कणगकन्ताणि वा कणगखंसि (खइ) याणि वा कणगचित्ताणि वा कणगविचित्ताणि वा आभरणविचित्ताणि वा करेइ जाव परिभुंजइ परिभुंजंतं वा सा०।१०-१२। जे० माउग्गामं मेहुणवडियाए अक्खंसि वा ऊरूंसि वा उयरंसि वा थणंसि वा गहाय संचालइ संचालतं वा सा०। १३ । जे० माउग्गामस्स मेहुणवडिय अन्नमन्नस्स पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा आमज्जंतं वा पमज्जतं वा सा०, एवं ततियउ सगमओ णेयव्वो जाव जे० माउग्गामस्स मेहुणवडिया गामानुगाम दुइज्जमाणे अन्नमन्नस्स सीसवारियं करेइ करंतं वा सा० ।१४-६६। जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अणंतरहियाए एवं ससिणिद्धाए ससरक्खाए मट्टियाकडाए चित्तमन्ताए पुढवीए निसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा णिसीयावेतं वा तुयट्टावेतं वा सा० १६७-७११० चित्तमन्ताए सिलाए लेलुए० । ७२-७३/० कोलावासंसि वा दारूए जीवपट्ठिए सअण्डे सपाणे सवीए सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिङ्गपणगदगमट्टियमक्कडगसंताणगंसि० ।७४।० आगन्तारेसु वा जाव परियावसहेसु वा० ||७५/० आगन्तागारेसु वा जाव परियावसहेसु वा निसीयावेत्ता वा तुयट्टावेत्ता वा असणं वा० अणुघासेज्ज वा अणुपाएज्न वा अणुघासंतं वा अणुपायंतं वा सा |७६१० अंकंसि वा पलियंकंसि वा णिसीयावेत्ता वा तुयट्टावेत्ता वा जाव साइज्जइ । ७७| जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंकंसि वा पलियंकंसि वा णिसीयावेत्ता वा तुयट्टावेत्ता वा असणं वा० अणुघासेज्ज वा अणुपाएज्न वा अणुघासंतं वा अणुपायंतं वा सा० १७८। जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं तेइच्छं आउट्टेइ आउट्टंतं वा सा० । ७९/० अमणुन्नाई पोग्गलाई नीहरइ नीहरंतं वा सा० |८०|० मणुन्नाई पोग्गलाई उवहरइ उवहरंतं वा सा० १८१। जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नयरं पसुजाई वा पक्खिजाई वा पायंसि वा पक्खंसि वा पुच्छंसि वा सीसंसि वा गहाय संचालेइ संचालंत वा सा० १८२१० सोयंसि कठ्ठे वा किलिंचं वा अंगुलीयं वा सलागं वा अणुप्पवेसेत्ता संचालेइ संचालतं वा सा० १८३|० 'अयं थी' तिकट्टु आलिङ्गेज्न वा परिस्सएज्ज वा परिचुंबेज्ज वा आलिंगंतं वा परिस्सयंतं वा परिचुंबतं वा सा० । ८४। जे० माउग्गामस्स मेहुणवडियाए असणं वा० देइ देन्तं वा सा० १८५-८६ । एवं वत्थंपि दोहिं गमएहिं । ८७-८८। सज्झायंपि दोहिं ।८९९०/० अन्नयरेणं इंदिएणं आगारं करेइ करंतं वा सा० '५३' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं अणुग्घाइयं ★ ★ ★ |११|| सत्तमो उद्देसओ ७ || ★★★ जे भिक्खू आगन्तारेसु वा जाव परियावसहेसु वा एगो एगित्थीए सद्धिं जाव कहतं वा साइज्जइ '८४' | ११० उज्जाणंसि वा उज्जाणगिहंसि वा उज्जाणसालंसि वा निज्जाणंसि वा निज्जाणगिहंसि वा निज्जाणसालंसि वा० | २|० अहंसि वा अट्टालयंसि वा पागारंसि वा चरियंसि वा दारंसि वा गोपुरंसि वा एगो० | ३|० दगंसि वादगमग्गंसि वा दगपहंसि वा दगतीरंसि वा दगठाणंसि वा एगो० |४|० सुन्नगिहंसि वा सुन्नसालंसि वा भिन्नगिहंसि वा भिन्नसालंसि वा कूडागारंसि वा कोठ्ठा वा एगो० १५/० तणगिहंसि वा तणसालंसि वा तुसगिहंसि वा तुससालंसि वा बुसगिहंसि वा बुससालंसि वा एगो० |६|० जाणसालंसि वा जालगिहंसि वा जुग्गसालंसि वा जुग्गगिहंसि वा एगो० /७/० पणियसालंसि वा पणियगिहंसि वा परियायगिहंसि वा परियायसालंसि वा कुवियगिहंसि वा कुवियसालंसि वा एगो ० १८/० गोणसालंसि वा गोणगिहंसि वा महाकुलंसि वा महागिहंसि वा एगो एगित्थीए सद्धिं विहारं वा करेइ सज्झायं वा करेइ असणं वा० आहारेइ उच्चारं वा पासवणं वा परिठ्ठवेइ अन्नयरं वा अणारियं निठुरं अस्समणपाओग्गं कहं कहेइ कहतं वा सा० '८७' ।९१० राओ वा वियाले वा इत्थीमज्झगए इत्थीसंसत्ते इत्थीपरिवुडे अपरिमाणाए कहं कहेइ कहतं वा सा० | १०|० सगणिच्चियाए वा परगणिच्चियाए वा निग्गन्थीए सद्धिं गामाणुगामं दुइज्नमाणे पुरओ गच्छमाणे पिठ्ठओ रीयमाणे श्री१३५३ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) निसीह छेयसुत्तं उ. ८,९ [19] फफफफफफफफ ओहयमणसंकप्पे चिंतासोयसागरसंपविठ्ठे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए विहारं करेइ जाव करंतं वा सा० । ११।० नायगं वा अनायगं वा उवासयं वा अणुवासयं वा अन्तो उक्स्सस्स अद्धं वा राई कसिणं वा राई संवसावेइ संवसावंतं वा सा० | १२| जे० तं न पडियाइक्खइनपडियाइक्खतं वा सा० | १३ | जो तं पडुच्च निक्खमइ वा पविसइ वा० '१३६' | १४ | जे भिक्खु रन्नो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं समवासु वा पिण्डमहेसु वा असणं वा० पडिग्गाहेड़ पडिग्गाहतं वा सा० | १५/० उत्तरसालंसि वा उत्तरगिहंसि वा रीयमाणाणं० | १६/० हयसालगयाण वा गयसा० वा मंतसा० वा गुज्झसा० वा रहस्ससा० वा मेहुणसा० वा० | १७|० संनिहिसंनिचयाओ खीरं वा दहिं वा नवणीयं वा सप्पिं वा गुलं वा खण्डं वा सक्करं वा मच्छण्डियं वा अन्नयरं वा भोयणजायं पडिगाहेइ पडिगार्हतं वा सा० | १८|० उस्सठ्ठपिंडं वा संसठ्ठपिण्डं वा अनाहपिण्डं वा किविणपिण्डं वा वणीमगपिण्डं वा पडिगाहेइ जाव साइज्जइ '१५५' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासिय परिहारठ्ठाणं अणुग्घाइयं ★★★ । १९ ॥ अठ्ठमो उद्देसओ ८॥ ★★★ जे भिक्खू रायपिण्डं गेण्हइ गेण्हंतं वा सा० | ११० भुजइ भुंजंतं वा सा० ' १६' | २|० रायन्तेपुरं पविसइ पविसंतं वा सा० |३|० रायन्तेपुरियं वएज्जा 'आउसो ! रायंतेउरिए ! नो खलु अम्हं कप्पइ रायन्तेपुरं निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, इमण्हं तुमं पडिग्गहगं गहाय रायन्तेपुराओ असणं वा० निहडियं आहट्टु दलयाहिं जे तं एवं वयइ वयंतं वा सा० |४| जे भिक्खू य णं रायन्तेउरिया वएज्जा 'आउसन्तो ! समणा न खलु तुझं कप्परायन्तेपुरं निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा आहारेयं पडिग्गहगं जाए अहं रायन्तेपुराओ असणं वा० णीहडियं आहट्टु दलयामि' जे एवं पडिसुणेइ पडिसुणंतं वा सा० '२९' | ५ | जे भिक्खू रन्नो जाव मुद्धाभिसित्ताणं दुवारियभत्तं वा पसुभत्तं वा भयगभत्तं वा बलभत्तं वा कयगभत्तं वा हयभत्तं वा गयभक्तं वा कन्तारभत्तं वा दुब्भिक्खभत्तं वा दुकालभत्तं वा दमगभत्तं वा गिलाणभत्तं वा वद्दलियाभत्तं वा पाहुणगभत्तं वा पडिगाहेइ पडिगार्हतं वा सा० '३६' | ६ | जे भिक्खू रण्णो खत्तियाण जाव मुद्धाभिसित्ताणं इमाई छद्दोसाययणाई अजाणित्ता अपुच्छिय अगवेसिय परं चउरायपञ्चरायाओ पिण्डवायपडियाए निक्खमइ वा पविसइ वा निक्खमन्तं वा पविसन्तं वा साइज्जइ तं०- कोठ्ठागारसालाणि वा भण्डागारसालाणि वा पाणसालाणि वा खीरसा० वा गञ्जसा० वा महाणससा० वा० '४२' | ७| जे भिक्खू रण्णो जाव मुद्धाभिसित्ताणं अइगच्छमाणाण वा निग्गच्छमाणाण वा० '४८' |८|० इत्थीओ सव्वालंकारविभूसियाओ पदमवि चक्खुदंसणपडियाए गच्छइ वा अभिसंधारे वा गच्छन्तं वा अभिसंधारेन्तं वा सा० 1९10 मंसखायाण वा मच्छखा० वा छविखा० बहिया निग्गयाणं असणं वा जाव साइज्जइ | १०|० अन्नयरं उववूंहणीयं समीहियं पेहाए तीसे परिसाए अणुठ्ठियाए अभिन्नाए अव्वोच्छिन्नाए जे तं अन्नं पडिगाहेइ पडिगाहेन्तं वा साइज्जइ, अह पुण एवं जाणेज्ना 'इहऽज्न राया खत्तिए परिवुसिए' जे भिक्खू ताए गिहाए ताए पएसाए ताए उवासन्तराए वा विहारं वा करेइ सज्झायं वा जाव कहतं वा सा० '६१' |११| जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं जाव अभिसित्ताणं बहियाजत्तासंठियाणं असणं वा० पडिगाहेइ पडिगाहंतं वा सा० | १२| बहियाजत्तापडिणियत्ताणं० | १३ | एवं नईजत्तापठ्ठियाणं० | १४|० पडिणियत्ता ० | १५/० गिरिजत्तापठ्ठियाणं० | १६।० गिरिजत्तापडिणियत्ताणं० | १७/० महाभिसेयंसि वट्टमाणंसि निक्खमइ वा पविसइ वा निक्खमंतं वा पविसंतं वा सा० ‘९०' ।१८। जे भिक्खू जाव अभिसित्ताणं इमाओ दस अभिसेक्काओ रायहाणीओ उद्दिठ्ठाओ गणियाओ वञ्जियाओ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा निक्खमइ वा पविसइ वा निक्खमन्तं वा पविसन्तं वा साइज्जइ तंजहा- चम्पा महुरा वाणारसी सावत्थी साएयं कंपिल्लं कोसंबी मिहिला हत्थिणापुरं रायगिहं ‘१००’।१९। जे भिक्खू रन्नो० असणं वा० परस्स नीहडं पडिगाहेइ पडिगाहेन्तं वा साइज्जइ तं० खत्तियाण वा राईण वा कुराईण वा रायसंसियाण वा रायपेसियाण To | २०|० नडाण वा नट्टांण वा कच्छुयाण वा जल्लाण वा मल्लाण वा मुट्ठियाण वा बेलम्बगाण वा कहगाण वा पवगाण वा लासगाण वा दोक्खलयाण वा छत्ताणुयाण वा० । २१।० आसपोसयाण वा हत्थिपो० वा महिसपो० वा वसहपो० वा सीहपो० वा वग्घपो० वा अयपो० वा पोयपो० वा मिगपो० वा सुहो० वा सूयरपो० वा मेण्ढपो० वा कुक्कुडपो० वा तित्तिरपो० वा वट्टयपो० वा लावयपो० वा चीरल्लपो० वा हंसपो० वा मयूरपो० वा सुयपो० वा० | २२| एवं आसदमगाण ॐ श्री आगमगुणमंजूषा १३५४ וווווווווו Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XGRO555555555555 (३४) निसीह छेयसुतं उ.९,१०,११ [] $ %% % % %% 25E GC玩乐乐乐乐乐乐乐明明明明明明明 <<<<<$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ वा हत्थिद० वा०।२३० आसमिठाण वा हस्थिमि० वा० २४१० आसरोहाण वा हत्थिरो० वा०।२५/० सत्थाहाण वा संवाहावयाण वा अब्भंगावयाण वा उव्वट्टावयाण वा मज्जावयाण वा मण्डावयाण वा छत्तग्गहाण वा चामर०. वा हडप्प० वा परियट्ट० वा दीविय० असि० वा धणु० वा सत्ति० कोन्त० वा०२६० वरिसधराण वा कथुइज्जाण वा दोवारियाण वा दण्डारक्खियाण वा० २७/० खुज्जाण वा चिलाइयाण वा वामणीण वा बड़भीण वा बब्बरीण वा पउसीण वा जोणियाण वा पल्हवियाण वा इसिणीण वा थारूगिणीण वा लउसीण वा लासीण वा सिंहलीण वा आलवी (रबी) ण वा पुलिन्दीप वा सबरीण वा पारिसीण वा०, तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं अणुग्घाइयं १११।२८★★★|| नवमो उद्देसओ ९॥ जे भिक्खू भदन्तं आगाढं वयइ वयंतं वा सा० ११० फरूसं।२।० आगाढफरूसं '३५'३० अन्नयरीए अच्चासायणाए अच्चासाएइ अच्चासायंतं वासा० ५२'।४।जे भिक्खू अणन्तकायसंजुत्तं आहारं आहारेइ आहारतं वा सा० ५६।५/० आहाकम्मं भुञ्जइ भुञ्जतं वा सा० ८१।६।० पडुप्पन्नं वागरेइ वागरेंतं वा सा० १७१० अणागयं निमित्तं वागरेइ वागरंतं वा सा० ९३' 1८10 सेहं विप्परिणामेइ विपरिणामंतं वा सा०।९/० अवहरइ अवहरंतं वा सा०।१०० दिसं विपरिणामेइ विप्परिणामंतं वा सा० ११११० अक्हरइ अवहरंतं वा सा० '१५७' ११२१० बहियावासियं आएसं परं तिरायाओ अविफालेत्ता संवसावेइ संवसावेत वा सा०।१३।० साहिगरणं अविओसवियपाहुडं अकडपायच्छित्तं संभुञ्जइ संभुजंतं वा सा० २५३।१४।० उग्धाइयं अणुग्धाइयं वयइ वयंत वा सा०।१५/० अणुग्घाइयं उग्घाइयं०।१६।० उग्घाइए अणुग्धाइयं देइ देंतं वा सा०।१७० अणुग्घाइए उग्धाइयं०।१८। जे भिक्खू उग्घाइयं सोच्चा नच्चा संभुञ्जइ संभुंजंतं वा सा० १९/० उग्धाइयहेउं० १२०० उग्धाइयसंकप्पं०।२१उग्घाइयं वा उग्घाइयहेउं वा उग्घाइयसंकप्पं वा०।२२।० अणुग्घाइयं० अणुग्घाइयहेउं० अणुग्घाइयसंकप्पं० अणुग्घाइयं वा अणुग्धाइयहेउं वा अणुग्घाइयसंकप्पं वा० १२३२६।० उग्धाइयं वा अणुग्धाइयं वा०।२७।० उग्घाइयहेउं वा अणुग्घाईयहेउं वा०।२८१० उग्घाइयसंकप्पं वा अणुग्धाइयसंकप्पं वा०।२९।० उग्घाइयं वा अणुग्घाइयं वा उग्धाइयहेउं वा अणुरघाइयहेउं वा उग्घाइयसंकप्पं वा अणुग्घाइयसंकप्पं वा० ।३०। जे भिक्खू उग्गयवित्तीए अणत्यमियमणसंकप्पे संथडिए निव्विइगिच्छासमावन्नेणं अप्पाणेणं असणं वा० पडिगाहेत्ता संभुअइ संभुञ्जन्तं वा सा०।३११० संथ० विइगिच्छा० १३२१० असंथडिए निम्विइगिच्छा०।३३१० असं० विइगिच्छा० (अह पुण एवं जाणेज्जा-अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिसि जं च पडिग्गहे तं विगिश्चिय विसोहिय तं परिवेमाणे नाइक्कमइ, जो तं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ) '३२५१३४। जे भिक्खू राओ वा वियाले वा सपाणं सभोयणं उग्गाल उग्गिलित्ता पच्चोगिलइ पच्चोगिलंतं वा सा० '३५६' ।३५/ जे भिक्खू गिलाणं सोचा न गवेसइ नगवेसंतं वा सा०३६।० उम्मग्गं वा पडिपहं वा गच्छइ गच्छंतं वा सा०।३७। जे भिक्खू गिलाणवेयावच्चे अब्भुठ्ठियस्स सएण लाभेण असंथरमाणस्स जे तस्स न पडितप्पइ नपडितप्तं वा सा० ३८० गि० अब्भुठ्ठियं गिलाणपाओगे दव्वजाए अलभमाणे जे तं न पडियाइक्खइ नपडियाइक्खंतं वा सा० "५१२१३९।० पढमपाउसंसि गामाणुगामं दूइज्जइ दूइज्जतं वा सा०।४०० वासावासं पज्जोसवियंसि दूइज्जइ दूइज्जतं वा सा०४१।० अपज्जोसवणाए पज्जोसवेइ पज्जोसवेंतं वा सा०।४२२० पज्जोसवणाए न पज्जोसवेइ नपज्जोसवंतं वा सा०।४३० पज्जोसवणाए गोलोमाइंपि वालाई उवाइणावेइ उवाइणावेंतं वा सा०४४१० पज्जोसवणाए इत्तिरियपि आहारं आहारेइ आहारतं वा सा०।४५/० अन्नउत्थियं वा गारत्थियं वा पज्जोसवेइ पज्जोसवेतं वा सा० ६१०' १४६/० पढमसमोसरणुद्देसपत्ताइं चीवराइं पडिगाहेइ पडिगाहंतं वा सा० ६६४' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं अणुग्धाइयं ।४७|| दसमो उद्देसओ १०॥ जे भिक्खू अयपायाणि वा कंस० वा तंब० वा तउय० वा रूप्प० वा सुवण्ण० वा जायरूव० वा मणि० वा काय० कणग० वा दन्त० वा सिंग० वा चम्म० वा चेल० वा अंकपा० वा संख० वा वइर० वा करेइ करतं वा सा० ११० धरेइ धरंतं वा सा०।२।० परिभुंजइई परि जन्तं वा सा०।३।० अयबंधणाणि वा जाव वइरबंधणाणि वा करेइ करेंतं वा सा० जाव परिभुंजइ परिभुजंतं वा सा० ॥४-६० परं अद्धजोयणमेराओ $听听听听听听听听听听乐频货车折纸野乐乐乐乐明明明明明明明明明明明明玩玩乐乐听听听听听听听听听听G $$K$FHSSSSME 5555555555 श्री आगमगणमंजषा-१३५५ 555555555OOR Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) निसीह छेयसुत्तं उ. ११,१२ पायवडियाए गच्छइ गच्छंतं वा सा० |७|० परं अजोयणमेराओ सपच्चवायंसि पायं अभिहडं आहट्टु देज्जमाणं पडिगाहेइ पडिगाहंतं वा सा० २३' |८|० धम्मस्स अवण्णं वयइ वयंतं वा सा० | ९|० अधम्मस्स वण्णं० '३६' |१०|० अन्नउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए आमज्जिज्ज वा पमाज्जिज्ज वा आमज्जतें वा पज्जतं वा सा० एवं तइयउद्देसगमेण णेयव्वं नवरं अन्नउत्थियगारत्थियाभिलावा जाव जे गामाणुगामं दूइज्जमाणे अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा सीसवारिय करेइ करतं वा सा० '३८' ।११-६३१० अप्पाणं बीभावेइ बीभावंतं वा सा० । ६४|० परं० । ६५।० अप्पाणं विम्हावेइ विम्हावेंतं वा सा० । ६६।० परं० |६७/० अप्पाणं विप्परयासेइ विप्परियासेंतं सा० ।६८।० परं० ।६९।० मुहवण्णं करेइ करंतं वा सा० '८४।७०|० वेरज्जविरूद्धरज्जुंसि सज्जं गमणं आगमणं गमणागमणं करेइ जाव सा० ११५ ।७१।० दियाभोयणस्स अवण्णं वयइ वयंतं वा सा० । ७२० राइभोयणस्स वण्णं० १२०' ।७३।० दिया असणं वा० पडिगाहेत्ता दिया भुंजइ० |७४|० दिया प० रत्तिं भु० । ७५।० रत्तिं प० दिया भु० । ७६० रत्तिं पडिगाहेइ रत्तिं भुंजइ भुंजतं वा सा० '१९१' । ७७ ० असणं वा० अणागाढे परिवासेइ परिवासंतं वा सा० ७८० परिवासियस्स असणस्स वा० तयप्पमाणं वा भूइ० वा आहारं आहारेइ आहारंतं वा सा० '२०२' ।७९।० मंसाइयं वा मच्छाइयं वा मंसखलं वा मच्छखलं वा आहेणं वा पहेणं वा सम्मेलं वा हिगोलं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं विरूवरूवं हीरमाणं पेहाए ताए आसाए ताए पिवासाए तं रयणि अन्नत्थ उवाइणावेइ उवातिणावेंतं वा सा० २१२ । ८०० निवेयणपिण्डं भुंजइ भुंजंतं वा सा० '२१५' ।८१।० अहाछन्दं पसंसइ पसंसतं वा सा० १८२० वंदइ वंदतं वा सा० '२२६' |८३|० नायगं वा अनायगं वा उवासगं वा अणुवासगं वा अणलं वा पव्वावेइ पव्वावेंतं वा सा० । ८४|० उवठ्ठावेइ उवठ्ठावंतं वा सा० '४९१' | ८५/० नायएण वा अनायएण वा उवासएण वा अणुवासएण वा अणलेण वेयावच्चं कारेइ कारंतं वा सा० '४९६' | ८६।० सचेले सचेलगाणं मज्झे संवसइ संवसंतं वा सा० | ८७/० अचेले सचेलगाणं० १८८० सचेले अचेलगाणं० ।८९।० अचेले अ० '५०७ ।९०|० पारियासियं पिप्पलिं वा पिप्पलिचुण्णं वा सिंगबेरं वा सिंगबेरचुण्णं वा बिलंवा लोणं वा उज्झि (ब्भि) य वा लोणं आहारेड आहारंतं वा सा० ५२०' ।११।० गिरिपडणाणि वा मरूप० वा भिगुप० वा तरूप० वा गिरिपक्खंदणाणि वा मरू० वा तरू० जलपवेसाणि वा जलण० वा (२३९) जलपक्खंदणाणि वा जलण० वा विसभक्खणाणि वा सत्थोवाडणाणि वा अंतोसल्लमरणाणि वा वेहाणसाणि वा गिद्धपठ्ठाणि वा वलयमरणाणि वा जाव अन्नयराणि व तहप्पगाराणि बालमरणाणि पसंसइ पसंसंत वा सा० '५३७' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासिय परिहारठ्ठाणं अणुग्घाइयं । ९२|| एक्कारसमो उद्देसओ ११ ॥ जे भिक्खू कोलूणपडियाए अन्नयरिं तसपाणजाई तणपासएण वा मुंजपा० वा कठ्ठपा० वा चम्मपा० वा वत्तपा० वा रज्जुपा० सुत्तपा० वा बंधइ बंधतं वा सा० | १|० बद्धेल्लगं वा मुयइ मुयंतं वा सा० '१०' | २|० अभिक्खणं अभिक्खणं पच्चक्खाणं भञ्जइ भंजंतं वा सा० १५' |३|० परित्तकायसंजुत्तं आहारेइ आहारंतं वा सा० २०' 1810 सलोमाइं चम्माई धरेइ धरंतं वा सा० '४५' |५|० तणपीढगं वा पलालपी० वा छगणपी० वाकट्ठपी० वा परवत्थेणोच्छन्नं अहिठ्ठेइ अहिवंतं वा सा० '५०' | ६|० निग्गन्थीए संघाडि अन्नउत्थिएण गारत्थिएण वा सिव्वावेइ सिव्वावंतं वा सा० ५७ ॥७/० पुढवीकायस्स वा कलमायमवि समारभइ समारभंतं वा सा० एवं जाव वणप्फतिकायस्स '६१' |८|० सचित्तरूक्खं दुरूहइ दुरूहंतं वा सा० '६६' | ९|० गिहिमत्ते भुञ्जइ भुजंतं वा सा० | १०|० गिहिवत्थं परिहेइ परिहंतं वा सा० | ११० गिहिनिसेज्जं वाहेइ वाहंतं वा सा० | १२|० गिहितिगिच्छं करेइ करंतं वा सा० '८२' | १३|० पुरेकम्मकडे हत्थे वा मत्तेण वा दव्विएण वा भायणेण वा असणं वा० पडिगाहेइ पडिगाहंतं वा सा० | १४|० अन्नउत्थियाण वा गारत्थियाण वा सीओदगपरिभोएण० '१४२' । १५।० कठ्ठकम्माणि वा चित्तक० वा पोत्थक० वा दन्तक० वा मणिक० वा सेलक० वा गंठिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणि वा संघाइमाणि वा पत्तच्छेज्जाणि वा विविहाणि वा वेहिमाणि वा चक्खुदंसणवडियाए अभिसंघारेइ अभिसंधारंतं वा सा० | १६/० वप्पाणि वा फलिहाणि वा उप्फलाणि वा पल्ललाणि वा उज्झराणि वा निज्झराणि वा वावीणि वा पोक्खराणि वा दीहियाणि वा गुंजालियाणि वा सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपं० वा० | १७/० कच्छाणि वा गहणाणि वा नूमाणि वा वणाणि वा वणविदुग्गाणि वा पव्वयाणि वा पव्वयवि० वा० ।१८।० गामाणि वा नगराणि वा खेडाणि वा कब्बडाणि वा मडम्बाणि वा दोणमुहाणि वा पट्टणाणि वा COOK श्री आगमगुणमंजूषा १३५६ MORO [8] 原 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) निसीह छेयसुत्तं उ. १२,१३ [१०] 乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听 CO乐乐明明明明明明明明明明明明明明明乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听F5T आगराणि वा सम्बाहाणि वा संनिवेसाणि वा०।१९४० गाममहाणि वा जाव संनिवेसमहाणि वा० १२०० गामवहाणि वा जाव संनिवेसवहाणि वा गामदाहाणि वा जाव संनिवेसदाहाणि वा०।२१।० गामपहाणि वा जाव संनिवेसपहाणि वा०।२२।० आसकरणाणि वा हत्थिक०वा उट्टक० वा गोणक० वा महिसक० वा सूयरक० वा०।२३।० आसजुद्धाणि वा हत्थिजु० वा उट्टजु० वा गोण० महिसजु० वा०।२४/० उज्जूहियठ्ठाणाणि वा यजूहियठ्ठाणाणि वा गयजूहियठ्ठाणाणि वा०।२५/० अभिसेयठ्ठाणाणि वा अक्खाइयठ्ठाणाणि वा माणुम्माणियठ्ठा० वा महयाहयनट्टगीयबाइयतन्तीतलतालतुडियपडुप्पवाइय० वा०।२६।० आघायणाणि वा डिम्बाणि वा डमराणि वा खाराणि वा वेराणि वा महाजुद्धाणि वा महासंगामाणि वा कलहाणि वा बोलाणि वा०।२७/० विरूवरूवेसु महुस्सवेसु इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा मज्झिमाणि वा डहराणि वा अणलंकियाणि वा सुअलंकियाणि वा गायन्ताणि वा वायन्ताणि वा नच्चन्ताणि वा हसन्ताणि वा रमन्ताणि वा मोहन्ताणि वा विउलं असणं वा० परिभायन्ताणि वा परि जन्ताणि वा० सा०।२८० इहलोइएसु वा रूवेसुं परलोइएसु वा रूवेसुं दिठेसु वा अदिढेसु वा सुएसु वा असुएसु वा विन्नाएसु वा अविन्नाएसुवा रूवेसु सज्जइ रज्जइ गिज्झइ अज्झोववज्जइ सज्जमाणं वा जाव अज्झोववज्जमाणं वा सा० '१६३।२९।० पढमाए पोरिसीए असणं वा० पडिगाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवाइणावेइ उवाइणावंतं वा सा० १८९।३०० परं अद्धजोयणमेराओ असणं वा० उवाइणावेइ उवायणावेतं वा सा० २१८।३१० दिया गोमयं पडिगाहेत्ता दिया कायंसि वणं आलिम्पेज्ज वा विलिपज्ज वा आलिपंतं वा विलिपंतं वा सा०३२।० दिया गो० प० रत्तिं वणं आलि० विलिपेज वा ।३३।० रत्तिं गो० प० दिया वणं आ० वि०॥३४॥ रत्तिं गो० प० रत्तिंवणं आ० वि०।३५/० दिया आलेवणजायं पडिगाहेत्ता दिया कायंसि वणं जाव चउभंगो २२६' १३६-३९।० अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा उवहिं वहावेइ वहावेतं वा सा०1४०० तंनीसाए असणं ० देइ देंतं वा सा० २३०' १४१। जे भिक्खू पश्चिमाओ महण्णवाओ महानईओ उद्दिठ्ठाओ गणियाओ वंजियाओ अन्तो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरइ वा संतरइ वा उत्तरन्तं वा संतरन्तं वा साइज्जइ, तंजहागंगा जउणा सरऊ एरावई मही '२७८' तं सेबमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं ★★★।४२॥ बारसमो उद्देसओ १२॥★★★जे भिक्खू अणन्तरहियाए पुढवीए ठाणं वा सेज वा णिसीहियं वा चेएइ चेयंतं वा सा० जाव मक्कडासंताणगंसि ।१-८० थूणंसि वा गिहेलुयंसि वा उसुयालंसि वा कामजालंसि वा०।९।० कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलंसि वा लेलुयंसि वा अन्तलिक्खजायंसि वा० ।१०० खंधंसि वा फलहंसि वा मञ्चसि वा मण्डवंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अनिकम्पे चलाचले० '२२।११। जे भिक्खू अन्नउत्थिय वा गारत्थियं वा सिप्पं वा सिलोगं वा अठ्ठापयं वा कक्कडगं वा वुग्गहं वा सलाह (ग) वा सलाहकढहत्थयं वा सिक्खावेइ सिक्खावेंतं वा सा०।१२।० आगाढं वयइ वयंतं वा सा० फरूसं आगाढफरूसं अन्नयरीए अच्चासायणाए अच्चासाएइ अच्चा० सा० '३१।१३-१६। जे भिक्खू अन्नउत्थियाण वा गारत्थियाण वा कोउगकम्मं करेइ करंतं वा सा०।१७/० भूइकम्मं०।१८।० पसिणं कहेइ० ।१९। पसिणापसिणं०।२०१० तीयं निमित्तं०।२१।० लक्खणं०।२२१० सुमिणं०।२३।० विजं पउंजइ पउंजंतं वा सा०५०।२४। एवं मन्तं ।२५। जोगं ।२६।० नठ्ठाणं मूढाणं विप्परियासियाणं मग्गं वा पवेएइ संधि वा प० मग्गेण वा संधिं प० संधीओ बा मग्गं प० पवेएंतं वा सा०।२७/० धाउं पवेएइ पवेएतं वा सा०।२८० निहिं० '६२।२९। जे भिक्खू मत्तए अप्पाणं देहइ देहतं वा सा० १३०० अदाए०।३१। एवं असीए ।३२। मणिए ।३३। उड्डपाणे ।३४। तेल्ले ।३५। फा (पा) णिए ३६। वसाए '७३' ।३७/० वमणं पडिकम्मं करेइ करतं वा सा०।३८० विरेयणं०।३९/० वमणविरेयणं०।४०० अरोगियं० '८४१४१० पासत्थं वंदइ वंदंतं वा सा० पसंसइ पसंसत वा सा '११९।४२-४३। एवं ओसन्नं।४४-४५। कुसीलं ।४६-४७। नितियं ।४८-४९। संसत्तं । ५०-५१। काहिय।५२-५३। पासणियं ।५४ ५५/ मामगं ।५६-५७। संपसारगं ११९।५८-५९० धाइपिंडं भुंजइ भुजंतं वा सा०।६०। एवं दूइ०।६१। निमित्त०६२। आजीविय०।६३। वणीमगपि०६४। म तिगिच्छा०।६५। कोह० १६६। माण०।६७। माया०।६८। लोभ०६९। विज्जा०।७०। मन्त०७१। जोग०।७२। चुण्ण०।७३।० अन्तद्धाण० २१६ तं सेवमाणे 听听听听听听听听听乐乐乐明明明明明明明明听听听听听听听听听听听用纸折纸明明明明明明明明明明明明明明 Education international 2010_03 www.jainelibrary.ort Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Si nADES C%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听5 आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं उग्घाइयं । ★★★७४॥ तेरसमो उद्देसओ १३॥★★★जे भिक्खू पडिग्गहं किणइ किणावेइ कीयं आहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ पडि० सा०।१० पामिच्चेइ पामिच्चावेइ पामिच्चियं०।२।० परियट्टेइ परियट्टावेइ परियट्टियं० ।३० अच्छेज्ज अनिसिठ्ठ अभिहडं० ५१।४। जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहगं गणिं उद्दिसियं गणिं समुद्दिसिय तं गणिं अणापुच्छिय अणामन्तिय अन्नमन्नस्स वियरइ वियरंतं वा सा०।५।० खुड्डगस्स वा खुडिडयाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वा अहत्थच्छिन्नस्स अपायच्छिन्नस्स अनासच्छिन्नस्स अकण्णच्छिन्नस्स अणोठ्ठच्छिन्नस्स सक्कस्स देइ देंतं वा सा०।६।० खुड्डगस्स वा जाव थेरियाए वा हत्थच्छिन्नस्स० ओकृच्छिन्नस्स असक्कस्स न देइ नदेंतं वा सा० १५३' ७ जे भिक्खू पडिग्गहं अणलं अथिरं अधुवं अधारणिज्जं धरेइ धरेतं वा सा०1८1० अलं थिरं धुवं धारणिजं न धरेइ नधरेतं वा सा० १५९।९। जे भिक्खू वण्णमन्तं पडिग्गहं विवण्णं करेइ करेंतं वा सा०।१०। विवण्णं पडिग्गह वण्णमन्तं०।११। जे भिक्खू नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे' त्तिकटु तेल्लेण वा घएण वा नवणीएण वा वसाए वा मक्खेज वा भिलिंगेज वा मक्खंतं वा भिलिंगतं वा सा०।१२।० लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णण व उल्लोलेज वा उव्वले (ट्टे) ज्ज वा उल्लोलंतं वा उव्वलं (ट्ट) तं वा सा०।१३० सीओदगवियडेण वा जाव उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोएज्ज वा०।१४० बहुदेवसिएण तेल्लेण वा० लोद्धेण वा० सीओदगवियडेण जाव सा०।१५-१७। जे णवए मे पडिग्गहे इतिकटु एवं दो गमा भाणियव्वा ।। जे० सुब्भिगंधे पडिग्गहे लद्धे इतिकटु० बहुदेवसिएण सीओदगवियडेण वा जाव सा०।१८-२३। जे नो नवए सुब्भिगंधेणवि दो चेव गमा । जे दुब्भिगंधे पडिग्गहगे लद्धेत्ति० दुब्भिगंधेण दो चेव गमा णेयव्वा १७४।२४-२९। जे भिक्खू अणन्तरहियाए पुढवीए जाव जीवपतिढ़िते सअंडे जाव ससंकमणंसि चलाचले सपडिग्गहगं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा आया० पयावंतं वा सा०।३०-४०॥ एवं जे० कुलियंसि वा जाव लेलुयंसि वा सपडिग्गहगं आया० पया० साइ०।४१। जे० खंधंसि जाव पासायंसि वा अन्नयरंसि वा अंतरिक्खजायंसि सपडि० १७९' ।४२१० पडिग्गहाओ पुढवीकायं आउकायं तेउकायं नीहरइ नीहरावेइ नीहरियं आहटु देजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहंतं वा सा०1४३।० कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा०1४४० ओसहिबीयाइं०।४५/० तसपाणजायं० १९५' १४६। जे भिक्खू पडिग्गहगं णिक्कोरेइ णिक्कोरावेइ णिक्कोरियं आहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ पडिगाहंतं वा सा० '२००।४७। जे भिक्खू नायगं वा अनायगंवा उवासगंवा अणुवासगंवा गामन्तरंसि वा गामपहन्तरंसि वा पडिग्गहगं ओभासिय २ जायइ जाय॑तं वा सा०1४८० अणुवासगंवा परिसामज्झाओ उठ्ठवेत्ता० २१३१४९ जे भिक्खू पडिग्गहगनीसाए उडुबद्धं वसइ वसंतं वा सा०।५०० वासावासं० २१७' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं उग्गाइयं |५१॥ चउद्दसमो उद्देसओ १४॥★★★जे भिक्खू भिक्खूणं आगाढं वयइ वयंतं वा सा०।११ एवं फरूसं०।२। आगाढफरूसं०।३।० अन्नयरीए अच्चासायणाए अच्चासाएइ २।४। जे भिक्खू सचित्तं अम्बं भुञ्जइ भुंजंतं वा सा०५/० विडसइ विडसंतं वा सा०६० सचित्तं अम्बं वा अम्बपेसिं वा अम्बभित्तं वा अम्बसालगं वा अम्बडालगं वा अम्बचोयगं वा भुञ्जइ मुंजतं वा सा०1७1० विडसइ विडसंतं वा सा०1८1० सचित्तपइढ़ियं अम्बं भुञ्जइ०, एवं सचित्तपतिठ्ठिएणवि चत्तारि आलावगा णेयव्वा २५८' ।९-१२। जे भिक्खु अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पाए आमज्जावेज वा पमज्जावेज वा आ० प० सा० एवं तइयउद्देसगमओ णेयव्वो जाव सीसदुवारियं. जे गामाणुगामं दुइज्जमाणे अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो सीसदुवारियं कारवेइ कार० सा०।१३-६५। जे भिक्खु आगन्तारेसुवा जाव महागिहंसि वाउच्चारपासवणं परिवेइ परिठ्ठवंतं वासा० २६८।६६-७४ाजे भिक्खुअन्नउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा असणं वा० देइ देंतं वा सा०७५/० पडिच्छइ पडिच्छंतं वा सा०७६/० वत्थं वा पडिम्गहं वा कंबलं वा पायपुञ्छणं वा देइ देंतं वा सा०७७/० पडिच्छइ पडिच्छंतं वा सा० ७८। जे भिक्खू पासत्थस्स असणं वा० देइ देंतं वा सा० पडिच्छति पडि० सा०, वत्थं वा जाव पायपुञ्छणं वा देति देंतं वा सा० वत्थं वा पड़िच्छइ प० सा०।७९-८२। एवं ओसन्नस्स।८३-८६। कुसीलस्स।८७-९०। नितियस्स।९१-९४॥ संसत्तस्स ३०४।९५-९८। जे भिक्खू जायणावत्थं वा निमन्तणावत्थं वा अजाणिय अपुच्छियं अगवेसिय पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेन्तं वा साइज्जइ, से य वत्थे चउण्हं अन्नयरे सिया तंजहा-निच्चनियंसणिए मज्जणिए श्री आगमगणमंजूषा - १३५८4959555555555555555555555OOK GQ明明明明听听听听听听听听听听听乐明明明明明明明明明明明明明明垢垢垢年历斯蛋蛋明明明明明明明听听$250 For Personli Qaly newvipipelipaye SnEducation International 2010-03 Yornफफफ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] (३४) निसीह छेयसुत्तं उ. १५, १६, १७ छणुस्सविए रायदुवारिए ‘३९४' | ९९| जे भिक्खू विभूसापडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा आ० प० साति०. एवं तइयउद्देसगमेण जाव जे गामागामं दूइज्माणे विभूसापडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा० सा० । १००-१५२।० वत्थं वा पडिग्गहं वा कॅम्बलं वा पायपुञ्छणं वा अन्नयरं वा उवगरणजायं धरेइ धरंतं वा सा० । १५३।० धोवइ धोवंतं वा सा० '३९८' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं उग्घाइयं । १५४ ☆☆☆11 पण्णरसमो उद्देसओ १५॥ ★★★ जे भिक्खू सागारियं सेज्जं उवागच्छइ उ० सा० '१३३' । १० सउदगं सेज्जं अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा० '२५६' ।२।० सागणियं से० ‘२९३' | ३|० सचित्तं उच्छं भुंजइ एवं पन्नरसमे उद्देसे अंबस्स जहा गमो सो चेव इहंपि णेयव्वो ।४|० विडसइ० | ५|० सचित्तं अन्तरूच्छ्रयं वा उच्छुखंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडालगं वा भुंजइ० |६|० विडसइ० |७|० सचित्तपइठ्ठियं उच्छं भुंजइ०, विडसइ०, अंतरूच्छ्रयं० ‘२९६’।८-११।० आरण्णगाणं वर्णवयाणं अडवीजत्तासंपठ्ठियाणं असणं वा० पडिगाहेइ पडि० सा० '३०३ | १२|० वुसराइयं अवसराइयं वयइ वयंतं वा सा० | १३|० अवसु० वसु० ‘४७७’।१४।० वुसराइयाओ गणाओ अवसराइयं गणं संकमइ संकमंतं वा सा० । १५/० वुग्गहवक्कंताणं असणं वा० देइ देतं वा सा० | १६ |० पडिच्छर पडिच्छंतं वा सा० | १७/० एवं वत्थं वा पडिग्गहं वा कम्बलं वा पायपुञ्छणं वा देइ देतं वा सां० | १८३० पडिच्छइ पडि० सा० | १९| एवं वसहिवि दोहिं गमएहिं, देइ०|२०|पडिच्छइ०|२१|० अणुपविसइ० | २२|० सज्झायं देइ देतं वा सा० | २३|० सज्झायं पडिच्छइ पडि० सा० '४९६ | २४|० विहं (अडविं) अणेगाहगमंणिज्जं अभिसंधारेइ अभि० सा० '५८४ | २५/० विरूवरूवाइं दस्सुगायायणाई अणारियाई मिलक्खुइं पच्चिन्तियाइं सति लाढे विहाराए संथरमाणेसु संघरणिज्जेसु जणवएसु विहारपडियाए अभि० '६१६' | २६/० दुगुञ्छियकुलेसु असणं वा० पडिगाहेइ पडिगाहंतं वा सा०।२७/० वत्थं वा पडिग्गहं वा कम्बलं वा पायपुञ्छणं वा०|२८|० वसहिं०।२९।० सज्झायं उद्दिसइ उद्दिसंतं वा सा०|३०|० वाएइ वा० वा सा० । ३१।० पडिच्छइ पपडि० वा सा०|३२|० असणं वा० पुढवीए निक्खिवइ नि० वा सा०|३३|० संथारए० । ३४।० वेहासे० '३२८' | ३५० अन्नउत्थीहिं वा गारत्थीहिं वा सद्धिं भुंजइ भुंजंतं वा सा० । ३६।० आवेढियपरिवेढिए भुंजइ भु० वा सा० ‘६३८’|३७|० आयरियउवज्झायाणं सेज्जासंथारगं पाएणं संघट्टेत्ता हत्थेण अणणुन्नवेत्ता धारयमाणे गच्छ गच्छंतं वा सा० ६४२|३८|० पमाणइरित्तं वा गणणाइरित्तं वा उवहिं धरेइ धरतं वा सा० '७४७ । ३९।० अनन्तरहियाए पुढवीए चलाचले उच्चारपासवणं परिठ्ठवेइ परिठ्ठवंतं वा सा० (जाव खंधंसि०) '७४९' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं उग्घाइयं । ४०-५०★★★ ॥ सोलसमो उद्देसओ | १६ ||★★★ जे भिक्खू कोऊलहल्लपडियाए अन्नयरं तसपाणजायं तणपासएण वा जाव सुत्तपासएण वा बंधइ बंधतं वा सा०|१|० बद्धेल्लगं वा मुयइ मुयंतं वा सा०|२|० तणमालियं वा जाव हरियमालियं वा पिणद्धइ० करेइ करेंतं वा सा० धरेइ ध० वा० '८'।३-५१० अयलोहाणि वा जाव सुवण्णलोहाणि वा करेइ करेंतं वा सा० धरेइ धरतं वा सा० '१०२१६-८०० हाराणि वा जाव सुवण्णसुत्ताणि वा क० ध० परिभुञ्जइ प० सा० ११ १९ ११० आइणाणि वा जाव आभरणविचित्ताणि वा करेस करेंतं वा सा० धरेइ ध० सा० परिभुंजइप० सा० ‘१४’।१२-१४। जा निग्गन्धी निग्गन्थस्स पाए अन्नउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा एवं ततिओद्देसगमेण णेयव्वं जाव जा निम्गत्थी निग्गन्थस्स गामाणुगामं दुइज्नमाणस्स अन्न० गार० सीसदुवारियं कारवेइ०।१५-६७। जे निग्गन्धे निग्गन्थीए पाए अन्नउत्थिणीए वा गारत्थिणीए वा आमज्जिज्ज वा जाव सा० एवं मग्गिल्लगमयसरिसं णेयव्वं जाव निग्गन्थीए गामाणुगामं दूइज्जमाणीए अन्न० गा० सीसदुवारियं कारवेइ० '२८'।६८-१२० । जे निग्गन्थे निग्गन्थस्स सरिसगस्स सन्ते ओवासे अन्ते आवासं न देइ नदेतं वा सा० । १२१ । जा निग्गन्थी निग्गन्थीए सरिसियाए जाव साइज्जइ '४६ ११२२ । जे भिक्खू मालोहडं असणं वा० देज्जमाणं पडिग्गाहेइ प० सा०।१२३|० कोठ्ठाउतं असणं वा० उक्कुज्जिय निकुज्जिय० । १२४|० मट्टिओलित्तं असणं वा० उब्भिंदिय निब्भिंदिय० '५५ । १२५ । जे भिक्खू असणं वा० अन्नयरं पुढवीपइठ्ठियं पडिग्गाहेइ० । १२६ । एवं आउप० । १२७। तेउप०।१२८। वणस्सइकायप० '६२।१२९| जे भिक्खू अच्चसिणं असणं वा० सुप्पेण श्री आगमगुणमंजूषा १३५९ फ्र KOKA Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) निसीह छेयसुत्त उ. १७,१८,१९ [१३] $$$ $ $$20 MOOCx明乐乐听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听FO वा विहुणेण वा तालियण्टेण वा पत्तेणं वा पत्तभङ्गेण वा साहाए वा साहाभङ्गेण वा पेहणेण वा पेहूणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा फुमित्ता वा वीइत्ता वा आहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ प० सा०।१३०० असणं वा० उसिणुसिणं पडिगाहेइ प० सा०।१३१/० उस्सेयणं वा संसेयणं वा चाउलोदगं वा वारोदगं वा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा भुसोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा अम्बकञ्जियं वा सुद्धवियडं वा अहुणाधोयं अणंबिलं अपरिणयं अवक्कन्तजीवं अविद्धत्थं पडिग्गाहेइ प० सा० '७४।१३२०० अप्पणो आयरियत्ताए लक्खणाई वागरेइ वागरंतं वा सा० ८४।१३३।० गाएज्ज वा वाएज वा नच्चेज वा अभिणएज्ज वा हयहेसियं हत्थिगुलगुलाइयं उक्कुठ्ठसीहनायं वा करेइ करतं वा सा०।१३४० भेरीसद्दाणि वा पडह० वा मुख० वा मुइंग० वा एवं नंदि० वा झल्लरि० वा वल्लरि० वा डमरूग० वा मड्डय० वा सदुय० वा पएस० वा गोलुइ० वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि वितयाणि सद्दाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अ० सा० बारसमउद्देसगमेण णेयव्वं ।१३५/० वीणासहाणि वा विपश्चि० वा तूण० वा वव्वीसग० वा वीणाइय० तुंबवीणा० वा झो (पों) इय० वा ढंकुणस० वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि वितयाणि सद्दाणि०।१३६।० तालसदाणि वा कंसताल० वा लत्तिय० वा गोहिय० वा मकरिय० वा कच्छभि० वा महइ० वा सणालिया० वा वा वालिया० वा अन्नयराणि सा तहप्पगाराणि झसिराणि०।१३७० संखसहाणि वा वंस० वा वेणु० वा खरमुहि० वा परिलि० वा वेच्चा० वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि झसिराणि० ९३।१३८० वप्पाणि वा फलिहाणि वा जाव इह (पर) लोइएसु वा सद्देसु जाव अज्झोववज्जेमाणं वा सा० ९४' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं उग्घाइयं ।१३९-१५१ ॥ सत्तरसमो उद्देसओ।१७||* * जे भिक्खू अणछाए नावं दुरूहइ दुरू० सा०।१।० नावं किणइ किणावेइ कीयमाहटु दिज्जमाणं दुरूहइ दुरूहंतं वा सा० एवं जो चोद्दसमे उद्देसे परिग्गहगमो सोणेयव्वो जाव अच्छेज्जं, णवरं दुरूहतित्ति भणियव्वं ।२-५/० थलाओ नावं जले ओकसावेइ ओ० सा०६/० जलाओ नावं थले उक्कसावेस उक्क० सा०1७10 पुण्णं नावं उस्सिञ्चइ उ० सा०1८1० सन्नं नावं उप्पिलावेइ उप्पि० सा०।९।० पडिणावियं कटु नावाए दुरूहइ दु० सा०।१०० उड्ढगामिणिं वा नावं अहोगामिणिं वा नावं दुरूहइ दु० सा०।११।० जोयणवेलागामिणिं वा अद्धजोयणवेलागा० वा नावं दु० दु० सा०।१२।० नावं आकसावेइ ओकसावेइ खेवावेइ रज्जुणा वा कड्ढइ०।१३।० नावं आलित्तएण वा पप्फिएण वा वंसेण वा वलेण वा वाहेइ वा० वा०।१४०० नावाओ उदगं भायणेण वा पडिग्गहेण वा मत्तेण वा नावाउस्सिचणेण वा उस्सिञ्चइ उ० सा०।१५/० नावं उत्तिंगेण उदगं आसवमणिं उवरूवरि कज्जलमाणिं पेहाय हत्थेण वा पाएण वा आसत्थपत्तेण वा कुसपत्तेण वा मट्टियाए चेलकण्णेण वा पडिपीहेइ प० सा०।१६।० नावागओ तावागयस्स असणं वा० पडिगाहेइ प० सा० ३०' एतेण गमेण णावागओ जलगतस्स णावागतो पंकगयस्स णावागतो थलगतस्स, एवं जलगएणवि चत्तारि पंकगएणवि चत्तारि थलगएणविचक्षारि गमाणेयव्वा ।१७-३२।० वत्थं किणइ किणावेइ कीयमांहटू दिज्जमाणं पडिग्गाहइ प० सा-, एवं चोद्दसमे उद्देसे पडिग्गहए जो गमो भणिओ सो चेव इहंपि वत्येण णेयव्वो जाव वासावासं संवसइ संव० सा० नवरं णिक्कोरणं नत्थि '३१' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं उग्घाइयं ।३३-८८ ॥ अठ्ठादसमो उद्देसओ।१८॥★★★जे भिक्खू वियर्ड किणइ किणावेइ कीयं आहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ प० सा०।१। एवं पामिच्चेति पामिच्चावेति पामिच्चियमिति०।२।० परिवट्टति परियट्टावेति परियट्टियमिति०।३।० अच्छेज्जं अनिसट्ठ अभिहडं०।४। जे भिक्खू गिलाणस्सऽठाए परं तिण्हं वियडदत्तीणं पडिग्गाहेइ प० सा०।५/० वियडं गहाय गामाणुगामं दुइज्जइ दू० सा०।६।० वियडं गालेइ गालावेइ गालियं० २६१७/० चउहिं संझाहिं सज्झायं करेइ करेंतं वा सा० तं०-पुव्वाए संझाए पच्छिमाए संझाए अवर (मज्झ) ण्हे अड्ढरत्ते।८।० कालियसुयस्स परं तिण्हं पुच्छाणं पुच्छइ पु० सा०।९।० दिठ्ठिवायस्स परं सत्तण्ह पुच्छाणं पुच्छ पु० सा० '३६।१०।० चउसु महामहेसु सज्झायं करेइ करेंत वा सा० तं-इन्दमहे खंदमहे जक्खमहे भूयमहे ।११। चउसु महापाडिवएसु सज्झायं करेइ करेंतं वा सा० तं० - सुगिम्हियापाडिवए आसाढीपा० भद्दवय (इन्दमह) पा० कत्तियपा०।१२।० पोरिसिं सज्झायं उवाइणावेइ उवा० सा०।१३।० GO乐乐乐所听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听纸明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听 xoros55555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १३६० ॥ 5555555555555555556IOR Page #23 --------------------------------------------------------------------------  Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ છ છેદ સૂત્ર ઃ ગુરુ શિષ્યને પ્રાયશ્ચિત આપી રહ્યા છે. छह छेद सूत्र : गुरु शिष्य को प्रायश्चित दे रहे हैं। Six Cheda-Sutras : A Preceptor Instructing expiatory rites to a disciple. Live uses a Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TIO फ फफफफम रहा निसाह छयसुत्त उरररर - - 乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐场乐乐听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐%5D चाउक्कालं सज्झायं करेइ नक० सा० 46 / 1410 असज्झाइए सज्झायं करेइ क० सा०१५/० अप्पणो असज्झाइए सज्झायं करेइ क० सा० 152 / 16/0 हेछिल्लाई समोसरणाई अवाएत्ता उवरिल्लाइं समोसरणाइं वा० वा० वा सा०।१७/० नव बंभचेराइं अवाएत्ता उवरिमसुयं वाएइ वा वा० सा०'१६९।१८० अवत्तं वाएइ वा० सा०।१९/० वत्तं न वाएइ नवा० सा०२०/० अपत्तं वाएइवा० सा०२११० पत्तं न वाएइनवा० सा०२१५॥२२दोण्हपि सरिसगाणं एवं संचिक्खावेइ एक्वं न संचिक्खावेइ एक्कं वाएइ एक्कं न वाएइ नवा० सा० २२१।२३/०आयरियउवज्झाएहिं अविदिन्नं गिर आइयइ आइ० सा०।२४१० अन्नउत्थियं वा गारत्थियं वा वाएइ वा० वा सा०।२५/० पडिच्छइ प० सा०२६।० एवं पासत्थं / 27-28 / ओसन्नं / 29-30 / कुसीलं / 31-32 / नितियं / 33-34 / संसत्तं '243' तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं उग्घाइयं / 35-36*** // एगुणवीसइमोउद्देसओ१९||*जे भिक्खूमासियं परिहारठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं पलिउंचियं आलोएमाणस्सदोमासियं, एवं ववहारपढमुद्देसगमो णेयव्वो जावदस गमा समत्ता एगत्तसोबहुत्तसोवि जाव सव्वमेवं सकयं एगओ साहणित्ता जाए य पठ्ठवणाए पठ्ठविए निव्विसमाणए पडिसेविज्जा सावि कसिणा तत्थेव आरूहेयव्वा सिया 309 / 1-2200 छम्मासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारठ्ठाणं (240) पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसइराइया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअटुं सहेर्ड सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं सवीसइराया दो मासा / 23 / 0 पञ्चमासियं० एवं चाउम्मासियं० एवं तेमासियं० एवं सोमासियं० मासियावि० जाव सवीसराझ्या दो मासा / 24-280 सवीसराइयं दोमासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे० तेण परं दसराया तिण्णि मासा / 29 / 0 सदसरायतेमासियं परिहारठ्ठाणं जाव तेण परं चत्तारि मासा।३०१० चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं जाव तेण परं सवीसराइया चत्तारि मासा / 31 / 0 सवीसराइयं चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं जाव तेण परं सदसराया पञ्च मासा / 32 / 0 सदसरायं पञ्चमासियं परिहारठ्ठाणं जाव तेण परं छम्मासा / 33 / 0 छम्मासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे अन्तरा मायिसं परिहारठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअठ्ठ सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं दिवड्ढो मासो / 34 / 0 एवं पञ्चमासियं चाउम्मासियं तेमासियं दोमासियं मासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे० दिवड्ढो मासो।३५-३९० दिवड्ढमासियं परिहारठ्ठाणं पठविए अणगारे अंतरा मासियं० दो मासा / 40 / दोमासियं परिहरठ्ठाणं पठविए अणगारे० अड्ढाइज्जा, एवं एत्तो पक्खे 2 आरोवेयव्वो जाव छम्मासा पुण्णत्ति / 41 / (०दोमासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए जाव तेणं परं अड्ढाइज्जा मासा / 4110) अड्ढाइज्जमासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे० तिण्णि मासा / 4220 तेमासियं परिहारठ्ठाणं पठविए अणगारे० अद्धठ्ठा मासा / 43 / 0 अद्भुठ्ठमासियं परिहारठ्ठाणं पठविए अणगारे० चत्तारि मासा / 440 चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं पठविए अणगारे० अड्ढपञ्च मासा / 450 अड्ढपञ्चमासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे० पञ्च मासा / 46 / 0 पञ्चमासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे० अद्धछठ्ठ मासा / 47/0 अद्धछठ्ठमासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे० छम्मासा / 480 दोमासियं परिहारठ्ठाणं पठविए अणगारे अन्तरा मासियं परिहारठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरावणा जाव तेण परं अड्ढाइज्जामासा।४९/० अड्ढाइज्जमासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे अन्तरादोमासियं परिहारठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसइराइया आरोवणा० तेण परं सपञ्चराया तिण्णि मासा / 50 सपञ्चरायं तेमासियं परिहारठ्ठाणं पठविए अणगारे अन्तरा मासियं परिहारठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा जाब तेण परं सवीसइराया तिण्णि मासा / 51 / सवीसइरायं तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविओ अणगारे अन्तरा दोमासि परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसइराइया आरोवणा० तेण परं सदसराया चत्तारि मासा / 52 / सदसरायं चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं पठविए अणगारे अन्तरा मासियं परिहारठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएजजा अहावरा पक्खिया आरोवणा० तेण परं पञ्चूणा पञ्च मासा / 53 / पथूणं पञ्चमासियं परिहारठ्ठाणं पविए अणगारे अन्तरा दोमासियं परिहारठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसइराइया आरोवणा० तेणं परं अद्धछठ्ठा मासा / 54 / अद्धछठे मासियं परिहारठ्ठाणं पठ्ठविए अणगारे अन्तरा मासियं परिहारठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा० तेण परं छम्मासा 369 / 55/ उपसंहार: '425 // श्रीनिशीथच्छेदसूत्रं 1 xexc$$$$$$$$$$$$$5 श्री आगमगुणमंजूषा - 13614 5 55555555555555555555E6NOR NO$乐乐乐乐乐乐编织乐乐乐乐垢乐乐所乐乐蛋蛋乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐开乐22 - thet isimony