Book Title: Agam 30A Gacchayaro Sattamam Painnayam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003759/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स पू. आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः गच्छायारो-सत्तमं पइण्णयं मुनि दीपरत्नसागर Date: ।। 2012 Jain Aagam Online Series-30/1 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०/१ गंथाणुक्कमो कमको विसय सुत्तं गाहा अणुक्कमो | | पिट्ठको मंगलं-आई ३-६ 3-६ गच्छ संवसमाणस्सगुणा सूरि-सरूवं-वण्णणं ७-४० ७-४० गुरू सरूवं-वण्णणं ४१-१०६ ४१-१०६ अज्जा सरूवं-वण्णणं १०७-१३४ १०७-१३४ १३४-१३७ | १३४-१३७ उपसंहार [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [1] [३०|१|गच्छायारो] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः नमो नमो निम्मलदंसणस्स ॐ ह्रीं नमो पवयणस्स ३०/१ | गच्छायारं - सत्तमं पइण्णयं-१ | [१] नमिऊण महावीरं तियसिंदनमंसियं महाभागं । गच्छायारं किंची उद्धरिमो सुयसमुद्दाओ || [२] अत्थेगे गोयमा ! पाणी, जे उम्मग्गपइटिठए । गच्छंमि संवसित्ताणं, भमई भवपरंपरं ।। [३] जामद्धं जाम दिन पक्खं, मासं संवच्छरं पि वा । समग्गपट्ठिए गच्छे, संवसमाणस्स गोयमा [४] लीला अलसमाणस्स, निरुच्छाहस्स वीमणं । पिक्खविक्खाइ अन्नेसिं, महानुभागाणं साणं [५] उज्जमं सव्वथामेसु, घोरं वीर-तवाइयं । लज्जं संकं अइकम्म, तस्स विरियं समुच्छले ।। [६] वीरिएणं तु जीवस्स, समुच्छलिएणं गोयमा जम्मतरकए पावे, पाणी मुहुत्तेण निद्दहे ।। [७] तम्हा निउणं निहाले, गच्छं सम्मग्गपठियं । वसिज्ज तत्थ आजम्म, गोयमा ! संजए मुनी [८] मेढी आलंबनं खंभ, दिठी जाणं सुउत्तमं । सूरी जं होइ गच्छस्स, तम्हा तं तु परिक्खए ।। [९] भयवं ! केहिं लिंगेहिं, सूरिं उम्मग्गपट्ठियं वियाणिज्जा छउमत्थे, मुनी ! तं मे निसामय ।। [१०] सच्छंदयारिं दुस्सीलं, आरंभेसु पवत्तयं । पीढयाइ पडीबद्ध आठक्काय विहिंसगं [११] मूलुत्तरगुणब्भळं सामायारी विराहयं । अदिन्नालोयणं निच्चं, निच्चं विगहपरायणं ।। [१२] छत्तीसगुणसमन्नागएण तेण वि अवस्स दायव्वा । परसक्खिया विसोही सुठु वि ववहार-कुसलेणं ।।। [१३] जह सुकुसलोऽवि विज्जो अन्नस्स कहेइ अत्तणो वाहिं । विज्जुवएसं सुच्चा पच्छा सो कम्म-मायरइ ।। [१४] देसं खित्तं तु जाणिता, वत्थं पत्तं उवस्सयं । संगहे साहुवग्गं च, सुत्तत्थं च निहालई ।। [१५] संगहोवग्गहं विहिणा, न करेइ य जो गणी । समणं समणिं तु दिक्खित्ता, सामायारिं न गाहए || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [2] [३०|१|गच्छायारो] Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१६ ? || [१६] बालाणं जो 3 सीसाणं, जीहाए उवलिंपए | न सम्मं मग्गं गाहेइ, सो सूरी जाण वेरिओ || [१७] जीहाए विलिहंतो न भद्दओ सारणा जहिं नत्थि । दंडेण वि ताडंतो स भद्दओ सारणा जत्थ ।। [१८] सीसोऽवि वेरिओ सो उ, जो गुरुं न विबोहए | पमाय-मइराघत्थं, सामायारी विराहयं ।। [१९] तुम्हारिसावि मुनिवर ! पमायवसगा हवंते जइ पुरिसा | तेण को अन्नो अम्हं आलंबन हुज्ज संसारे [२०] नाणंमि दंसणम्मि य चरणमि य तिसु वि समयसारेसु । चोएइ जो ठवेठं गणमप्पाणं य सो य गणी ।। [२१] पिंडं उवहिं च सिज्जं उग्गम-उप्पायणे-सणासुद्धं । चारित्तरक्खणट्ठा सोहिंतो होइ स चरित्ती ।। [२२] अपरिस्सावी सम्म समपासी चेव होइ कज्जेसु । सो रक्खड़ चक्खू पि व सबाल-वुड्ढाउलं गच्छं ।। [२३] सीयावेइ विहारं सुहसीलगुणेहिं जो अबुद्धीओ । सो नवरि लिंगधारी संजमजोएण निस्सारो ।। [२४] कुल-गाम-नगर-रज्जं पयहिअ जो तेस् कुणइ अ ममत्तं । सो नवरि लिंगधारी संजमजोएण निस्सारो [२५] विहिणा जो उ चोएड. सत्तं अत्थं च गाहए । सो धन्नो सो य पुण्णो य, स बंधू मोक्खदायगो ।। [२६] स एव भव्व-सत्ताणं, चक्खुभूए वियाहिए । दंसेइ जो जिणुद्दिठें, अनुट्ठाणं जहट्ठियं ।। [२७] तित्थयरसमो सूरी सम्मं जो जिनमयं पयासेइ । आणं अइक्कमंतो सो कापुरिसो न सप्पुरिसो [२८] भट्ठायारो सूरी भट्ठायारानुवेक्खओ सूरी | उम्मगठिओ सूरी तिन्नि वि मग्गं पणासंति ।। [२९] उम्मग्गठिए सम्मग्गनासए जो य सेवए सूरी | नियमेणं सो गोयम ! अप्पं पाडेइ संसारे ।। [३०] उम्मग्गठिओ एक्कोऽवि नासए भव्वसत्तसंघाए । तं मग्गमनुसरंते जह कुत्तारो नरो होइ ।। [३१] उम्मग्ग-मग्ग-संपट्ठियाण सूरीण गोयमा संसारो य अनंतो होइ य सम्मग्गनासीणं ।। [३२] सुद्धं सुसाहुमग्गं कहमाणो ठवइ तइयपक्खंमि । अप्पाणं इयरो पुण गिहत्थधम्माओ चुक्कोत्ति ! नूनं । [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [3] [३०|१|गच्छायारो] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३३ [३३] जइ वि न सक्कं काउं सम्मं जिनभासियं अनुट्ठाणं । तो सम्म भासिज्जा जह भणियं खीणरागेहिं [३४] ओसन्नोऽवि विहारे कम्मं सोहेइ सुलभबोही य । चरण-करणं विसुद्धं उववूहिंतो परूवितो ।। [३५] सम्मग्ग-मग्ग-संपट्ठियाण साहूण कुणइ वच्छल्लं । ओसह-भेसज्जेहि य सयमन्नेणं तु कारेइ ।। [३६] भूए अत्थि भविस्संति केई तेलुक्क नमिय-कमजुयला | जेसिं परहिय-करणेक्क-बद्धलक्खाण वोलिहिइ कालो || [३७] तीयाणागयकाले केई होहिंति गोयमा .! सूरी । जेसिं नामग्गहणे वि हुज्ज नियमेण पच्छित्तं [३८] जओ-सयरीभवंति अणवेक्खयाइ जह भिच्च-वाहणा लोए । पडिपुच्छाहिं चोयण तम्हा 3 गुरू सया भयइ ।। [३९] जो उ प्पमायदोसेणं, आलस्सेणं तहेव य । सीसवग्गं न चोएइ, तेण आणा विराहिया ।। [४०] संखेवेण मए सोम्म !, वणियं गुरुलक्खणं | गच्छस्स लक्खणं धीर !, संखेवेणं निसामय ।। [४१] गीयत्थे जे सुसंविग्गे, अनालस्सी दढव्वए । अक्खलिय-चरिते सययं, राग-द्दोसविवज्जए || [४२] निट्ठविय अट्ठमयट्ठाणे, सोसिय कसाए जिइंदिए । विहरिज्जा तेण सद्धिं तु, छउमत्थेण वि केवली ।। [४३] जे अणहिय-परमत्था, गोयमा ! संजया भवे | तम्हा ते 3 विवज्जिज्जा, दोग्गई पंथदायगे || [४४] गीयत्थस्स 3 वयणेणं, विसं हालाहलं पिबे | निव्विकप्पो य भक्खिजा, तक्खणं जं समुद्दवे ।। [४५] परमत्थओ विसं नो तं, अमयरसाणं खु तं । निविग्घं जं न तं मारे, मओ वि अमयस्समो [४६] अगीयत्थस्स वयणेणं, अमयंपि न घुटए । जेण नो तं भवे अमयं, जं अगीयत्थ-देसियं [४७] परमत्थओ न तं अमयं विसं हालाहलं खु तं । न तेण अजरामरो हज्जा, तक्खणा निहणं वए || [४८] अगीयत्थ-कुसीलेहिं, संगं तिविहेण वोसिरे । मुक्खमग्गस्सिमे विग्धं, पहमी तेणगे जहा ।। [४९] पज्जलियं हुयवहं दटुं, निस्संको तत्थ पवेसिठं । अत्ताणं निद्दहिज्जाहि, नो कुसीलस्स अल्लिए ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [4] [३०|१|गच्छायारो] Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-५० ॥ - - ॥ [५०] पजलंति जत्थ धगधगस्स गुरूणावि चोइए सीसा । राग-द्दोसेण वि अनुसएणं तं गोयम __! न गच्छं [५१] गच्छो महानुभावो तत्थ वसंताण निज्जरा विउला । सारण-वारण-चोयणमाईहिं न दोसपडिवत्ती [५२] गुरुणो छंदणुवित्ती सुविनीए जियपरीसहे धीरे । नवि थद्धे नवि लुद्धे नवि गारविए न विगहसीले ।। [५३] खंते दंते गुत्ते मुते वेरग्ग-मग्ग-मल्लीणे । दसविह-सामायारी - आवस्सग संजमुज्जुत्ते ।। [५४] खर-फरुस-कक्कसाएऽनिट्ठदुट्ठाए निठुरगिराए । निब्भच्छण निद्धाडणमाईहिं न जे पठस्संति ।। [५५] जे य न अकित्तिजणए नाजसजणए नऽकज्जकारी य । न पवयण-उड्डाहकरे कंठग्गय-पाणसेसेऽवि [५६] गुरूणा कज्जमकज्जे खर-कक्कस-दुट्ठ-निठुरगिराए । भणिए तहत्ति सीसा भणंति तं गोयमा ! गच्छं [५७] दूरुज्झिय पत्ताइसु ममत्तए निप्पिहे सरीरेऽवि । जायम-जायाहारे बायालीसेसणा-कुसले ।। [५८] तंपि न रूव-रसत्थं न य वण्णत्थं न चेव दप्पत्थं । संजमभर-वहणत्थं अक्खोवंगं व वहणत्थं ।। [५९] वेयण वेयावच्चे ईरियठाए य संजमाए | तह पाणवत्तियाए छठें पुण धम्मचिंताए || [६०] जत्थ य जेट्ठ-कनिट्ठो जाणिज्जइ जेट्ठवयण-बहुमानो । दिवसेण वि जो जेट्ठो न हीलिज्जइ स गोयमा ! गच्छो [६१] जत्थ य अज्जाकप्पं पाणच्चाए वि रोरदब्भिक्खे । न य परिभुंजइ सहसा गोयम ! गच्छं तयं भणियं ।। [६२] जत्थ य अज्जाहिं समं थेरा वि न उल्लविंति गयदसणा | न य झायंती थीणं, अंगोवंगाई तं गच्छं [६३] वज्जेह अप्पमत्ता अज्जासंसग्गि अग्गि-विससरिसं | अज्जानुचरो साहू लहइ अकित्तिं खु अचिरेण [६४] थेरस्स तवस्सियस्स व बहुस्सुयस्स व पमाणभूयस्स । अज्जा-संसग्गीए जन-जंपणयं हविज्जा हि ।। [६५] किं पुन तरूणो अबहुस्सुओ य न य वि हु विगिट्ठतवचरणो । अज्जा-संसग्गीए जन-जंपणयं न पाविज्जा ? || [६६] जइ वि सयं थिरचित्तो तहा वि संसग्गिलद्धपसराए । अग्गिसमीवे व घयं विलिज्ज चित्तं खु अज्जाए ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [5] [३०|१|गच्छायारो] Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-६७ [६७] सव्वत्थ इत्थिवग्गंमि अप्पमत्तो सया अवीसत्थो । नित्थरइ बंभचेरं तविवरीओ न नित्थरइ ।। [६८] सव्वत्थेसु विमुत्तो साहू सव्वत्थ होइ अप्पवसो | सो होइ अणपव्वसो अज्जाणं अनुचरंतो 3 ।। [६९] खेलपडियमप्पाणं न तरइ जह मच्छिआ विमोएउं । अज्जानुचरो साहू न तरइ अप्पं विमोएउं ।। [७०] साहुस्स नत्थि लोए अज्जासरिसी हु बंधणो उवमा | धम्मेण सह ठवेंतो न य सरिसो जाण असिलेसो || [७१] वायामित्तेण वि जत्थ भट्ठचरित्तस्स निग्गहं विहिणा | बहुलद्धिजुयस्सा वि कीरइ गुरुणा तयं गच्छं [७२] जत्थ य सन्निहि-उक्खड-आहडमाईण नामगहणेऽवि | पूईकम्मा भीया आउत्ता कप्प-तिप्पेसु ।। [७३] मठए नियसहावे हास -दवविवज्जिए विगहमुक्के । असमंजसमकरिते गोअरभूमट्ठ विहरंति ।। [७४] मुणिणो नानाभिग्गह दुक्कर-पच्छित्त-मनुचरंताणं । जायइ चित्तचमक्कं देविंदाणं पि तं गच्छं ।। [७५] पुढवि-दग-अगनि-मारुय वणप्फइ-तसाण-विविहजीवाणं | मरणंते वि न पीडा कीरइ मनसा तयं गच्छं ।। [७६] खज्जरिपत्तमंजेण, जो पमज्जे उवस्सयं । नो दया तस्स जीवेसु, सम्मं जाणाहि गोयमा [७७] जत्थ य बाहिरपाणिस्स बिंदुमित्तं पि गिम्हमाईसु । तण्हा-सोसिय-पाणा मरणेऽवि मुनी न गिण्हंति ।। [७८] इच्छिज्जइ जत्थ सया बीयपएणा वि फासुयं उदयं । आगमविहिणा निठणं गोयम ! गच्छं तयं भणियं ।। [७९] जत्थ य सूलि विसूइय अन्नयरे वा विचित्तमायके | उप्पन्ने जलणुज्जालणाइ न करेइ तं गच्छं ।। [८०] बीयपएणं सारूविगाइ-सडढाइमाइएहिं च । कारिंतो जयणाए गोयम ! गच्छं तयं भणियं || [८१] पुप्फाणं बीयाणं तयमाईणं च विविह दव्वाणं । संघट्टण परियावण जत्थ न कुज्जा तयं गच्छं [८२] हासं खेड्डा कंदप्प नाहियवायं न कीरए जत्थ । धावण-डेवण-लंघण ममकाराऽवण्ण-उच्चरणं ।। [८३] जत्थित्थीकरफरिसं अंतरियं कारणेऽवि उप्पन्ने । दिट्ठीविस दित्तग्गी विसं व वज्जिज्जए गच्छे [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [6] [३०|१|गच्छायारो] Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-८४ = [८४] बालाए वुड्ढाए नतुय दुहियाए अहव भइणीए । न य कीरइ तन्फरिसं गोयम ! गच्छं तयं भणियं || [८५] जत्थित्थीकरफरिसं लिंगी अरिहा वि सयम वि करिज्जा | तं निच्छयओ गोयम ! जाणिज्जा मूलगुण-भट्ठे || [८६] कीरइ बीयपएणं सुत्तमभणियं न जत्थविहिणा छ । उप्पन्ने पुण कज्जे दिक्खा-आयंकमाईए [८७] मूलगुणेहिं विमुक्कं बहुगुणकलियं पि लद्धिसंपन्नं । उत्तमकुलेऽवि जायं निद्धाडिज्जइ तयं गच्छं [८८] जत्थ हिरण्ण-सुवण्णे धन-धन्ने कंस-तंब-फलिहाणं । सयणाण आसणाण य झुसिराणं चेव परिभोगो [८९] जत्थ य वारडियाणं तत्तडियाणं च तह य परिभोगो । मोत्तुं सुक्किल-वत्थं का मेरा तत्थ गच्छम्मि ? || [९०] जत्थ हिरण्ण-सुवण्णं हत्थेण पराणगं पि नो छिप्पे | कारणसमप्पियं-पि हु निमिस-खणद्धं पि तं गच्छं ।। [९१] जत्थ य अज्जालद्धं पडिगहमाई वि विविहमुवगरणं । परिभुजइ साहूहिं तं गोयम ! केरिसं गच्छं [९२] अइदुल्लह-भेसज्ज बल-बुद्धिविवड्ढणं पि पुट्ठिकरं । अज्जालद्धं भुंजइ का मेरा तत्थ गच्छंमि [९३] एगो एगित्थिए सद्धिं, जत्थ चिट्ठिज्ज गोयमा संजईए विसेसेणं, निम्मेरं तं तु भासिमो ।। [९४] दढचारितं मोत्तुं आइज्जं मयहरं च गुणरासिं । एक्को अज्झावेई तमनायारं न तं गच्छं ।। [९५] घनगज्जिय-हयकुहियं विज्जू - दुग्गिज्झ-गूढहिययाओ । अज्जा अवारियाओ इत्थीरज्जं न तं गच्छं [९६] जत्थ समुद्देसकाले साहूणं मंडलीए अज्जाओ । गोयम ! ठवंति पाए इत्थीरज्जं न तं गच्छं ।। [९७] जत्थ मुणीण कसाए जगडिज्जंता वि परकसाएहिं । निच्छंति समुठे सुनिविट्ठो पंगुलो चेव ।। [९८] धम्मंतरायभीए भीए संसार-गब्भवसहीणं । न उईरंति कसाए मुनी मुणीणं तयं गच्छं [९९] कारणमकारणेणं अह कह वि मुणीण उठ्ठिहिं कसाए | उदिए वि जत्थ रूंभेहिं खामिज्जइ जत्थ तं गच्छं ।। [१००] सील-तव-दान-भावना चठविह-धम्मंतराय-भयभीए | जत्थ बहू गीयत्थे गोयम ! गच्छं तयं भणियं -- = [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [7] [३०|१|गच्छायारो] Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१०१ - [१०१] जत्थ य गोयम ! पंचण्ह कह वि सूणाण इक्कमवि हुज्जा | तं गच्छं तिविहेणं वोसिरिय वएज्ज अन्नत्थ ।। [१०२] सूणारंभपवत्तं गच्छं वेसुज्जलं न सेविज्जा | जं चारित्तगुणेहिं तु उज्जलं तं तु सेविज्जा ।। [१०३] जत्थ य मुणिणो कयविक्कयाई कुव्वंति संजमुब्भट्ठा । तं गच्छं गुणसायर ! विसं व दूरं परिहरिज्जा [१०४] आरंभेसु पसत्ता सिद्धंतपरम्मुहा विसयगिद्धा । मोत्तुं मुणिणो गोयम ! वसिज्ज मज्झे सुविहियाणं ।। [१०५] तम्हा सम्म निहाले, गच्छं सम्मग्गपट्ठियं । वसिज्जा पक्ख मासं वा, जावज्जीवं तु गोयम [१०६] खुड्डो वुड्ढो तहा सेहो, जत्थ रक्खे उवस्सयं । तरूणो वा जत्थ एगागी, का मेरा तत्थ भासिमो ? || [१०७] जत्थ य एगा खुड्डी एगा तरूणी उ रक्खए वसहिं । गोयम ! तत्थ विहारे का सुद्धी बंभचेरस्स ? || [१०८] जत्थ य उवस्सयाओ बाहिं गच्छे मुहत्तमित्तंपि । एगा रत्तिं समणी का मेरा तत्थ गच्छस्स ?, || [१०९] जत्थ य एगा समणी एगो समणो य जंपए सोम्म नियबंधुणा वि सद्धिं तं गच्छं गच्छगुणहीनं [११०] जत्थ जयारमयारं समणी जंपइ गिहत्थपच्चक्खं । पच्चक्खं संसारे अज्जा परिक्खिवइ अप्पाणं [१११] जत्थ य गिहत्थभासाहिं भासए अज्जिया सुरुट्ठावि । तं गच्छं गुणसायर ! समण-गुण-विवज्जियं जाण ।। [११२] गणि गोयम ! जा उचियं, सेयं वत्थं विवज्जिऊ | सेवए चित्तरूवाणि, न सा अज्जा वियाहिया ।। [११३] सीवणं तुन्नणं भरणं, गिहत्थाणं तु जा करे । तिल्लउव्वट्ठणं वा वि, अप्पणो य परस्स य ।। [११४] गच्छइ सविलासगई सयनीयं तूलियं सबिब्बोयं । उव्वट्टेड सरीरं सिणाणमाईणि जा कुणइ ।। [११५] गेहेसु गिहत्थाणं गंतूण कहा कहेइ काहीआ । तरूणाइ अहिवडते अनुजाणे सा उ पडिनीया [११६] वुड्ढाणं तरूणाणं रत्तिं अज्जा कहेइ जा धम्म । सा गणिणी गुणसायर ! पडिनीया होइ गच्छस्स [११७] जत्थ य समणीणमसंखडाई गच्छंमि नेव जायंति । तं गच्छं गच्छवरं गिहत्थभासाओ नो जत्थ ।। - - - - [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [8] [३०|१|गच्छायारो] Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-११८ [११८] जो जत्तो वा जाओ नाऽऽलोअइ दिवसपक्खिअं वा वि । सच्छंदा समणीओ मयहरियाए न ठायंति [११९] विंटलिआणि पठंजंति गिलाण सेहीण नेव तिप्पंति । अनगाढे आगाढं करेंति आगाढि अनगाढं || [१२०] अजयणाए पकुव्वंति, पाहुणगाण अवच्छलं | चित्तल्लयाणि अ सेवंति, चित्ता रयहरणा तहा || [१२१] गइ-विब्भमाइएहिं आगारविगार तह पगासिंति । जह वुड्ढाण वि मोहो समुईरइ किं तु तरुणाणं ? || [१२२] बहुसो उच्छोलिंती मुह-नयणे हत्थ-पाय-कक्खाओ । गिण्हेइ रागमंडल सोइंदिय तह य कब्बठे ।। [१२३] जत्थ य थेरी तरूणी य थेरी तरूणी य अंतरे सुयइ । गोयम ! तं गच्छवरं वर-नाण-चरित्त-आहारं ।। [१२४] धोइंति कंठियाओ पोइंति तह य दिति पोत्ताणि | गिहकज्जचिंतगीओ न ह अज्जा गोयमा ! ताओ || [१२५] खर-घोडाइट्ठाणे वयंति ते वा वि तत्थ वच्चंति । वेसत्थी संसग्गी उवस्सयाओ समीवंमि ।। [१२६] छक्कायमुक्कजोगा धम्मकहा विगह पेसण गिहीणं । गिहिनिस्सजं वाहिंति संथवं तह करतीओ ।। [१२७] समा सीस पडिच्छीणं, चोयणासु अनालसा | गणिणी गुणसंप्पन्ना, पसत्थ पुरिसानुगा ।। [१२८] संविग्गा भीयपरिसा य, उग्गदंडा य कारणे । सज्झाय-ज्झाणजुत्ता य, संगहे अ विसारया ।। [१२९] जत्थुत्तर-पडिउत्तर-वडिआ अज्जा 3 साणा सद्धिं । पलवंति सुरुट्ठा वी गोयम ! किं तेन गच्छेण ? || [१३०] जत्थ य गच्छे गोयम ! उप्पन्ने कारणंमि अज्जाओ | गणिणी पिटिठठियाओ भासंती मठय सद्देणं ।। [१३१] माऊए दुहियाए सुण्हाए अहव भइणिमाईणं । जत्थ न अज्जा अक्खड़ गुत्ति विभेयं तयं गच्छं ।। [१३२] दंसणइयारं कुणई चरित्तनासं जणेइ मिच्छतं । दोण्ह वि वग्गेणऽज्जा विहारभेअं करेमाणी ।। [१३३] तं मूलं संसारं जणेइ अज्जा वि गोयमा ! नूनं । तम्हा धम्मुवएसं मोत्तुं अन्नं न भासिज्जा ।। [१३४] मासे मास उ जा अज्जा, एगसित्थेण पारए । कलहे गिहत्थ-भासाहिं, सव्वं तीए निरत्थयं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [9] [३०|१|गच्छायारो] Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१३५ [135] महानिसीह-कप्पाओ, ववहाराओ तहेव य / साहु-साहुणि अट्ठाए, गच्छायारं समुद्धियं / / / [136] पढंतु साहुणो एयं, असज्झायं विवज्जिउं / उत्तमं सुयनिस्संद, गच्छायारं सुउत्तमं / / [137] गच्छायारं सुणित्ताणं, पढिता भिक्खु भिक्खुणी / कुणंतु जं जहा भणियं, इच्छंता हियमप्पणो / / मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादितश्च “गच्छाचारो पड़ण्णयं सम्मत्तं" | गच्छायारो - सत्तमं पइण्णयं सम्मत्तं [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [10] [३०|१|गच्छायारो]