Book Title: Aagam Manjusha 25 Painnagsuttam Mool 02 Aaurpachakhan
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line - आगममंजूषा [२५] आउरपच्चक्खाणं * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर M.Com.M.Ed. Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत १९९८, ई. स. 1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागररिजी म.सा. ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स. 2012, विक्रम संवत २०६८, वीर संवत -२५३८ में वो ही आगम- मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा " नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। मूल आगम- मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * * है। [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४० ) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ निर्युक्ति भी सामिल की गई है| [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम - ३८ ) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है | [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया [४] “ओघनिर्युक्ति”-(आगम-४१ ) के वैकल्पिक आगम “पिंडनिर्युक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है| Online-आगममंजूषा : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp. DholeshwarMandir, POST :- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com मुनि दीपरत्नसागर -मुनि दीपरत्नसागर Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ311-२५→ श्रीआतुरमत्याख्यानप्रकीर्णकम् देसिक्कदेसविरओ सम्मट्टिी मरिज जो जीवो । तं होइ बालपंडियमरणं जिणसासणे भणियं ॥१॥६४ ॥ पंच य अणुवयाई सत्त उ सिक्खा उ देसजइधम्मो। सोण व देसेण व तेण जुओ होइ देसजई ॥२॥ पाणिवहमुसावाए अदत्तपरदारनियमणेहिं च। अपरिमिइच्छाओऽवि य अणुण्याई विरमणाई ॥३॥ जंच दिसावेरमणं अणत्यदंडाउजं च वेरमणं । देसावगासियंपिय गुणवयाई भवे ताई॥४॥ भोगाणं परिसंखा सामाइयअतिहिसंविभागो य। पोसहविही य सबो चउरो सिक्खाउ वुत्ताओ ॥५॥ आसुक्कारे मरणे अच्छिनाए य जीवियासाए।नाएहि वा अमुको पच्छिमसलेहणमकिच्चा ॥६॥ आलोइय निस्सल्डो सघरे चेवासहितु संथारं। जइ मरइ देसविरओ तं वृत्तं बालपडिययं ॥ ७॥ जो भत्तपरिन्नाए उवक्कमो वित्थरेण निदिडो । सो घेच बालपंडियमरणे नेओ जहाजुग्गं ॥ ८॥ वेमाणिएमु कप्पोवगेसु नियमेण तस्स उववाओ। नियमा सिझाइ उकोसएण सो सत्तमंमि भवे ॥९॥ इय बालपंडियं होइ मरणमरिहंतसासणे दिटुं। इत्तो पंडियपंडियमरणं बुच्छ समासेणं ॥१०॥ इच्छामि णं भंते ! उत्तम8 पडिकमामि अईयं पडि. कमामि अणागयं पडिकमामि पचुप्पन पडि० कयं पडि० कारियं पडि. अणुमोइयं पडि० मिच्छत्तं पडि० असंजमं पडि कसायं पडि पावप्पओगं पडिकमामि, मिच्छादसणपरिणामेमु वा इहलोगेसु वा परलोगेसु वा सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा पंचसु इंदियत्येसुवा, अमआणंझाणे अणायारं कुंदसणं० कोहं० माणं मायं० लोभं राग० दोसं० मोहं०१० इच्छं० मिच्छ मुच्छ संक० कखं गेहिं आसं० तण्हं छुहं पंथं.२० पंथाणं निहनियाणं० नेहं कामं कलुसं० कलहं० सं० निजुजा संग०३० संगहं० ववहारं० कयविकर्य अणत्थदंड आभोग० अणाभोग० अणाइाई वेरैः वियक हिंसंहासं० पहासं० पओसं० फरुसं० भयं रुवं. अप्पपसंसं० परनिंदं परगरिहं० परिम्गहं० ५० परपरिवार्य परदूसर्ण आरंभंसरंभ पावाणुमोअर्ण० अहिगरण असमाहिमरण कम्मोदयपचयं इंड्ढिगारवं० रसगारवं०६० सायागारवं० अवेरमणं अमुत्तिमरणझाण, पसुत्तस्स वा पडिबुदस्स वा जो मे कोई देवसिओ राइओ उत्तमद्धे अइक्कमो बहक्कमो अइयारो अणायारो तस्स मिच्छामिदुक्कडं।१। एस करेमि पणामं जिणवरवसहस्स बद्धमाणस्त। सेसाणंपि जिणाणं सगणहराणं च सन्वेसि ॥११॥ सधं पाणारंभ पञ्चस्वामित्ति अलियबयणं च । सवमदिनादाणं मेहुण्णपरिग्गहं चेव ॥२॥ सम्मं मे सबभूएसु, वेरं मझ न केणई। आसाउ ओसिरितार्ण, समाहिमणुपालए ॥३॥ सर्व चाहारविहिं सन्नाओ गारबे कसाए य। सच्चं चेव ममत्तं चएमि सर्व समावेमि ॥४॥ हुज्जा इमंमि समए उवकमो जीवियस्स जइ मज्झा एय पथक्खाणं बिउला आराहणा हाउ॥५॥ सवदुक्खपहीणाणं, सिद्धाणं अरहो नमो। सहहे जिणपातं. पचक्खामि य पाचर्ग ॥६॥ नमत्य धयपावाणं, सिद्धार्ण च महेसिण। संथारं पडिवजामि, जहा केवलिदेसियं ॥ ७॥ जं किंचिचि दुश्चरियं तं सवं योसिरामि तिविहेणं । सामाइयं च तिविहं करेमि सर्च निरागारं ॥८॥बझं अम्भितरं उवहि, सरीराइ सभो. यणं । मणसाचयकाएहिं, सबभावेण वोसिरे ॥९॥ सवं पाणारंभ तं सर्व ॥२०॥ सम्मं मे सबभूएसु०॥१॥रागं बंध पओसं च, हरिसं दीणभावयं । उस्सुगत्तं भयं सोगं, रई अरई च ९०९ आतुरमत्याख्यानं जाहा-१-२१ मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोसिरे // 2 // ममतं परिवजामि, निम्मत्तं उवडिओ। आलंबणं च मे आया, अवसेसं च वोसिरे // 3 // आया हु महं नाणे आया मे दसणे चरिते या आया पञ्चक्खाणे आया मे संजमे जोगे // 4 // एगो वचह जीवो, एगो चेवुववजई। एगस्स चेव मरणं, एगो सिज्झइ नीरओ // 5 // एगो मे सासओ अप्पा, नाणदंसणसंजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा, सो संजोगलक्खणा // 6 // संजोगमूला जीवेणं, पत्ता दुक्खपरंपरा। तम्हा संजोगसंबंध, सबभावेण (प्र० सावं तिविहेण) वोसिरे // 7 // मूलगुणे उत्तरगुणे जे मे नाराहिया पमाएणं। तमहं सचं निदे पडिकमे आगमिस्साणं // 8 // सत्त भए अहमए सन्ना चत्तारि गारवे तिथि। आसायण तेत्तीसं राग दोसं च गरिहामि // 9 // अस्संजममन्त्राणं मिच्छत्तं सबमेष यममत्तं / जीवेसु अजीयेसु यत निंदे तं च गरिहामि // 30 // निंदामि निंदणिज गरिहामि यजं च मे गरहणिज। आलोएमि य स सभितरबाहिरं उवहिं॥१॥जह बालो जंपतो कज्जमकर्ज च उजुयं भणइ / तं तह आलोइजा मायामोसं पमुत्तूणं (प्र० मायामयविप्पमुको अ)॥२॥ नाणंमि दंसणेमि य तवे चरित्ते य चउसुवि अकंपो। धीरो आगमकुसलो अपरिस्सावी रहस्साणं // 3 // रागेण काय दोसेण व जं मे अकयनुया पमाएण। जो मे किंचिवि मणिओ तमहं तिविहेण खामेमि ॥४॥तिविहं भणति मरण पालाणं वालपंडियाणं च। तइयं पंडितमरणं जं केवलिणो अणुमहरति // 5 // जे पुण अट्ठमईया पयलियसन्ना य बंकभाषा य। असमाहिणा मरंति न हु ते आराहगा भणिया // 6 // मरणे विराहिए देवदुमगई दुलहा य किर बोही। संसारो य अणतो होइ पुणो आगमिस्साणं // 7 // का देवतुम्गई का अबोहि केणेव वुझाई मरणं। केण अर्णतमपारं संसारं हिंडई जीवो // 8 // कंदप्प देवकिम्बिस अभिओगा आसुरी य संमोहा / ता देवदुमाईओ मरणंमि विराहिए हुंति // 9 // मिच्छईसणरत्ता सनियाणा कहलेसमोगाढा। इय जे मरति जीवा तेसिं दुलहा भचे बोही॥४०॥ सम्मईसणरता अनियाणा सुकलेसमो. | गाढा। इय जे मरति जीवा तेसिं सुलहा मवे घोही ॥१॥जे पुण गुरुपडिणीया बहुमोहा ससबला कुसीला या असमाहिणा मरंति ते ९ति अणंतसंसारी॥२॥जिणवयणे अणुरता गुरुवयणं जे करति भावेणं / असबल असंकिलिट्ठा ते ९ति परित्तसंसारी॥३॥ बालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामगाणि मरणाणि। मरिहंति ते बराया जे जिणषयणं न याणति // 4 // सत्थरगहण विसभक्षणं च जलणं च जलपवेसो य / अणयारभंडसेवी जम्मणमरणाणुबंधीणि // 5 // उड्ढमहे तिरियंमिवि मयाणि जीवेण बालमरणाणि / वंसणनाणसहगओ पंडिअमरणं अणुमरिस्सं // 6 // उधेयणर्य जाई मरणं नरएसुधेयणाओ या एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरसु इहि ॥७॥जह उप्पज बुक्स तो वहयो सहावो नवरं। किं किं मए न पत्तं संसारे संसरतेणं?॥८॥ संसारथकवालंमि सोविय पुग्गला मए बहुसो। आहारिया य परिणामिया य नाहं गओ तित्तिं // 9 // तणकटेहिब अम्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहि। न इमो जीवो सको तिप्पेउं कामभोगेहिं // 50 // आहारनिमित्तेणं मच्छा गछति सत्तमि पुढवीं / सचित्तो आहारो न खमो मणसावि पत्येउं // 1 // पुधि कयपरिकम्मो अनियाणो ऊहिऊण मइबुद्धी। पच्छा मलियकसाओ सजो मरणं पडिच्छामि // 2 // अकंडेऽचिरभाविय वे पुरिसा मरणदेसकालम्मि। पुचकयकम्मपरिभावणाए पच्छा परिवहति // 3 // तम्हा चंदगविसं सकारणं उज्जुएण पुरिसेणं / जीवो अविरहियगुणो कायको मुक्खमगंमि // 4 // बाहिरजोगविरहिओ अम्भितरमाणजोगमतीणो। जह तंमि देसकाले अमूढसनो चयह वेहं // 5 // तूण रागदोस छित्तूण य अट्ठकम्मसंघायं। जम्मणमरणरह भित्तूण भवा विमुधिहिति // 6 // एवं सवएसं जिणदिट्ट सहहामि तिविहेणं / तसथावरखेमकरं पारं निशाणमग्गस्स ॥७॥नहु तम्मि देसकाले सको बारसविहो सुयक्खंधो। सबो अणुषितेउं धणियपि समस्यचित्तेणं // 8 // एगमिवि जम्मि पए संवेग वीयरायमर्गमि / गच्छा नरो अभिवंत मरणं तेण मरियाई।९। ता एगपि सिगं जो पुरिसो मरणदेसकालम्मि। आराहणोवउत्तो चिंतंतो राहगो होइ॥६०॥ आराहणोषउत्तो कालं काऊण सुविहिओ सर्म / उकोस तिन्नि भवे गंतूर्ण लहइ निघाणं // 1 // समणोनि अहं पढ़मं बीर्य सात्य संजओमित्ति। सच बोसिरामी एवं भणियं समासेणं // 2 // लवं अलवपुर्ष जिणवयण सुभासियं अमयभूयं / गहि. ओ सग्गइमग्गो नाहं मरणस्स बीहेमि // 3 // धीरेणधि मरिया काउरिसेणवि अवस्स मरियम् / दुण्डपि हुमरियचे वरं खुधीरतणे मरिउँ // 4 // सीलणवि मरियाई निस्सीलेणवि अवस्स मरियर्छ / दुहपि हुमरियवे वर खुसीलत्तणे मरि // 5 // नाणस्स देसणस्स य सम्मत्तस्स य चरित्तजुत्तस्स / जो काही उवओगं संसारा सो विमुश्चिहिए // 6 // चिरउसियभयारी पप्फोडेऊण सेसयं कम्म। अणुपुची विसुद्धो गच्छइ सिदिं धुयकिलेसो // 7 // निकसायस्स दंतस्स, सूरस्स ववसाइणो। संसारपरिमीयस्स, पचक्खाणं सुहं भवे // 8 // एवं पचक्खाणं जो काही मरणदेसकालम्मि। धीरो अमूढसो सो गच्छइ सासयं ठाणं॥९॥ धीरो जरमरणविऊवीरो विनाणनाणसंपयो।लोगस्सुजोयगरो विसउ खयं सबदुक्खाणं॥७॥१,१३३॥ इति प्रत्याख्यानम्।आप11-6→ श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम्-एस करेमि पणामं तित्पयराणं अणुत्तरगईणं सोसिंच जिणार्ण सिद्धाणं संजयाणं च॥॥१३४॥सादकखप्पही PATTERNATO