Book Title: Aagam Manjusha 22 Uvangsuttam Mool 11 Pupfchuliya
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line - आगममंजूषा [२२] पुप्फचूलियाणं * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर M.Com.M.Ed., Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पुफिया समत्ता १०॥ राम-२१→ श्रीपुष्फचूलिया-जइ णं भंते ! समणेणं भगवता उक्खेवओ जाव इस अज्झयणा पं० नं०-'सिरि हिरि चिनि किनीओ पुदी लच्छी य होइ बोद्धब्बा । इलादेवी सुरादेवी रस(प. सह )देवी गंधदेवी य॥४॥ जइ णं भंते ! समणेणं भगवया जाव संपनेणं उबंगाणं पउत्थस्स वग्गस्स पुष्फलाणं इस अज्म यणा पं० पढमस्स णं भंते! उम्सेवओ. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं- रायगिहे नगरे गुणसिलए चेहए सेणिए राया सामी समोसढे, परिसा निग्गया, नेणं कालेण सिरिदेवी सो. हम्मे कप्पे सिस्विडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए सिरिसि सीहासणंसि चउहि सामाणियसाहस्सीहिं चउहि मह्त्तरियाहिं सपरिवाराहिं जहा बहुपुनिया जाव नट्टविहिं उपदसिना पडि. गता, नवरं दारियाओ नन्थि, पुषभवपुच्छा, एवं खलु जंचू ! नेणं कालेणं- रायगिहे नगरे गुणसिलए चेहए जियसनू राया, नस्य गं रायगिहे नयरे सदसणे नाम गाहाबई परिवसति अड्डे०, तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स पिया नाम भारिया होत्या सोमाला.तस्स र्ण सुदंसणस्स गाहावइस्स धूया पियाए गाहावतिणीए अनिया भूया नाम दारिया होन्था बड्डा व. इडकुमारी जुण्णा जुष्णकुमारी पडितपुतस्थणी वरगपरिवजिया याचि होन्था, नेणं कालेण० पासे अरहा पुरिसादाणीए जाव नवरयणीए वणओ सो क्षेत्र, समोसरणं, परिसा निग्गया, नते णं सा भूया दारिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ठा जेणेव अम्मापियरो नेणेव उवा एवं वदासी-एवं खलु अम्मनाओ! पासे अरहा पुरिसादाणीए पुषणपूर्षि चरमाणे जाव देवगणपरिखुढे विहरति, तं इच्छामिणं अम्मयाओ! नुम्भेहिं अभणुण्णाया समाणी पासम्स अरहओ पुरिसादाणीयम्स पायबंदिया गमिनए, अहामुहं देवाणुपिया ! मा पडिबंध, नते णं सा भूया दारिया पहाया जाव सरीरा चेडीचकवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिनिस्वमनि ता जेणेव बाहिरिया उबट्ठाणसाला नेणेव उवा ना धम्मियं जाणप्पवरं दुरूदा, नने गं सा भूया दारिया नियपरिवारपरिघुडा रायगिहं नगरं मामलेणं निग्गच्छति त्ता जेणेव गुणसिलए चेइए नेणेव उवा० ला उनादीए निन्धकरानिसए पासनि, धम्मियाओ जाणापपराश्रो पचोरुभिना बेडीचकवालपरिकिष्णा जेणेष पासे अरहा पुरिसादाणीए नेणेव उवा० ना निक्मुत्तो जाव पजुवासनि, नते णं पासे अरहा पुरिसादाणीए भूयाए दारियाए तीसे य महइ० धम्मकहा धम्मं सोचा णिसम्म हड वदनि ना एवं पदासी सहहामि णं भंते ! निगथं पावयणं जाव अम्भुढेमि णं भने निग्गथं पावयणं से जहेनं नुम्भे बदह जं नवरं देवाणु । पिया! अम्मापियरो पुच्छामि तने णं अहं जाय पाइनए, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिर,तने सा भूया दारिया नमेव धम्मियं जाणपवरं जाव दुम्हनि ना जेणेव राय गिहे नगरे तेणेव उवागता रायगिह नगरं मझमझेणं जेणेव सए गिहे नेणेव उवागता रहाओ पचोकहिना जेणेव अम्मापिनरो नेणेष उपागना, करतल जहा जमाली आपुच्छति, - अहासुहं देवाणुप्पिए '०, तते णं से सुदंसणे गाहाबई विउलं असणं. उवक्खडावेति, मित्तनाति आमंतेति ना जाव जिमियभुनुत्तरकाले सुईभने मिनणाइसमणितो कोटुंबियपुरिसे सदावेनि ना एवं वदासी खिपामेव भो देवाणुपिया : भूयाए दारियाए पुरिससहस्सवाहिणीय सीयं उबटुवेह जाव पचप्पिणह, नने णं तेजाब पचप्पिणनि, नने णं से सुसणे गाहावई भूयं द्वारियं पहायं जाय विभूसियसरीरं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहेनि ना मित्तनानि जारखेणं रायगिह नगरं मज्झमझेणं निग्गच्छद ना जेणेव गुणसिलए चेहए नेणेव उवागने उनाईए निन्थयरातिसए पासनिना सीयं ठावेति ना भूयं दारियं सीयाओ पच्चोरुभेनि ना तने णं नं भूयं दारियं अम्मापियरो पुरतो कार्ड जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए नेणेच उवागते, तिक्खुनो वंदति नमंसति ना एवं वदासी-एवं खलु देवाणुप्पिया : भूया दारिया अम्हं एगा धूया इहा, एसणं देवाणुप्पिया ! संसारभविग्गा भीया जाय देवाणुप्पियाणं अं. तिए मुंडा जाव पव्ययाति, तं एवं ण देवाणुप्पियाणं सिस्सिणी भिक्ख दलयेमुत्ति, पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणीभिक्ख, अहामहं देवाणु, नते णं सा भूना दारिया पासेणं अरहया एवं बुना समाणी हवा उत्तरपुरच्छिमं० सयमेव आमरणमाडालंकारं उम्भुयइ जहा देवाणंदा पुष्फचूलाणं अंतिए जाच गुनभयारिणी, नने णं सा भूना अजा अण्णदा कदाइ सरीवाउसिया जाया यावि होन्या अभिक्खणं २हन्थे धोचति एवं सीसं धोवनि मुहं घोपनि धणगंतराई घावनि कसंतराई धोवनि गुज्जातराई धो वा निसीहियं वा चेतेति नन्थरविय णं पुनामेव पाणएणं अम्भुक्सेनि ननो पच्छा ठाणं वा सिजं वा निसीहियं वा चेतेनि, नने णं तातो पुष्फलानो अजानो भूयं अर्ज एवं वदासी९०५ निरयावल्यायुपांगपंचकं,- पूलिया मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्हे णं देवाणुप्पिए ! समणीओ निम्गंधीओ ईरियासमियाओ जाव गुत्तभचारिणीओ, नो खलु कप्पति अम्हं सरीरबाउसियाणं होत्तए, तुमं च णं देवाणुप्पिए सरीस्वाउसिया अ. भिक्खणं 2 हत्ये धोवसि जाव निसीहियं चेतेसि, तं णं तुम देवाणुप्पिए! एयस्स ठाणस्स आलोएहि०, सेसं जहा सुभदाए जाव पाडियर्फ उवस्सयं उपसंपज्जित्ताणं विहरति, तते णं सा भूता अजा अणोहहिया अणिवारिया सच्छंदमई अभिक्खण २हत्थे धोवति जाव चेतेति, तते णं सा भूया अज्जा बहूहिं चउत्थछट्ट० बहूई पासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सिरिवडिंसए विमाणे उबवायसभाए देवसयणिजसि जाव ओगाहणाए सिरिदेवित्ताए उबवण्णा पंचविहाए पजत्तीए पजत्ता, एवं खलु गो०! सिरीए देवीए एसा दिया देविड्ढी लदा पत्ता०, ठिई एर्ग पलिओवर्म, सिरीण भंते! देवी जाव कहिंगच्छिहिति ?महाविदेहे वासे सिज्झिहिति०, एवं खलु जंबू! निक्खेवओ,एवं सेसाणविनवण्हं भाणियवं. सरिसनामा विमाणा कप्पे, पुत्रभवे नगरचे इयपियमादीणं अप्पणो य नामादी जहा संगहणीए, सबा पासस्स अंतिए निक्खंता तातो पुष्पचूलाणं सिस्सिणीयातो सरीरखाउसियाओ सव्वाओ अणंतरं चइत्ता महाविदेहे वासे सिजिनहिति / 29 // पुष्पचूलियाओ समत्ताओ चउत्थो वग्गो 11 // आम-27 श्रीवष्डिदशो